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खाली नाव – Moral Story

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जब दूसरा व्यक्ति हमारे क्रोध को उकसाने के लिये उत्तरदायी है, तो क्या किया जाए? और क्या वह ही वास्तव में उत्तरदायी है? 
क्या किया जाए जब दूसरा व्यक्ति आपको क्रोधित करता है जब कि आप की कोई गलती ही नहीं है? वास्तव में यह सबसे अधिक पूछा जाने वाला प्रश्न है। मैं चांग जू की शिक्षा पर आधारित एक प्रसिद्ध लघुकथा से प्रारंभ करता हूँ।
जिस प्रकार कुछ व्यक्ति अपनी कार या अन्य उपकरणों को लेकर उन्मत्त होते हैं, उसी प्रकार एक व्यक्ति था, जो अपनी नाव को पागलों की भांति प्यार करता था। हर रविवार वह उसे साफ करता, झील में लेकर जाता, वापस लाता और फिर साफ करता। वह अपनी पत्नी व बच्चों को उसे छूने न देता। यहाँ तक कि उसकी साफ-सफाई भी न करने देता। एक समय शीत ऋतु आने से पहले उसने अपने चार सप्ताहांत नाव को रंगने में गुजारे। नाव अब पुन: नयी लगने लगी थी।
वह खड़ा, प्रशंसा भरी नज़रों से उसे निहारता रहा। फिर एक अंतिम बार उसमें सैर करने की इच्छा रोक न सका। शीत-ऋतु का आगमन निकट था और बाहर बहुत कोहरा था। फिर भी उसने अपनी नाव का पगहा खोला और चल दिया। धुंध की अपरिष्कृत महक व सर्द हवाएं जो उसके चेहरे को स्पर्श करती हुई जा रही थीं, उस का आनंद लेता हुआ वह शांत पानी के ऊपर जल-यात्रा करता हुआ, ओस से भीगे पेड़ों को देखता हुआ, सावधानीपूर्वक कोहरे के बीच से अपनी नाव निकालता गया। घने कोहरे ने उगते सूरज की मंद किरणों को जैसे आत्मसात कर लिया था। आसपास बीच-बीच में चिड़ियाँ चहचहा रही थीं।
वह अपनी प्यारी नाव में हर पल का आनंद ले रहा था, पागल कर देने वाली भीड़-भाड़ से दूर, परेशान करने वाला कोई नहीं। केवल वह व उसकी जीवन प्रेयसी। नये रंग में रंगी, नीली झील में, शांत प्रात: काल के समय।
तभी धमाके की आवाज हुई और कोई वस्तु उसकी नाव से टकराई। वह एक दूसरी नाव थी जो बिना रुके उसकी नाव को रगड़ती चली गयी। और नाव के एक बड़े हिस्से पर खरोंच के निशान आ गए। उसमें तीव्र भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा। पहले अविश्वास और फिर वह अत्यधिक क्रोध से भर गया। यह व्यक्ति इतना मूर्ख कैसे हो सकता है? इसे मेरी इतनी सुहानी सुबह को नष्ट क्यों करना था? सारे दुष्ट लोग मेरे पास ही क्यों आते हैं?
क्रोधाग्नि में जलता हुआ वह चिल्लाया “मूर्ख व्यक्ति तुम्हे पता भी है कि तुम कहाँ जा रहे हो?”
दूसरी नाव से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। उससे वह और भी अधिक क्रोधित हो गया। उसने मन ही मन और गालियाँ दोहराईं और एक बार फिर चिल्लाया। फिर भी किसी ने उत्तर नहीं दिया। पास से देखने पर उसने जाना कि दूसरी नाव में तो कोई था ही नहीं। वह एक पुरानी परित्यक्त नाव थी जो धारा में बहती हुई उधर आ गई थी।
उसे बोध हुआ। पूरे समय वह यह सोचता रहा था कि दूसरी नाव में बैठा व्यक्ति उसके क्रोध के लिये उत्तरदायी है। जबकि दूसरा व्यक्ति था ही नहीं। एक खाली नाव ने उसके अन्दर के क्रोध को सक्रिय कर दिया था। यह क्रोध उसके भीतर सदैव ही था। बाहरी किसी वस्तु ने बस उसे जगा दिया था।
चांग जू की नीतिकथा “खाली नाव” से मैं एक उद्धरण प्रस्तुत करता हूँ –
यदि एक व्यक्ति नदी पार कर रहा हो
और एक खाली नाव उसकी डोंगी से टकराए,
जबकि वह एक गुस्सैल व्यक्ति है,
वह क्रोध नहीं करेगा।
किंतु उस नाव में यदि एक व्यक्ति दिख जाए,
तो वह दूर से ही चिल्लाएगा।
यदि उसकी आवाज नहीं पहुँची, तो वह फिर चिल्लाएगा,
और फिर चिल्लाएगा, और गालियाँ देगा।
और यह सब इसलिए कि उस नाव में कोई है।
यदि वह नाव खाली होती,
तो वह चिल्ला न रहा होता, न ही क्रोधित होता।
इस संसार की नदी को पार करते समय,
यदि आप अपनी नाव को खाली कर सकें;
आपका कोई विरोध नहीं करेगा,
आपको कोई चोट नहीं पहुँचाएगा।
यदि आप ऐसा कर सकते हैं तो अपनी नाव खाली करें। फिर आपको कोई भी क्षति नहीं पहुँचा पाएगा। मैं जानता हूँ कि यह कहना सरल है, करना कठिन। किंतु फिर भी यह असंभव नहीं है।
मैंने कहीं और लिखा है कि क्रोध उत्पन्न होता है जब आपके भीतर कहीं आहत हो। विभिन्न प्रकार के व्यक्ति अपना क्रोध विभिन्न प्रकार से व्यक्त करते हैं। कुछ चिल्लाते हैं, कुछ स्वयं को दूर कर लेते हैं। कुछ क्षमा कर देते हैं तथा कुछ त्याग देते हैं। कुछ खीजते हैं, कुछ भूल जाते हैं। यह व्यक्तिगत चयन है। आप का निजी मामला है। आपका चयन पूर्णतया आपके हाथों में है। यदि आपका चिल्लाने का मन कर रहा हो और आप उसे मन में रख लें, भले ही आप उसे सह लेते हैं, यह धीरे-धीरे आपकी अच्छाई को नष्ट कर देगा। उसी प्रकार जैसे जंग लोहे को नष्ट कर देता है। और जब स्वभाविक दयालुता का अंत हो जाता है तो शांत रहने की कोई आशा ही नहीं रह जाती।
एक क्रोधी व्यक्ति की अपने विषय में चाहे जो भी धारणा हो किंतु भीतर से वह स्वाभिमान की कमी से पीडित है। और चाहे आप विश्वास करें या न करें, आपका स्वाभिमान आपकी निस्वार्थता से प्रत्यक्ष अनुपात में संलग्न है। आप जितने अधिक नि:स्वार्थी हैं उतने ही प्रबल होंगे और उतना ही प्रबल आपका स्वाभिमान होगा। उच्च स्वाभिमान वाला व्यक्ति ही शांत हो सकता है। ऐसे व्यक्ति के लिये क्रोध में चिल्लाकर पागल हो जाने की बजाय अपनी ऊर्जा को उपयोगी विधि से संचालित करना सरल होता है।
इसलिए अपने क्रोध से ऊपर उठने की एक सहज विधि है, स्वाभिमान को प्रबल करना। ऐसा आप किसी की सेवा करके या किसी उद्देश्य के लिये निःस्वार्थ सेवा करके कर सकते हैं। यहाँ तक कि निरुद्देश्य किया गया एक छोटा सा दयालुपूर्ण कृत्य भी आपके स्वयं के अहम के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्वयं पर विजय पाने की आंतरिक यात्रा है। जब आप दूसरों की सहायता करते हैं, आप स्वयं की मदद करते हैं।
अपनी भावनाओं के कारण का उत्तर जानने हेतु आप जितना स्वयं के भीतर देखेंगे, उतना ही आप दूसरों को अपनी भावनाओं के लिये कम उत्तरदायी ठहराएंगे। वह फिर भी आएंगे और आपकी कटु आलोचना करेंगे। परंतु फिर आप उन्हें एक खाली नाव के समान देखना सीख जाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि जब वह आपकी रंगी वस्तु को बिगाड़ेंगे या फिर आपके द्वारा सावधानीपूर्वक संरक्षित वस्तु को क्षति पहुँचाएंगे, तो आपको फिर बुरा लगेगा। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि वह आप में क्रोध भी उत्पन्न कर देगे। इसमें एक सूक्ष्म अंतर है, जिसे मैं अभी स्पष्ट करता हूँ।
आप देखिए कि क्रोधित न होने का यह अर्थ नहीं कि आपको चोट नहीं पहुँची। इस संसार में रहते हैं तो यह असंभव है कि आपको आपके प्रिय लोगों से चोट न पहुँचे। यह तो अवश्य होगा। यह आपके हाथ में नहीं। यदि कोई आपको छड़ी से मारता है तो आपको दर्द तो महसूस होगा। आप इसकी प्रतिक्रिया का चयन जिस प्रकार करते हैं वही एक अच्छे व्यक्ति को एक महान व सर्वोत्तम व्यक्ति से अलग करता है। आप चुन सकते हैं कि उसकी छड़ी उनसे ले लें, स्वयं को उनसे दूर कर लें, उन पर चिल्लायें, उन्हें पलट कर मारें या फिर बदले में उन्हें प्रेम दें।
चोट पहुँचने के अतिरिक्त भी क्रोध का एक और कारण है। इसे कोई भी सुनना पसंद नहीं करता। किंतु संसार को और पास से देखने पर यह आपको स्पष्ट हो जाएगा। वह है, स्वयं के प्रति मनोग्रहीत होना। आप स्वयं के प्रति जितना अधिक मनोग्रहीत हैं, उतना ही आप तनिक से मतभेद से क्रोधित हो जायेंगे। स्वयं से मनोग्रहीत व्यक्ति स्वयं को व अपने जीवन को अत्याधिक गंभीरता से देखते हैं। चाहे वह उनका जीवन हो, धर्म या विचार हो, सभी कुछ उनके लिये गंभीर विषय होता है। यही वे लोग हैं जो खाली नाव को देखने के पश्चात भी उस व्यक्ति पर चिल्लाते हैं, उसे गालियाँ देते रहते हैं जिसने उस नाव को उन्मुक्त छोड़ दिया। स्वयं से मनोग्रहीत व्यक्ति यह नहीं जानता कि वह अपने क्रोध का क्या करे। एक बार फिर इससे तनाव मुक्ति की विधि है कि अपने व्यक्तिगत अस्तित्व के परे जाएं और एक नयी यात्रा आरंभ करें जो किसी की भी सम्पूर्ण स्वार्थपरक इच्छाओं से कहीं अधिक विशाल हो।
मुल्ला नसरुद्दीन एक नये शहर में रहने के लिये गया और उसे कुछ आर्थिक मदद की आवश्यकता थी। किंतु कोई भी उसे पैसा उधार न देता। वह एक मस्जिद के बाहर उदास बैठा था। फिर उसने एक अजनबी से वार्तालाप शुरू की।
कुछ ही मिनट बीते और मुल्ला ने पूछा “तो व्यापार कैसा चल रहा है?”
“बहुत अच्छा, इससे अच्छा संभव नहीं था।” उस व्यक्ति ने कहा।
“तो क्या मैं पचास रुपये ले सकता हूँ?”
“पचास रुपये? असंभव। मैं तो तुम्हें जानता तक नहीं।”
“यह भी अजीब है” नसरुद्दीन ने उत्तर दिया। “पिछले गाँव में कोई मुझे उधार इसलिए नहीं देता था क्योंकि वहाँ लोग मुझे जानते थे। और यहाँ कोई मुझे उधार इसलिए नहीं देता क्योंकि वह मुझे नहीं जानते।”
क्रोध के साथ भी ऐसा ही है। कुछ व्यक्ति आप का अनादर करने की, आप पर चिल्लाने की, क्रोध करने की स्वतंत्रता लेते हैं, क्योंकि वह आपको जानते हैं। वह जानते हैं कि आप ऐसा व्यवहार स्वीकार कर लेंगे। और कुछ आप पर चिल्लायेंगे क्योंकि वह आपको नहीं जानते। वह आपको अपने फिल्टर से देख रहे हैं। किसी भी स्थिति में, एक उचित स्तर के आगे, आप इसे स्वयं को परेशान न करने दें। क्योंकि यह आपके विषय में नहीं है। यह उनके विषय में है। जब तक कि आप उनमें से एक नहीं हैं, आप ठीक हैं।
मैंने एक समय एक सूक्ति पढ़ी थी, जिसमें कहा गया था कि *“अपना मुँह तभी खोलें, जब आप जो कहने जा रहे हों, वह मौन से भी अधिक सुन्दर हो।”* अपनी अप्रसन्नता को कैसे उत्तम रूप से व्यक्त किया जाए इसे जाँचने की यह सबसे अच्छी विधि है। जो कुछ भी हम करते हैं, कहते हैं या सोच कर परेशान होते हैं, वह हर भावना मानसिक भार को बढ़ाता है। आप संभवतः अपनी नाव को पूर्णतया खाली न कर पाएं पर उसे भरा हुआ भी न रखें। भारी वस्तुएं शीघ्र डूब जाती हैं। यह सचमुच इतना ही सरल है। हल्के हो जाएं, मुक्त हो जाएं।
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