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The Inspiring Story of Osho’s Biography
जिसने जैसा पढ़ा इन्हें उनके वैसे मत है, किसी के लिए ये संत है तो किसी के लिए दार्शनिक गुरु और कुछ के लिए सेक्स गुरु , लोग आज भी इनके बारे में जानना चाहते है तो कुछ लोग इनका विरोध भी करते नजर आते है !

ओशो (Osho) का जीवन परिचय
ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 में एक मध्य वर्ग परिवार के बीच मध्य प्रदेश (Madhay Pradesh) के रायसेन (Rayasan) जिले के कुचवाड़ा (Kuchvada) गांव में हुआ था। इनका असली नाम चंद्र मोहन जैन (Chander Mohan Jain) था। जिनकी प्रसिद्धि ओशो नाम से आज लोगो में बनी हुई हैं। इनके पिता का नाम बाबूलाल जैन (Babulal Jain) था। जो पेशे से व्यापारी थे जिनकी खुद के कपड़ो का व्यापार था। इनकी माता जिनका नाम सरस्वती जैन (Sarswati Jain) था। ओशो के 11 भाई बहन थे जिनमे से वह सबसे बड़े थे। ओशो ने अपना बचपन 7 वर्ष तक अपने ननिहाल में बिताया था। जिसके चलते उन्हें अपने नाना नानी से काफी लगाव था।
कहाँ से की अपनी शिक्षा ग्रहण
ओशो बचपन से ही एक ऐसे बच्चे थे जिन्हे हर चीज में से प्रश्न पूछने की आदत थी जिसके चलते कई बार इनके शिक्षक भी इनके प्रश्नों से परेशान हो जाते थे। और वह एक ऐसे व्यक्ति बन चुके थे जिन्हे ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं था। अपने स्नातक की पढ़ाई उन्होंने जबलपुर के डी. एन. जैन कॉलेज (D. N. Jain College) में दर्शनशास्त्र की पढ़ाई पूरी की और स्नातक की पढ़ाई के साथ साथ उन्होंने ऑल इंडिया डिबेट चैंपियन में गोल्ड मेडल हासिल कर रखा है। अपनी स्नातक पूरी करने के बाद ओशो ने अपनी उच्च स्नातक (M.A) की डिग्री सागर यूनिवर्सिटी (Sagar University) में दर्शनशास्त्र में पूरी की।
प्रोफेसर के पद पर भी किया कार्य
अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद। ओशो ने 1957 में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर के पद पर रायपुर (Raypur) विश्विघालय में नौकरी की। लेकिन उनकी सोच और उनके तरीके बच्चो के लिए सही नही थे। जिसके चलते वहा के कॉलेज ने उनका ट्रांसफर जबलपुर (Jabalpur) विश्विघालय में कर दिया। जहा उन्होंने दर्शन शास्त्र में प्रोफेसर के पद पर 8 से 10 साल तक कार्य किया।
इस प्रोफेसर के पद के दौरान उन्होंने कई देश में घूम कर जीवन के बारे में जान लिया था जिसके बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। वह अपने प्रवचन को लोगो के बीच में प्रकट करने लगे। और अलग– अलग जगह जाकर अपने शिवर लगा कर लोगो को अपने विचारो से अपने प्रवचन देने लगे। जिसके चलते उन्हें आचार्य रजनीश के रूप में लोग जानने लगे।
जब लोग रजनीश को आचार्य रजनीश से जानने लगे तो, उन्हे नौकरी छोड़ सन्यास भक्ति की शुरुवात की। जिसमे वो अलग–अलग जगह पर जाकर लोगो को प्रवचन देते थे। जिसे सुनने के लिए हजारों में लोग आने लगे। जिसके बाद आचार्य रजनीश ने खुद को ओशो के नाम से प्रचलित किया। जो लोगो के बीच काफी प्रसिद्ध हुआ।
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निर्माण किया अपने आश्रम का
आचार्य रजनीश जिनके प्रवचन के लिए हजारों में संख्या इकठ्ठी होने लगी। जिनके प्रवचन के लिए उनके साथ लोग जुड़ने लगे। वही सन् 1974 में आचार्य रजनीश ने पुणे में प्रस्थान किया। जहा उन्होंने कोरेगांव इलाके में अपना आश्रम की स्थापना की। जो आज “ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट” नाम से प्रसिद्ध है। इन्होने भारत में तो अपने आश्रम का निर्माण किया ।
इसके साथ साथ उन्होंने अमेरिका में भी 64000 एकड़ बंजर जमीन को अपने आश्रम और कई सुख सुविधा में तब्दील किया। ओशो ने 1980 में अमेरिका में प्रस्थान किया। जैसे हमने आपको बताया की ओशो ने वहा पर भी अपने आश्रम का निर्माण किया। जिसका नाम उनके शिष्य ने राजनेशपुरम (Rajneshpuram) से स्थापित किया।
इस बंजर जमीन को 60 लाख डॉलर में खरीदा गया था जिसके बाद उस जमीन को एक सुख सुविधा जमीन बनाया गया। जहा मंदिर, मॉल, एयरपोर्ट और हस्पताल जैसी कई चीज़ों को बनवाया गया। जिसके बाद जब उनके शिष्य ने आश्रम के नाम के लिए रजिस्टर्ड करवाना चाह तो वहा के विदेशी सरकार ने इसके ऊपर विरोध करना शुरू किया। लेकिन वकालत में ओशो की जीत हुई और सफलतापूर्वक आश्रम का निर्माण किया गया।

भक्तो की गिनती में आते है बड़ी हस्तियां
इनके प्रवचन काफी प्रसिद्ध होने लगे। जिसके चलते उनके भक्तो की गिनती में अमीर और नामी शामिल होने लगे थे, जो इन्हें काफी महंगा महंगा चढ़ावा चढ़ाते थे। आपको बता दे की, ओशो के पास दुनिया की सबसे महंगी गाड़ी में से एक रोल्स रॉयस की गाड़ियों की 90 संख्या थी। ओशो का कहना था, की उनके भक्त उन्हे अच्छी जिंदगी जीते हुए देखना चाहते थे। जिसके चलते वह उनकी ये खुशी नहीं छीन सकते थे। इसी कारण ओशो काफी लक्सिरियस जिंदगी जीते हुए नजर आते थे। जो काफी चर्चित होने लगे।
खुले विचारो से लोग होते थे प्रभावित
ओशो बचपन से ही अपने विचारो को खुले दिल से प्रकट करते थे। जिसकी वजह से उनकी सोच औरो से बिलकुल अलग थी। उनका मानना था की हर व्यक्ति को उनके मन से जीना चाहिए। वे एक संत गुरु की तरह नहीं एक अलग नजरिए की सोच से लोगो को अपने प्रवचन देते थे आपको बता दे, की उनके आश्रम राजनीशपुरम में लोगो को पूरी आजादी थी सेक्स और नशे करने की।
इसी खुली सोच के चलते, उनके आश्रम में ज्यादातर कॉलेज के छात्र ही थे। क्योंकि ओशो के विचार थे की हर व्यक्ति को अपने मन से करना चाहिए चाहे वो प्रेम हो, नशे हो या फिर सेक्स हो। जिस वजह से उनको सेक्स गुरु भी कहा जाने लगा। क्योंकि उनका कहना था । की मनुष्य को समाधि का पहला अनुभव सेक्स से ही मिलता है। जिसको लेकर उनके आश्रम में सेक्स के ऊपर कोई पाबंदी नहीं थी । जो भी व्यक्ति वहा रहने आता, वो अपनी मनमर्जी के मुताबिक अपने पार्टनर को बदला जा सकता था।
अमेरिका सरकार ओशो के पीछे लगी
दिन भर दिन ओशो के आश्रम में लोगो की संख्या बढ़ती हुई नजर आने लगी थी। क्योंकि ओशो बाकी संत गुरु से बिलकुल अलग थे। उनकी सोच भगवान, व्रत या धार्मिक में नही थी। उनका कहना था की मनुष्य को अपना जीवन खुद से खुले तरह जीना चाहिए। जहा लोग उन्हे सुनने के लिए इकठ्ठा होने लगे। जिसे देख वहा की सरकार परेशान होने लगी।
जिसके बाद वहा की सरकार ने ओशो के शिष्य को तंग करना शुरू किया। और कई ऐसी चीज कर अंत में उन्होंने ओशो की तलाश शुरू की। जिसमे उन्हे नशीले पदार्थ और 35 तरह के इल्जाम लगाने के बाद उन्हें अपनी कैद में ले लिया। जिसके बाद उन्हें पेनाल्टी के साथ 5 साल वापिस इस देश में न आने की पेनाल्टी लगी गई। और अंत में उनको मारने की साजिश कर एक ऐसा जहर दिया गया, जिसका असर काफी लंबे समय में होता है।
अमेरिका छोड़ पुणे आश्रम में वापिस लौटे ”ओशो”
ओशो अब वापिस भारत आ चुके थे। जहाँ वे वही अपने पुणे आश्रम में आ गए थे। लेकिन भारत की सरकार ने भी उन्हे अपने साथ विदेशी शिष्य लाने पर रोक लगा दी थीं जिसके चलते कई अन्य देशों में उनपे रोक लगा दी थी। लेकिन अंत में कुछ समय के लिए नेपाल ने उन्हे जगह दी। उनके ऊपर इल्जाम होने के कारण जर्मनी की पुलिस ने उन्हे गिरफ्तार कर 20 वर्ष तक की सजा सुनाई गई। जिसके बाद 1987 में भारत लौट कर पुणे में स्थित आश्रम में आए।
रिकॉर्डिंग बेस्ड लिखी गई पुस्तके
ओशो ने करीबन 1 लाख तक पुस्तको को पढ़ रखा है जिसमे उनको कुछ ही पुस्तके काफी स्नेह थी। ओशो ने अपने सारा ज्ञान को रिकॉर्ड करवाया हुआ था। जिसके बाद उनको जितनी भी किताबे आज बाजारों में उपलब्ध है वह सब रिकॉर्डिंग बेस्ड पर लिखी हुई है।
त्याग दिया शरीर
ओशो ने अपने शरीर को 19 जनवरी 1990 को त्याग दिया था। जैसे की हमने आपको बताया की, अमेरिका के जेल में ओशो को एक जहरीला पदार्थ का इंजेक्शन दिया था जिस वजह से उसका असर 6 माह में दिखने लगेगा। लेकिन ओशो ने अपनी जिंदगी के 5 वर्ष उस जहर के साथ पूरे कर दिए। जिसके बाद उनका शरीर ढीला होने लगा और 19 जनवरी को उन्हे हार्ट अटैक की वजह से अपना शरीर त्याग दिया।