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मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं,
जिनके सपनों में जान होती है ,
सिर्फ पंख होने से कुछ नहीं होता,
हौसलों से ही उड़ान होती है |
ऐसे ही जानदार सपने और मजबूत हौसले रखने वाले कुलदीप द्विवेदी की सच्ची कहानी लेकर आये है जिन्होंने अपने जीवन में सफलता के मार्ग में आयी हज़ारो उलझनों के बावजूद कभी हार नहीं मानी सबके लिए मिसाल पेश की है |
पिता थे सिक्योरिटी गार्ड
कुलदीप का जन्म उत्तर प्रदेश में निगोह के एक छोटे से शेखपुर नाम के गांव में बेहद आम परिवार में हुआ | कुलदीप द्विवेदी के पिताजी श्री सूर्यकांत द्विवेदी लखनऊ विश्वविद्यालय में बतौर सुरक्षा गार्ड काम करते थे। छ: सदस्यों का यह परिवार एक ही कमरे के घर में रहता था और पिता की कमाई जो कि सिर्फ 6000 रुपये महीना थी, उसमे जैसे-तैसे घर का खर्च चलता था| कुलदीप के पिता श्री सूर्यकांत 12वीं पास थे और मां मंजु भी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी परन्तु उन्होंने अपने बच्चे की पढ़ाई में कभी कोई कमी नहीं रखी | अपनी इच्छाओं को दबाकर उन्होंने कुलदीप को स्कूल भेजा. बेटे ने कभी उनको निराश नहीं किया और खूब मन लगाकर पढ़ाई की.कुलदीप की बहन के अनुसार कुलदीप अपने दूसरे सगे संबंधियों को देखकर अंग्रेजी मीडियम में पढ़ना चाहते थे परंतु पिता की आय काफी कम होने की वजह से वह गांव के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ने को मजबूर हो गए थे।
कुलदीप ने कम उम्र से ही आईएएस बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था। जब वह सातवीं कक्षा में थे तब से ही उन्होंने यह ठाना था। भले ही एमए तक की पढ़ाई कुलदीप ने हिंदी मीडियम से की, मगर वो हमेशा दूसरों से एक कदम आगे ही रहे |
UPSC के लिए छोड़ दी नौकरी
कुलदीप द्विवेदी ने हिंदी और भूगोल में वर्ष 2009 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर वर्ष 2011 में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर ली थी। इस के बाद कुलदीप ने तय किया कि वह खुद को यूपीएससी के लिए तैयार कर करेंगे, तभी से ही वह दिल्ली में आकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। यहां दिल्ली में उन्होंने एक किराये का कमरा लिया और अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट गए. उनके पास सीमित पैसे होते थे जिनमे वह पढ़ने के लिए पर्याप्त किताबें खरीदने में भी असमर्थ थे तो ऐसे में कई बार उन्होंने दोस्तों की मदद ली और उनकी किताबें उधार लेकर अपनी पढ़ाई की | घर के हालात को देखते हुए कुलदीप अन्य सरकारी नौकरी की भी परीक्षाएं देते रहते थे | साल 2013 में उनका चयन BSF में बतौर असिस्टेंट कमांडेंट हो गया लेकिन आईएएस बनने के जुनून के चलते उन्होंने नौकरी नहीं की |
2015 में बन गए IRS
बहुत कठिन प्रयासों के बावजूद कुलदीप अपने पहले दो प्रयासों में सफल नहीं हो सके थे, पहली बार प्रीलिम्स नहीं निकला. दूसरी प्री निकला लेकिन मेन्स में सफल नहीं हुए | कुलदीप शुरू से बहुत आशावादी रहे है और आशावादी व्यक्ति हर आपदा में एक अवसर देखता है तो उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और बहुत ही साहस के साथ निरंतर मेहनत करते रहे जिस तरह वृक्ष कभी भी इस बात पर व्यथित नहीं होता कि उसने कितने पुष्प खो दिए; वह सदैव नए फूलों के सृजन में व्यस्त रहता है अंतत: उनकी मेहनत रंग लाई और 2015 में 242 वीं रैंक के साथ वो यूपीएससी क्रैक करने में सफल रहे और फिर आगे इंडियन रेवेन्यू सर्विसेस (IRS)को उन्होंने अपना करियर बनाया | बताया जाता है कि जब कुलदीप के सफलता की खबर उनके पिता के पास पहुंची, तो वह समझ नहीं पाए क्या हुआ है. उन्हें यह समझाने में काफी समय लगा कि उनका बेटा कुलदीप अधिकारी बन चुका है |
कुलदीप ने अपनी मेहनत से दुनिया को बता दिया कि मेहनत करने वालों की हार नहीं होती | संघर्ष इंसान को मजबूत बनाता है फिर चाहे वह कितना भी कमजोर क्यों ना हो और कम से कम संसाधन के साथ भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है |
जीवन में कितना कुछ खो गया, इस पीड़ा को भूल कर, क्या नया कर सकते हैं, इसी में जीवन की सार्थकता है | अंत में आप सभी के लिए एक ही संदेश है –
हजारों उलझनें राहों में,
और कोशिशें बेहिसाब;
इसी का नाम है ज़िन्दगी,
चलते रहिये जनाब ।