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Srila Prabhupada जीवन परिचय

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Srila Prabhupada जीवन परिचय

हमारा भारत एक ऐसा देश हैं। जो युगों – युगों से आध्यात्मिक चीजों को मानता आया हैं। जहां बहुत से धार्मिक गुरु ने जन्म लिया और भारत को एक धार्मिक रूप दिया। आज हम एक ऐसे ही संत की बात करेंगे, जो आज देश ही नहीं विदेश में भी काफी चर्चित हैं। क्योंकि ये वो संत गुरु है जिन्होंने श्री कृष्ण जी का अनुवाद भारत के साथ साथ विदेश के हर कोने कोने में किया। आज अंग्रेजी भाषा में लिखी गई श्रीमत भागवत कथा और कई पुस्तको का अनुवाद इन्ही संत द्वारा विदेश में किया गया है।

Srila Prabhupada

आज हम एक ऐसे संत गुरु की बात कर रहे हैं। जो बचपन से ही आध्यात्मिक रास्ते की और ज्यादा रुचि रखते थे। जिनका नाम महान अभय चरारविंद भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी ( Mahan Abhay charnarvind Bhaktivedant Swami Prabhupad ji)। जिनका जन्म 1 सितंबर 1896 में कोलकाता (Kolkata) में बंगाली परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम गौर मोहन (Gor Mohan) और इनकी माता का नाम रजनी (Rajni) था। स्वामी प्रभुपाद जी बचपन से ही आध्यात्मिक पुस्तको में ज्यादा रुचि रखते थे जिसके चलते इन्होंने अपना पूरा जीवन श्री कृष्ण जी को समर्पित कर दिया था। ऐसा नहीं था की इनकी रुचि आध्यात्मिक की और होने के कारण पढ़ाई में नही था। बल्कि इनकी पढ़ने की क्षमता काफी तेज थी और स्वामी प्रभुपाद जी अंग्रेजी भाषा में काफी तेज और काफी शुद्ध तरह से अंग्रेजी भाषा बोला करते थे।

गुरु से हुई मुलाकात
स्वामी प्रभुपाद जी (Srila Prabhupada) जिन्होंने अपने गुरु से शिक्षा ले कर, अपने जीवन को धन्य किया। जी हा उनकी मुलाकात सन् 1922 में कोलकाता में गुरु शिल्प सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी (Guru shilp Sidhanth Sarswati Goswami) से हुई थी । जब स्वामी प्रभुपाद जी को सरस्वती गोस्वामी ने देखा तो वह उन्हे देख के समझ गए थे की ये कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। जिसके बाद जब उन्होंने उनको अंग्रेजी भाषा बोलते हुए देखा तो वह देख के काफी आश्चर्य चकित हो गए थे। क्योंकि उनका कहना था की इतनी अच्छी अंग्रेजी कोई कैसे बोल सकता हैं। जिसके बाद प्रभुपाद जी सन् 1933 में उनके शिष्य बन गए और सरस्वती गोस्वामी साथ हुई बैठक में प्रभुपाद जी को अंग्रेजी भाषा में वैदिक ज्ञान का अनुवाद करने को कहा।

Srila Prabhupada

श्रीमत भागवत कथा का अनुवाद किया अंग्रेजी में (Srila Prabhupada)

श्री प्रभुपाद को शास्त्रों को पढ़ना और लोगो को समझाना काफी अच्छा लगता था और यह सब जब उनके गुरु सरस्वती गोस्वामी ने देखा तो उन्होंने अपने शिष्य प्रभुपाद जी को बुलाया और बोला की तुम अंग्रेजी में काफी अच्छे हो, जिसको देख में चाहता हु की श्री मत भागवत कथा और अन्य शास्त्रों का अनुवाद अंग्रेजी में किया जाए और इसे भारत के अलावा विश्व के हर कोने में फलाया जाए। यह सुन प्रभुपाद जी ने एक सेकंड नहीं लगाया और तुरंत कहा की ये मैं अवश्य करूंगा। अपने गुरु जी की बात को मानते हुए उन्होंने श्री मत भागवत गीता वे कही अन्य शास्त्रों को हिंदी में पढ़ कर अंग्रेजी में अनुवाद करना शुरू किया। जिसको देखते ही देखते उन्होंने पूरी भागवत गीता का अनुवाद अंग्रेजी में कर दिया था।

घर छोड़ निकल पड़े
अपनी गृहस्थी को छोड़ स्वामी प्रभुपाद जी (Srila Prabhupada) अपने घर से झोला उठा कर निकल गए थे। लेकिन उनको ये नही पता था की उनको आखिरकार जाना कहा है। जिसके बाद उन्होंने काफी सोच विमर्श कर विदेश अमेरिका जाने का सोचा और वह अमेरिका के लिए निकल गए। जब वह अमेरिका पहुंचे तो उन्हे नही पता था की उन्होंने किस मोड़ पे जाना हैं। लेकिन वहा के लोग उनको संत की वेश भूषा में देख काफी हसने लगे। उस परस्थिति में भी प्रभुपाद जी ने हिम्मत ना हारते हुए, कुछ ऐसा सोचा । जिससे अपने शास्त्रों का अनुवाद कैसे करे।

क्योंकि वह अपने गुरु द्वारा कही बात को खाली नहीं जाने देना चाहते थे। जिसके बाद उन्होंने अमेरिका में हिप्पी नाम लोगो के बारे में जाना और सोचा की क्यों ना भागवत कथा का अनुवाद इन्ही लोगो से शुरू किया जाए। लेकिन वह लोग हर वक्त नशे में रहते थे। उनका अनुवाद उन्हे समझ ही नही आता था। जिसके बाद प्रभुपाद जी ने उनसे पूछा की तुम हर वक्त नशा क्यो करते हो, जिसका जवाब उन्होंने दिया की ये नशा हमारा स्टेटस बताता हैं। यह सुन प्रभपाद जी ने उनसे कहा की में तुम्हे एक ऐसा नशा बताऊंगा। जिसमे अगर तुम लीन हो गए तो उस नशे से बाहर आने का मन नहीं करेगा। यह सुन कर उन्होंने उस नशे के बारे में पूछा तो, प्रभुपाद जी ने भजन कीर्तन शुरू किया। जिसके बाद उन लोगो को काफी पसंद भी आने लगा और वह प्रभुपाद जी के साथ जुड़ कर उनके शिष्य बन गए।

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ISKON की स्थापन (Srila Prabhupada)

इस्कॉन (ISKON) की स्थापना स्वामी प्रभुपाद (Srila Prabhupada) ने की थी। ISKON जिसका नाम International Society for Krishna Consciousness है यह वो जगह है जो काफी पवित्र है और आज इस्कॉन मंदिर देश ही नही विदेश में कुल 108 मंदिर बन चुके हैं। आज के समय में इस्कॉन का सबसे बड़ा मंदिर जो वृंदावन में स्थित है।

(ISKON) इस्कॉन मंदिर की है काफी मान्यता
आज जितने भी इस्कॉन मंदिर स्थापित हुए वह सब प्रभुपाद जी (Srila Prabhupada) द्वारा बनाए गए हैं। इनकी लगन और मेहनत से यह अपने गुरु जी द्वारा बोली हुई बात पर सफल हुए थे। इन्होंने देश विदेश के कोने कोने में भागवत कथा और अन्य शास्त्रों का अनुवाद किया था। और कई ऐसे देश के लोग इनके साथ जुड़ने लगे थे जो इनके साथ इस्कॉन मंदिर का अनुवाद कर रहे थे। क्योंकि प्रभुपाद जी का कहना था की वह चाहते थे की वह अपना शरीर त्यागने से पहले अधिक से अधिक पुस्तको को बाटा जाए और उसके बारे में लोगो को प्रेरित किया जाए। इनकी यही लगन और मेहनत जो यह पूरे दिन 24 घंटो में से 22 घंटे अपने काम को करते रहते थे जिसके चलते शास्त्रों की पुस्तको को 5.50 करोड़ से भी अधिक पुस्तके बाटी गई। धार्मिक रास्ते पे चलने के साथ–साथ यह दान पुनय में काफी विश्वास रखते थे जिसके चलते इन्होंने कही गरीब बच्चो को खाना खिलाया करते थे। और आपको बता दे की 14,00,000 बच्चो को फ्री में इस्कॉन मंदिर में भोजन करवाया जाता हैं।

प्रभुपाद जी ने त्याग दिया था शरीर
सन् 14 नवंबर 1977 को स्वामी प्रभुपाद जी (Srila Prabhupada) ने अपने शरीर त्याग प्रभु चरणों में लीन हो गए। लेकिन आपको बता दे की अपने वृद्ध अवस्था में भी स्वामी प्रभुपाद जी ने लिखना नहीं छोड़ा था। स्वामी प्रभुपाद जी जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपने श्री कृष्ण जी को समर्पित कर उनको सेवा में लगा दिया और दान पुनय कर, लोगो को काफी प्रेरित कर अपने शास्त्रों का विदेश में अंग्रेजी में अनुवाद किया था। ऐसे संत गुरु स्वामी प्रभुपाद जी को शत शत नमन।

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