द्वापर को श्री कृष्ण का युग कहते है श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार मानते है श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर अवतार लिया था
मित्र मतलब के लिए नही होते, मित्रता कैसे निभाई जाती है इस बारे में सीखना है तो श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता देखो ,जहाँ हम सभी ने श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता के बारे या तो सुना होगा या ऑनलाइन देखा होगा लेकिन पूरी कहानी किसी ने नहीं सुनी होगी। इस पूरी कहानी के बारे में जानेंगे कहानी को शुरू करने से पहले बोलो “जय श्री कृष्णा” !
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श्री कृष्ण और सुदामा का मिलन

Shri Krishan Aur Sudama- श्री कृष्ण (Shri Krishna) और बलराम (Balram) अपनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए महर्षि संदीपनी के आश्रम जाते है संदीपनी के आश्रम में और भी बच्चे आए हुए होते है उनमें से एक का नाम सुदामा था, शिक्षा के दौरान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता होती है सुदामा और कृष्ण बहुत ही प्रिय मित्र बन जाते है एक दूसरे के लिए प्रेम भाव व्यक्त करते है और सुदामा श्री कृष्ण के मित्र के साथ साथ भक्त भी बन जाते है l
Shri Krishna Aur Sudama- श्री कृष्ण और सुदामा की शिक्षा
आश्रम में ऋषि सभी को शिक्षा प्रदान करते थे धर्म,शास्त्र,वेद,पुराण का ज्ञान दिया जाता था, शिक्षा के दौरान सभी एक सामान हुआ करते थे सभी को भिक्षा मांग कर जीवन यापन करना होता था , सभी को एक सामान कपडे एक सामान भोजन दिया जाता था, बाल्य अवस्था से ले कर युवा अवस्था तक की शिक्षा बच्चो को प्रदान की जाती थी, राज घराने के बच्चे निर्धन घर के बच्चे सभी को शिक्षा प्रदान की जाती थी अपने से बड़े और ऋषि मुनि सभी का आदर सत्कार करना जीवन जीने का तरीका भ्रामण का धर्म,छत्रिय का धर्म भी समझाया जाता था l
श्री कृष्ण द्वारा सुदामा को दिया श्राप
शिक्षा के दौरान एक दिन महर्षि सभी को कार्य प्रदान करते है किसी को भोज्य पदार्थ एवं किसी को अग्नि के लिए सुखी लकड़ियां लेने के लिए जंगल में में भेजते है जंगल में जाते ही बारिश शुरू हो जाती है जिसकी वजह से श्री कृष्ण और सुदामा एक पेड़ के नीचे बैठ जाते है बाकि सभी भी आराम से पेड़ के नीचे बैठ जाते है,
धीरे धीरे समय बीतता है तो सुदामा को भूख लग जाती है भूख लगने पर सुदामा पोटली में रखे चने खाने लगते है और श्री कृष्ण के पूछने पर मना कर देते है, श्री कृष्ण को पता होता है की सुदामा चुप चाप चने खा रहे है तो श्री कृष्ण मन में सुदामा को श्राप दे देते है अब से तुम दरिद्र होते चले जाओगे ।

(Shri Krishna) की शिक्षा पूर्ण हुई
फिर वह समय आता है जब शिक्षा पूरी हो जाती है सब अपने अपने घर जाने की तैयारी शुरू कर देते है समय बीतता जाता है सुदामा गरीब होते जाते है,
सुदामा श्री कृष्ण के बहुत बड़े भक्त होते है हर समय श्री कृष्ण का नाम जपते रहते है सुदामा की पत्नी सुशीला और 2 पुत्र थे, सुदामा इतने गरीब हो गया थे की उनको एक समय का भोजन तक नसीब नहीं होता था l
द्वापर के समय ब्राह्मण के कुछ नियम हुआ करते थे और इस धर्म नियम के हिसाब से चलते थे, वे दिन में 5 घरों में जा कर ही भिक्षा मांग सकते थे यदि उन घरों से भिक्षा मिली तो ठीक है नहीं तो भूखे ही सोना पड़ता था, गरीबी में जीवन यापन करते हुए सुदामा ने कभी धर्म का मार्ग नहीं त्यागा और निश दिन श्री कृष्ण का नाम जपते रहते थे l
उधर श्री कृष्ण (Shri Krishna) धन और यश से भर पूर थे सुदामा को पता था कृष्ण बहुत धनवान है और यह बात सुदामा अपनी पत्नी को बताते थे,कुछ समय बाद सुदामा इतने निर्धन हो गए की भोजन खाने तक को नहीं मिलता था l
सुदामा का द्वारिका जाना
तब उनकी पत्नी बोलती है जाओ अपने मित्र से कुछ सहायता मांग लो ताकि हम अपना जीवन यापन कर सके, लेकिन सुदामा धर्म उक्त जीवन यापन कर रहे थे तो उनका मानना था की भगवान से तो सब कुछ मांग लेना चाहिए, लेकिन मित्र के लिए उनका धर्म था कितनी भी विपत्ति आ जाये मित्र से सहायता नहीं लेनी चाहिए, इसी वजह से वे कृष्ण के घर नहीं जाना चाहते थे l
पत्नी के बार बार कहने पर सुदामा अपने मित्र से मिलने के लिए जाने की तैयारी करते है, और उनकी पत्नी श्री कृष्ण को भेट देने के लिए पड़ोस से दो मुट्ठी चावल ले आती है और सुदामा को देती हैं, सुदामा पोटली लिए श्री कृष्ण का जाप करते हुए चलते रहते है l
जब कृष्ण के महल पहुंचते है तो द्वारपाल रोक देते है और उनको बहुत सारी बाते बोल कर जाने के लिए बोलते है, सुदामा के अधिक विनती करते देख एक द्वारपाल श्री कृष्ण (Shri Krishna) को खबर देता है कोई गरीब निर्धन व्यक्ति आया हुआ है जो आपको अपना मित्र बता रहा है, और आपसे मिलने की प्रार्थना कर रहा है l
इतना सुनने के बाद श्री कृष्ण पूछते है क्या नाम है उनका द्वारपाल नाम बताते है सुदामा नाम सुन कर कृष्ण नंगे पैर ही दौड़ लगा देते है अपने मित्र से मिलने के लिए अपने मित्र से मिलते है उनको अपने साथ महल ले कर आते है l
श्री कृष्ण (Shri Krishna) उनको अपने पास बिठाते है और उनके पैर अपने आसू से धोते है, उनकी खूब सेवा करते है श्री कृष्ण पूछते है घर पर सब ठीक है भाभी ने मेरे लिए कुछ भेट भेजी है या नहीं l
बहुत ही हिच किचाते हुए सुदामा चावल की पोटली देते है पोटली देखने के बाद श्री कृष्ण कच्चे चावल ऐसे खाते है जैसे 56 भोग का भोजन प्राप्त हुआ हो l एक मुठ्ठी चावल खाते ही सुदामा के सारे कष्ट दूर कर देते है, दूसरी में सुदामा की गरीबी दूर कर देते है तिसरी मुट्ठी में तीनों लोक देना चाहते थे तभी कृष्ण की पत्नी रोक लेती है और आपस में बाट लेती है l
श्री कृष्ण (Shri Krishna) सुदामा से मिलकर बहुत प्रसन्न होते है और सुदामा के मन की शंका भी दूर होती है की मित्र मुझे पहचान पायेगा या नहीं, अब सुदामा अपने घर जाने के लिए कहते है तो श्री कृष्ण अपने मित्र को अपने रथ में छुड़वाते है और सुदामा के ग्राम को भगवान कुवेर के द्वारा एक सुंदर नगरी में परिवर्तित करवा देते है l
सुदामा के घर पहुंचने पर वह अपनी पत्नी को नहीं पहचान पाते है और अपने ग्राम में महल देख कर चौक जाते है और जब उनको पता चलता है की या सब उनके मित्र श्री कृष्ण की ही दें है तो वह श्री कृष्ण का आभार व्यक्त करते है और अपनी पत्नी के साथ मन लगा कर श्री कृष्ण की आराधना करते है l
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