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Shravan Kumar – श्रवण कुमार जीवन कथा

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भारतीय इतिहास की बहुत सी पौराणिक कथाएं हैं। जिनका वर्णन आज भी हमारे समाज में किया जाता है। यह कहानी एक ऐसे बालक की है जिसने अपने पुत्र होने का कर्तव्य अपने प्राणों का त्याग करके निभाया और अपना पूरा जीवन अपने माता पिता की सेवा में समर्पित कर दिया। तो आइए जानते है एक ऐसी पौराणिक कथा को जिसका संबंध रामायण (Ramayana) से है।

Shravan Kumar

कौन है श्रवण कुमार

जी हा आज हम श्रवण कुमार (Shravan Kumar) की बात कर रहे है जिसकी कथा का वर्णन हर किसी के मुंह से सुना होगा। श्रवण कुमार एक ऐसा पुत्र था जो अपने माता पिता की सेवा को ही अपना धर्म समझते थे। इनके इसी कर्तव्य ने आज इन्हे सतयुग से कलयुग में भी अमर बनाया है। साथ ही इनका संबंध रामायण के साथ भी है जिस कारण इस कथा का वर्णन रामायण के 64 वे अध्याय में किया गया है।

श्रवण कुमार का जीवन परिचय – Shravan Kumar

श्रवण कुमार की जिंदगी काफी कष्टों भरी थी। श्रवण कुमार के पिता जिनका नाम शांतुन (Shantun) था। जो एक साधु थे। और भगवान के पूजा पाठ में काफी लीन रहते थे। इनकी माता जिनका नाम ज्ञानवती (Gyanvati) था। श्रवण के माता पिता दोनो ही नेत्रहीन थे। जिस कारण उनकी जिंदगी काफी कष्ठों भरी थी और श्रवण भी एक ऐसे पुत्र थे जिन्होने अपने माता पिता की जिंदगी में उनका सहारा बन कर उनके हर काम में हाथ बटाया करते थे।

जब वह बड़े हो गए तो उनके घर के कामों में और बाकी अन्य कामों में अपनी माता का हाथ बटाने लगे जैसे भोजन बनाना, मां के लिए चिड़िया लाना। साथ ही अपने पिता जी के साथ उनकी पूजा पाठ उनको फूल तोड़ के देना और कथाओं का वर्णन करना और अन्य कामों में उनकी सहयात करने लगे।

श्रवण कुमार का वैवाहिक जीवन

जैसे जैसे समय बीतने लगा श्रवण कुमार बड़े होने लगे। जैसे ही वह विवाह के योग्य हुए तो उनके माता पिता ने अपने पुत्र का विवाह एक योग्य स्त्री के साथ कर दिया। लेकिन श्रवण कुमार की पत्नी उनके माता पिता को अपने जीवन का बोझ समझने लगी थी। जिस कारण वह उनसे अच्छे से व्यवहार न कर के उनकी बुराइयां करती थी। जब यह सब बातो का वर्णन श्रवण कुमार के आगे हुआ तो वह अपनी पत्नी से बेहद ही नाराज हुए।

जिस कारण उन्होंने अपनी पत्नी को काफी कुछ सुनाया। और परिणाम ये हुआ की वह रूठ कर अपने पिता के घर की और चल दी और कभी लौट कर वापिस नही आई। जिसके बाद श्रवण कुमार ने ही अपनी माता पिता की सेवा में खुद को समर्पित किया और उनकी हर इच्छा को पूरा करने का संकल्प लिया l

श्रवण कुमार ने पूर्ण की अपने माता पिता की इच्छा

श्रवण कुमार अपने माता पिता की हर इच्छा को पूरा करना चाहते। जैसे जैसे समय बीतता गया वह काफी वृद्ध होते गए। जिस कारण उनके माता पिता की तीर्थ जाने की इच्छा हुई। जब यह इच्छा उनके माता पिता ने अपने पुत्र को बताई, तो उन्होंने अपने माता पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए क्षण भर की भी देरी न की और उनके तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए तैयारी करने लगे। जिसके बाद उन्होंने दो टोकरी को लेकर एक कावड़ तैयार की।

जहाँ एक तरफ अपनी माता को तो दूसरी और अपने पिता को बिठाया और अपने कंधो पे वह कावड़ उठा के चल दिए। जिसके बाद उन्होंने अपने माता पिता को कई जगह के तीर्थ के दर्शन अपने कंधो पर करवाए जैसे की गया जी, काशी, प्रयागराज और भी कही अन्य तीर्थ स्थान पर उन्होंने अपने माता–पिता को दर्शन करवाए। श्रवण अपने माता पिता को तीर्थ के यात्रा अपने द्वारा वर्णन करते थे और उनके माता पिता अपने पुत्र की नेत्रों से हर तीर्थ को काफी अच्छे से देखने की कोशिश करते थे।

श्रवण कुमार मृत्यु

एक वक्त ऐसा आया जब आधे रास्ते में श्रवण कुमार पर मुसीबत ने हमला किया। तीर्थ के रास्ते में जब उनके माता पिता को प्यास लगी। तो वह उस कावड़ को नीचे रख कर अपने माता पिता के लिए पानी की तलाश करने लगे। जहाँ उन्हे एक नदी दिखाई दी। लेकिन उस वक्त उस वन में अयोध्या के राजा दशरथ भी थे। जो वन में शिकार करने आए हुए थे। लेकिन उन्हें उस दिन कोई भी जानवर शिकार के लिए नहीं दिखाई दिया और वह वापिस अयोध्या के और प्रस्थान करने लगे। लेकिन तभी उन्हें नदी के किनारे जब कोई आहट सुनाई दी ।

तो उन्होंने कोई प्यासा जानवर सोच कर उस पर तीर चला दिया। लेकिन वह और कोई नही श्रवण कुमार थे। जब राजा दशरथ उनके पास पहुंचे तो श्रवण कुमार दर्द से तड़प रहे थे। और यह देख कर राजा दशरथ अपनी गलती का पश्चाताप करने लगे और श्रवण कुमार से माफी मांगने लगे। लेकिन उस समय श्रवण कुमार ने उन्हे सिर्फ यही कहा की उन्हे अपनी मौत की कोई परवाह नहीं है। उन्हे बस अपने माता पिता की प्यास बुझानी है। जो उनकी प्रतीक्षा में उनका इंतजार कर रहे होंगे। तो क्या राजन आप मेरे माता पिता को मेरी मौत की जानकारी दे देंगे। और उनकी प्यास बुझा देंगे। और इतना कहकर अपने प्राण त्याग दिए l

राजा दशरथ को मिला श्राप

राजा दशरथ जब श्रवण कुमार की मृत्यु की जानकारी लेकर उनके माता पिता पास पहुंचे। तो उनके माता पिता को वहा आहट सुनाई दी। जैसे की उनके माता पिता नेत्रहीन थे तो वे आहट से ही अपने पुत्र को पहचानते थे। लेकिन उस वक्त वह आहट उनके पुत्र की नही थी। जिस कारण उन्होंने पुछा की कौन हो तुम, तब उस वक्त राजा दशरथ चुप रहे। उनके माता पिता के दुबारा पूछने पर उन्होंने अपना परिचय दिया और वहा बीता सारा दृश्य उन्हे बताया।

जिसके बाद उन्होंने राजा दशरथ को पुत्र वियोग में जीवन त्यागने का श्राप दिया। क्योंकि उनके पिता का कहना था की जिस तरह पुत्र वियोग में उन्होंने अपना जीवन त्यागा है, उसी तरह राजा दशरथ भी पुत्र वियोग में जीवन को त्याग देंगे। और ऐसा हुआ भी, राजा दशरथ अपने पुत्र राम के 14 वर्ष खुद से दूर रहने का दर्द सह न सके। और उन्होंने अपने पुत्र के वियोग में अपना शरीर त्याग दिया था।

सारांश :-

माता पिता को भगवान से ऊपर का दर्जा दिया गया है, क्योकि पुरे संसार में माता पिता ही होते है जो बिना स्वार्थ के अपने बच्चो का पालन पोषण करते है, लेकिन वही जब सेवा करने का समय बच्चो का आता है तो वह अपने एक माता पिता को पाल नहीं पाते, और घर से निकाल बाहर करते है । आज कलयुग में लोग अपने माता पिता को बोझ समझे है, और अधिकतर ये भी देखा जाता है की वह उन्हें बृद्ध आश्रम छोड़ आते है, जिसके बाद वह अपना जीवन सुखी समझते हैं। लेकिन इसके विपरीत ऐसे लोग पाप के भागी बनते है और इनका जीवन दुखमय बीतता है l

हमें श्रावण कुमार के जीवन से यह सीख लेनी चाहिए की , संसार छूट जाये किन्तु माता पिता नहीं छूटने चाहिए , माता पिता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है, आपकी सारी पूजा पाठ, तीर्थ और कर्मकांड व्यर्थ है यदि आप अपने माता पिता का सम्मान नहीं करते, उनकी सेवा से ही धरती पर ही स्वर्ग के दर्शन होते है l

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