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Neeraj Chopra

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आइए इस लेख के माध्यम से नीरज चोपड़ा के जीवन के बारे में जाने:-

नाम नीरज चोपड़ा
जन्मतिथि 24 दिसंबर 1997
आयु (2021) 23 वर्ष
धर्म हिंदू
जन्म स्थान पानीपत, हरियाणा
पिता का नाम सतीश चोपड़ा
माता का नाम सरोज देवी
खेल ट्रैक एंड फील्ड (जेवलिन थ्रो)
कोच उवे होन
प्रतिस्पर्धा जेवलिन थ्रोअर (भाला फेंकना)
पुरस्कार विशिष्ट सेवा मेडल
शिक्षा DAV कॉलेज, चंडीगढ़

 

टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए एथलीट में पहली बार गोल्‍ड मेडल जीतकर नीरज चोपड़ा जी ने इतिहास रचा है। नीरज ने भारत का 100 सालों का इंतजार खत्म किया है। मात्र 23 साल की उम्र में इन्होंने अपनी फिटनेस की जो मिसाल पेश की वो हर किसी को प्रेरित करने वाली है। आइये जानते है उनके बारे में।

नीरज चोपड़ा का परिचय।

Image/ Twitter/ Neeraj Chopra

नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर 1997 को पानीपत, हरियाणा में हुआ। नीरज हरियाणा के एक गांव खंडरा के रहने वाले हैं। उनके पिता का नाम सतीश चोपड़ा है जो कि पेशे से एक कृषक हैं। वहीं उनकी माता सरोज देवी हैं जो कि एक ग्रहणी हैं। नीरज के परिवार में उनके माता-पिता, भाई बहनों, तीन चाचाओं के अलावा 19 सदस्य एक ही छत के नीचे रहते हैं। वे अपने 10 चचेरे भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं।

बचपन में थे नीरज काफी मोटे |

कभी बचपन में 80 किलो का वजन लेकर आलोचना का शिकार होने वाले नीरज के लिए टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीतने का सफर तय करना इतना आसान नहीं था। इस बीच उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह अपने मोटापे से परेशान रहते थे।

पानीपत की मिट्टी से निकले नीरज |

देश को अपने प्रदर्शन से गर्व महसूस कराने वाले श्री नीरज चोपड़ा का जन्‍म हरियाणा के पानीपत में एक किसान परिवार में 24 दिसंबर 1997 को हुआ था। नीरज ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पानीपत से ही की। अपनी प्रारंभिक पढ़ाई को पूरा करने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ में एक बीबीए कॉलेज ज्वाइन किया था और वहीं से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी।

मोटापा कम करने के लिए थामा भाला |

Image/ Twitter/ Neeraj Chopra

श्री नीरज चोपड़ा अपने बचपन में बहुत मोटे थे। मात्र 13 साल की उम्र में ही उनका वजन करीब 80 किलो था। जिसके कारण गांव के दूसरे बच्‍चे उनका मजाक बनाते थे, उनके मोटापे से उनके परिवार वाले भी परेशान थे। इसलिए उनके चाचा उन्‍हें 13 साल की उम्र से दौड़ लगाने के लिए स्‍टेडियम ले जाने लगे। लेकिन इसके बाद भी उनका मन दौड़ में नहीं लगता था। स्‍टेडियम जाने के दौरान उन्‍होंने वहाँ पर दूसरे खिलाड़ियों को भाला फेंकते देखा, तो इसमें वो भी उतर गए। यहाँ से उनकी जिंदगी बदल गई।

यूट्यूब को बनाया था गुरु

एक समय ऐसा भी था, जब नीरज के पास कोच नहीं था। तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। वो यूट्यूब को ही अपना गुरु मानकर भाला फेंकने की बारीकियां सीखते थे। इसके बाद मैदान पर पहुँच जाते थे। उन्होंने वीडियो देखकर ही अपनी कई कमियों को दूर किया। शुरुआती दौर में नीरज को काफी मुश्किलें आईं। आर्थिक तंगी के कारण उनके परिवार के पास नीरज को अच्छी क्‍वालिटी की जेवलिन दिलाने के पैसे नहीं होते थे। लेकिन नीरज बिना किसी निराशा के सस्ती जेवलिन से ही अपनी प्रेक्टिस जारी रखते थे।

कोच ने दिया भाला फेंकने का प्रशिक्षण

Image/Neeraj Chopra with Coach /Jagran

नीरज चोपड़ा की प्रतिभा को देखते हुए सबसे पहले भाला फेंकने की कला पानीपत के कोच जयवीर सिंह ने उन्हें सिखाई। इसके बाद पंचकूला में उन्होंने 2011 से 2016 की शुरुआत तक ट्रेनिंग ली। हालांकि नीरज सिर्फ भाला ही नहीं फेंकते थे, बल्कि लंबी दूरी के धावकों के साथ दौड़ते भी थे। नीरज के साथ पंचकूला के हॉस्टल में रहने वाले कुछ दोस्त भी थे जो उनके साथ पानीपत में ट्रेनिंग किया करते थे।

ऐसे शुरू किया भाला फेंकने का खेल |

श्री नीरज चोपड़ा पढ़ाई के साथ- साथ जेवलिन यानी भाला फेंकने का भी अभ्‍यास करते रहे, इस दौरान उन्‍होंने नेशनल स्‍तर पर कई मेडल अपने नाम किए। नीरज ने 2016 में पोलैंड में हुए आईएएएफ वर्ल्ड यू- 20 चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर दूर भाला फेंककर गोल्ड जीता। जिससे खुश होकर आर्मी ने उन्‍हें राजपूताना रेजिमेंट में बतौर जूनियर कमीशंड ऑफिसर के तौर पर नायब सूबेदार के पद पर नियुक्त किया।

चोट के आगे भी नहीं टेके घुटने 

Neeraj Chopra while injured

श्री नीरज चोपड़ा के लिए ओलंपिक की राह आसान नहीं रही। उन्हें कंधे की चोट के कारण मैदान से दूर रहना पड़ा। कंधा ही मजबूत कड़ी होता है। नीरज भाले के बिना रह नहीं सकते थे। ठीक होने पर दोबारा मैदान पर वापसी की। कोरोना के कारण कई प्रतियोगिताएं नहीं खेल सके, पर हिम्‍मत नहीं हारी। टोक्‍यो ओलिंपिक में क्‍वालिफाइ कर ही लिया। अपने पहले ही टूर्नामेंट ने नीरज जी ने इसका कोटा हासिल कर लिया था।

भाला फेंकने में बनाए कई रिकॉर्ड

Image /Neeraj Chopra/ Twitter

नीरज चोपड़ा ने भाला फेंकने को ही अपना एकमात्र लक्ष्य बना लिया। साल 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में नीरज ने 88.06 मीटर का थ्रो कर गोल्ड मेडल जीता था। नीरज पहले भारतीय हैं जिन्होंने एशियन गेम्स में गोल्ड जीता है। एशियन गेम्स के इतिहास में जेवलिन थ्रो में अब तक भारत को सिर्फ दो मेडल ही मिले हैं। नीरज से पहले 1982 में श्री गुरतेज सिंह ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। पटियाला में आयोजित इंडियन ग्रांड प्रिक्स में अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए 88.07 मीटर का थ्रो कर नया नेशनल रिकार्ड बना दिया।

ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर रच दिया इतिहास

Image /Neeraj Chopra at Tokyo Olympics/ Twitter

टोक्यो ओलंपिक में भारत को एक गोल्ड की दरकरार थी। भारत के इस सूखे को खत्म करने का काम श्री नीरज चोपड़ा ने किया। साल 2008 के बाद भारत की तरफ से व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज दूसरे भारतीय खिलाड़ी बन गए। इससे पहले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक 2008 में गोल्ड मेडल जीता था। नीरज अपने फाइनल मुकाबले में उन्होंने अपने प्रदर्शन को और बेहतर करते हुए 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंका था। जिसकी वजह से वो भारत की ओर से एकमात्र गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी बने और उन्होंने इतिहास रच दिया।

 

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