हम सभी ने कभी न कभी कहानी सुनी या पड़ी होगी ,जब भी कहानी की बात करते है तो अनेको नाम सामने आते है, ऐसे ही एक महान कहानीकार को सभी जानते है जिनका नाम मुंशी प्रेमचंद है, जिन्होंने अपनी कहानी से सबका मन मोह लिया था , प्रेमचंद इतनी बारीकी से लिखते थे की सामने वाला पड़ने पर मजबूर हो जाता था l
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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
मुंशी प्रेमचंद का जन्म सन 31 जुलाई 1880 में वाराणसी जिले के लमही ग्राम में हुआ था ,इनका बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, पिता जी का नाम अजायब राय था माता का नाम आनंदी देवी था पत्नी का नाम शिवारानी देवी जो मुंशी प्रेमचंद के साथ (1906 से 1938) तक रही जिनके दो पुत्र अमृत राय और श्रीपथराय और पुत्री कमला देवी थी l
मुंशी प्रेमचंद अपनी उर्दू की कहानीयो में अपना नाम नबावराय के नाम से तथा हिंदी में मुंशी प्रेमचंद नाम से लिखते थे इनके दादा जी गुट सहाय राय पटवारी थे इनके पिता जी पेसे से डाक विभाग में पोस्ट मास्टर थे , बचपन से ही मुंशी प्रेमचंद का जीवन संघर्ष पूर्ण रहा है | सात वर्ष की आयु में मुंशी प्रेमचंद की माता का देहांत होने की वजह से उनके जीवन में कष्टों का पहाड़ टूट पड़ा था मुंशी प्रेमचंद माता पिता के प्यार से वंचित रह गये |
पिता जी की सरकारी नौकरी होने की वजह से उनका तबादला गोरखपुर हो गया , और कुछ समय बाद मुंशी प्रेमचंद के पिता जी ने दूसरा विवाह कर लिया , विवाह के पश्चात मुंशी प्रेमचंद को जो प्रेम दूसरी माँ से चाहते थे वह नही मिला, दूसरी माँ ने उनको अपनाया नही और उन पर सौतेली माँ वाला व्यवाहर करती थी l
बचपन से ही मुंशी प्रेमचंद को हिंदी की तरफ लगाव था , इसीलिए वह स्वयं से ही प्रयास करना शुरू कर दिया , शुरू में छोटे छोटे उपन्यास लिखना शुरू कर दिया , पढ़ने की रूचि से उनको उपन्याश लिखने में फायदा हुआ , इसीलिए उन्होंने एक पुस्तकालय पर नौकरी कर ली और दिन भर किताबे पड़ते रहते थे , मुंशी प्रेमचंद बहुत ही सरल सुभाव के थे किसी से फालतू बहस नही करते थे अपने जीवन का यापन करने के लिए एक वकील के पास 5 रूपए महिना पर काम कर लिया था , किताबे पढ़ने का फायदा यह हुआ की आगे चल कर एक स्कूल में प्रधानाचार्य बन गए l
Munshi Premchand – मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा
प्रेमचंद का जीवन बहुत ही कष्टमय रहा था , शुरू की शिक्षा अपने वाराणसी जिले के लमही ग्राम में एक छोटे मदरसे से करी थी , मदरसे से ही उन्होंने हिंदी उर्दू और थोड़ी सी अंग्रेजी का ज्ञान प्राप किया , ऐसे ही धीरे धीरे प्रेमचंद ने अपनी शिक्षा आगे बढाई और स्नातक के लिए बनारस के एक कॉलेज में दाखिला ले लिया लेकिन पैसो की तंग्गी और दूसरी परेशानी की वजह से अपनी शिक्षा आधे में छोड़ना पड़ा , लेकिन मुंशी प्रेमचंद अपने जीवन में हार नही मानी , और कुछ समय प्रेमचंद ने अपनी बी ए की शिक्षा पूरी कर ली l
कम आयु में मुंशी प्रेमचंद का विवाह
प्रेमचंद का जीवन कष्टों से गुजर ही रहा था की उनके पिता जी ने उनका विवाह तय कर दिया, प्रेमचंद शादी नही करना चाहते थे , लेकिन परिवार के दवाव के कारण प्रेमचंद को विवाह करना पड़ा , प्रेमचंद की शादी जिन से हुई उनका स्वभाव बहुत ही झगडालू था, प्रेमचंद के विचार उनकी पत्नी से नही मिलते थे जिसकी वजह से आपस में झगडे होते थे पिता जी ने विवाह इसलिए करा दिया क्योकि लड़की अमीर घर से थी l
कुछ समय पश्चात प्रेमचंद के पिता जी का देहांत हो गया और पुरे परिवार की जिमेदारी भी उनके ऊपर आ गई , अपनी पत्नी के झगडालू स्वाभाव के कारण उनकी आपस में नही बनती थी ,प्रेमचंद की तनखा से घर नही चल पा रहा था तो कीमती चीजो को बेच कर गुजरा करने लगे , प्रेमचंद जी की पत्नी का स्वाभाव परिवर्तन न होने के कारण प्रेमचंद ने तलाक ले लिया और अलग हो गये l
हिंदी में रूचि होने के कारण उनकी मुलाकात एक लेखिका से हुई , जिनसे प्रेमचंद ने विवाह किया और यह दूसरा विवाह कामयाब रहा , काव्य लेखन में उनको तरक्की मिली और उनका जीवन बदलने लगा है |
मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन
- “जीवन की चिंता मत करो, उसे जीने का आदान-प्रदान करो।”
- “कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”
- “सफलता वह होती है जब तुम अपने कर्मों के माध्यम से दूसरों की मदद करते हो।”
- “जीवन का सबसे बड़ा धन आपकी सफलता की स्वतंत्रता है।
- “सच्चा और निष्पक्ष रहो, इससे आपकी समाज में मान्यता बढ़ेगी।”
- “पढ़ाई में आपकी सफलता आपके अध्ययन के आदान-प्रदान पर निर्भर करती है।”
- “अपने मन की सुनो, लेकिन बुद्धिमानी के साथ कार्रवाई करो।”
- “समय की कीमत समझो और उसे बर्बाद न करो।
- “ईमानदारी और सत्य की प्रतिष्ठा निर्माण करो, यह आपकी मूल्यवानी है।”
- “धन की ज़रूरत है, परंतु मानवीय मूल्यों की प्राथमिकता रखो।
मुंशी प्रेम चंद की काव्य शैली
मुंशी प्रेमचंद भारतीय साहित्य के मशहूर कवि, उपन्यासकार, नाटककार, और लेखक थे। उनकी काव्य शैली बहुत ही प्रभावशाली और सरल थी, जो आम जनता तक बहुत आसानी से पहुंचती थी। उनकी रचनाओं में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को दर्शाने का भी अद्वितीय तरीका था।
मुंशी जी की काव्य शैली में सादगी और सरलता का बहुत महत्व होता था। उनकी कविताओं में साधारण भाषा का प्रयोग होता था जो आसानी से समझ में आती थी। उनकी रचनाओं में आम आदमी की जीवनसत्यता, समस्याओं, और उसके दुःख-दर्द को प्रकट करने की कोशिश दिखती है।
प्रेमचंद की कविताओं में जीवन की मुश्किलें, समाजिक विभेद, प्रेम, अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पण और स्वावलंबन जैसे मुद्दे आमतौर पर प्रमुखता से प्रदर्शित होते हैं। उनकी कविताओं में भाषा की सुंदरता और संगठन का ध्यान रखा गया है, जो उन्हें एक अद्वितीय लेखक बनाता हैं।
प्रेमचंद की काव्य शैली में उनकी सामाजिक और राष्ट्रीय चिंताएं प्रखर रूप से प्रदर्शित होती हैं। उनकी कविताओं में सामाजिक न्याय, नारी सम्मान, शोषण, अशिक्षा, गरीबी और जाति-धर्म से संबंधित मुद्दों को उठाया जाता है। वे समाज की अशांति और असमानताओं पर कटुता से चिढ़ाते थे।
मुंशी प्रेमचंद की काव्य शैली बहुत ही प्रभावशाली, आकर्षक और सरल थी जो आम जनता के दिलों में स्थान बना सकती थी। उनके काव्य का प्रभाव आज भी हमारे साहित्यिक और सामाजिक संज्ञान में दिखाई देता है।
मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाये
संख्या | रचना |
---|---|
1 | गोदान |
2 | गबन |
3 | नागरीक |
4 | करमभूमि |
5 | रंगभूमि |
6 | प्रेमचंद की आत्मकथा |
7 | काफ़न |
8 | निर्मला |
9 | पूस की रातें |
10 | धनपत राय की कहानी |
11 | इंसान और जानवर |
12 | कफ़न और गोदान |
13 | मंगलसूत्र |
14 | रामलीला |
15 | सख़ी सहेली |
मुंशी जी के जीवन से सीख
मुंशी प्रेमचंद के जीवन से निकले किस्से और संघर्षों हमें काफी सीख देते हैं। सतत परिश्रम और सहानुभूति सामाजिक और व्यक्तिगत चुनौतियों को पार कर सकती हैं। जीवन में चुनौतियों का सामना करते हुए, सतत परिश्रम करने, सहानुभूति को पोषण देने, और अपने कला का उपयोग करके सामाजिक मुद्दों का चर्चा करने में लगे रहने से, हम समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं और मायने रखने वाले परिवर्तन को लाने में समर्थ हो सकते हैं।
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