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Life Lesson – द्रोपदी के तीखे वचन

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Life Lesson– हम सभी ने महाभारत देखी और सुनी है , महाभारत में अनेकों पात्र है, उन्ही में से एक पात्र द्रोपदी थी, महाभारत काव्य में द्रोपदी का उल्लेख दिया हुआ है , द्रोपदी उन पांच कन्याओं में से एक है जिन्हे चिर-कुमारी कहा जाता है । द्रोपदी को महाभारत काव्य में अनेक नाम दिए गए है जैसे कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री जिसमे द्रोपदी और पांचाली नाम अधिक प्रसिद्ध है।

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महाभारत के अनुसार द्रोपदी का जन्म द्रुपद के यहां हवनकुंड से हुआ था। ध्रुपद ने अपने राज्य में हवन का आयोजन किया था, जिसमे से द्रोपदी की उत्पत्ति हुई , ये कोई साधारण कन्या नहीं थी द्रोपदी पिछले जन्म में एक ऋषि की पुत्री थी, पिछले जन्म में द्रोपदी ने पति की कामना में घोर तपस्या की थी । क्योंकि द्रोपदी को एक ऐसे पति की कामना थी जो। बलशाली , श्रेष्ठ धनोधर, बुद्धिमान, सुंदर काया ,एक ही पति में सारी खूबियां हो , महादेव ने प्रसन्न हो कर द्रोपदी को वरदान दे दिया , अगले जन्म में द्रोपदी तुम्हारे पांच पति होगे हस्तिनापुर के महाराज पाण्डु के पुत्र होगे । और ये पांचाली कहलायी l

जब पाण्डु पुत्रों की शिक्षा समाप्त हुई , उधर महाराज ध्रुपद ने अपनी पुत्री द्रोपदी के स्वामवर की घोषणा करी , ध्रुपद को मालूम था की द्रोपदी एक साधारण कन्या नही है इस लिए ध्रुपद ने एक शर्त रखी , जो इस शिव धनुष पर प्रत्नचा चढ़ाएगा और नीचे पानी में देखते हुए ऊपर घूम रही मछली की आंख में तीर मरेगा ।
उसके गले में द्रोपदी वरमाला पहनाएगी । उस स्वामवार में सभी आए हुए , महारथी ने पूरी कोशिश की लेकिन शिव धनुष नहीं उठा पाए । तब अंत में अर्जुन ने शिव धनुष को उठाया और मछली की आंख में निशाना लगाया और द्रोपदी से विवाह किया l
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कर्ण का अपमान

द्रोपदी ने तीखे वचन बोल कर दुर्योधन और कर्ण का अपमान किया था जो महाभारत युद्ध के कारण बने , जिस समय पांचाली का स्वामवर हो रहा था तो उस समय दानवीर कर्ण भी वहां मौजूद थे, पूरी सभा में इकलौते कर्ण ही ऐसे महारथी थे जो उस शिव धनुष को उठा सकते थे , जब दानवीर कर्ण शिव धनुष को उठा लेते है तो श्री कृष्ण पांचाली को इशारा करके कर्ण से विवाह करने के लिए मना कर देते है, फिर पंचाली ने कर्ण को तीखे वचन बोलते कहती है की मैं किसी सूत पुत्र से विवाह नही कर सकती । जिसको सुन कर कर्ण उसी समय उस सभा से चले जाते है ।

दुर्योधन का अपमान

हस्तिनापुर राज्य का विभाजन हुआ था तब पाण्डव को उनकी कर्म भूमी प्राप्त हुई थी , पाण्डव ने अपनी कर्म भूमी को पुनः निर्माण किया , जिसे इन्द्रप्रस्त का मान दिया , इन्द्रप्रस्त जितना बहार से देखने में सुन्दर दिखता उतना ही वह अन्दर से रहस्यमय था , एक बार दुर्योधन ने इन्द्रप्रस्त आने की इच्छा जताई तो , युधिस्टर ने आदर सहित बुलाया , इन्द्रप्रस्त देख कर दुर्योधन बहुत ही प्रसन्न हुआ,

दुर्योधन इन्द्रप्रस्त को देखने के लिए निकला तो , वह एक भवन के पास पंहुचा जिसमे लगातार जल प्रवाह हो रहा था लेकिन दुर्योधन को लगा ये एक माया है , नजर अंदाज करते हुए दुर्योधन चलने लगा , जैसे ही आगे बड़ा वह पानी में गिर गया , वही पांचाली खड़ी थी और उन्होंने देखते ही वोला , अन्धे का पुत्र अन्धा , अपमानित शब्द सुन कर वह वहां से चला गया लेकिन , ये बात उसके मन में बैठ गई , ये कटु वचन आगे चल के महाभारत के कारण बने l

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द्रोपदी (पांचाली ) का चीरहरण

महाभारत होने के कई कारण थे , उन्ही कारणों में से एक कारण द्रोपदी के कटु वचन थे , जिनकी वजह महाभारत हुई , जब दुर्योधन को अन्धे का पुत्र अन्धा बोला तो दुर्योधन ने पांचाली को अपमानित करने का मन बना लिया , इसलिए दुर्योधन ने पांडवो दियुत क्रीडा के लिए आमंत्रित किया , दियुत क्रीडा खेलने के लिए पांचो पाण्डव और पांचाली सहित हस्तिनापुर आये , लेकिन दुर्योधन के मामा सकुनी के पासे उन्ही की बात मानते थे जिस वजह से पाण्डव अपना सारा राज पाट हार गये , अंत में दुर्योधन ने पांडवो को अपना दास बना लिया और पांचाली को अपमानित करने के लिए , दुशाहसन को पांचाली को भरी सभा में लाने को कहा,

यह सब देख कर भीम सेन ने दुर्योधन की जांघ तोड़ने की प्रतिज्ञा करी और दुशाहसन के सीने से लहू निकालकर द्रोपदी के केश धोने की प्रतिज्ञा की दुशाहसन पांचाली को भरी सभा में बाल पकड़ कर खीचता हुआ लाया , पांचाली की साड़ी खीचने लगा , तब कर्ण ने पांचाली को वैश्या बोला और दुर्योधन ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांचाली का चीरहरण करवाया l

यह सब होने के पश्चात हस्तिनापुर के महराज ने पाण्डव का सारा राज पाट लौटा दिया लेकिन दुर्योधन के मन पाण्डव को एक सुई की नोक बरावर भूमी न देने का प्रण लिया , जिस वजह से दौबारा दियुत क्रीडा हुई , फिर पाण्डव हारे जिस पर पाण्डव को 12 वर्ष का वनवाश और 1 वर्ष का अज्ञात वाश मिला ,

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कहानी का सार

द्रोपदी के वचनों से सभी को यही सीख मिलाती है , अपने शब्दों को पहले मन में तोलो उसके बाद बोलो , द्रोपदी ने बिना सोचे समझे पहले कर्ण को तीखे शब्द बोलो जिसकी बजह से कर्ण ने द्रोपदी को भरी सभा में अपमानित किया बोलो , जबकि कर्ण नारियो का सम्मान करते थे , दूसरे वचन दुर्योधन को बोले , ये वचन पांचाली के चीरहरण और महाभारत का कारण बने, और आज भी महाभारत युद्ध का सारा दोष द्रोपदी को दिया जाता है l इसलिये कभी भी कुछ बोलने से पहले उसका मोल कर लेना चाहिए अन्यथा उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है l

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