Khatu Shyam- खाटू श्याम- हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा
भारत देश मान्यताओ का देश है जहाँ पूजा पाठ, यज्ञ हवन प्राचीन मंदिर,चमत्कार होते रहते है. यहाँ हर इंसान के मन में एक अटूट विशवास होता है जो उनको जीवन के कठिन परिस्थिति में डट के सामना करने का हौसला देता है ,ऐसी ही एक मान्यता है कलयुग में हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा । नाम सुनकर सभी को भगवान श्री कृष्ण की याद आती है लेकिन बाबा खाटू श्याम अलग है और श्री कृष्ण अलग है, आइये जानते है बाबा खाटू श्याम के बारे में…..
Table of Contents

Khatu Shyam-खाटू श्याम का जन्म
Khatu Shyam- खाटू श्याम का महाभारत काल से संबंध है, महाभारत के समय पांच पांडव में से मजले पांडव भीमसेन के पुत्र घटोत्कच का बेटा था, जिनका नाम बर्बरीक था, सर पर घने और सुनहरे बाल होने के कारण नाम बर्बरीक पड़ा बर्बरीक के पिता का नाम घटोचगच और माता का नाम मोरवी था, घटोत्कच और मोरवी का मिलन भगवान श्री कृष्ण की वजह से हुआ, जब श्री कृष्ण ने घटोत्कच के विवाह के लिए भीम सेन को बोला तो भीमसेन ने उन्हें ही पुत्र बधु ढूढने के लिए बोला दिया ,
तब श्री कृष्ण ने मोरवी के बारे में बताया की मोरवी नाम की एक कन्या है जो बहुत तेजस्वानी और ज्ञानी है, लेकिन मोरवी की एक शर्त थी की जो मुझे युद्ध और सासर्थ में हराएगा उसी से मैं विवाह करुगी और जो हारेगा उसे मृत्यु मिलेगी । तब घटोत्कच जाते है और मोरवी को हराते है और उन्हें अपनी पत्नी के रूम में स्वीकार करते है । इसके कुछ समय बाद बर्बरीक का जन्म होता है l
Khatu Shyam- खाटू श्याम की शिक्षा
बर्बरीक जो अपने पिता की तरह काफी शक्तिशाली और धनुर्धर था बर्बरीक के गुरु श्री कृष्ण थे बर्बरीक बचपन से ही बहुत ही तेजस्वी बालक था ,भगवान श्री कृष्ण ने उसे शिक्षा प्रदान करके उसे और ज्ञानी और तेजस्वी बना दिया, बर्बरीक एक महान योद्धा बना । महाभारत में बर्बरीक अकेले ही पूरी सेना को समाप्त कर सकता था । बर्बरीक युद्ध कौशल में अपने काका अर्जुन को भी पीछे छोड़ दिया था l
बर्बरीक का नाम (Khatu Shyam) खाटू श्याम कैसे पड़ा
बर्बरीक एक महान योद्धा था अपने काका अर्जुन की तरह धनुर्धर विद्या में निपूर्ण था, अकेले ही महाभारत समाप्त कर सकता था जब महाभारत शुरू होती है जिसके बाद भीम के पौत्र ने पेड़ के नीचे खड़े होकर यह अपनी माता के वचन के अनुसार यह घोषणा की, जो भी युद्ध में हारता हुआ दिखाई देगा वे उनकी तरफ से युद्ध में लड़ाई करेंगे। जिसके बाद श्री कृष्ण काफी चिंतित हो गए क्योंकि श्रीकृष्ण बर्बरीक की काबिलियत को अच्छे से जानते थे।
जिसके बाद उन्होंने बर्बरीक को अपने कुछ नमूना दिखाने को कहा। बर्बरीक ने कृष्ण जी से पूछा की वो क्या करे। तब कृष्ण जी ने उन्हे पीपल के पेड़ के सारे पत्तो और जो भी पत्ते नीचे गिरे हुए उनमें अपने एक बाण से छेद करने को कहा। जिसके बाद उन्होंने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष के पत्तो को छेदने के लिए छोड़ा। जिस दौरान एक पत्ता कृष्ण जी के पास आकर गिर पड़ता है। जिसके बाद श्री कृष्ण इस पत्ते को अपने पैर नीचे छुपा लेते है।
लेकिन बर्बरीक ने अपने छोड़े हुए तीर को हर पत्तो के अंदर छेद करने की आज्ञा दी थी। जिसके बाद वह तीर श्री कृष्ण जी के पैरो के पास आकर रुक गया। जिसके बाद बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी को पैर हटाने को कहा। यह सब देखने के बाद श्री कृष्ण और भी चिंतित हो गए। क्योंकि वह युद्ध का अंत जानते थे तो उन्होंने सोचा यदि कौरव हारते हुए नजर आयेंगे तो बर्बरीक उनका साथ देगा। जिसे पांडवो के लिए मुसीबत खड़ी होगी।
जिसके बाद श्री कृष्ण ने इस समस्या का हल निकालने के लिए एक ब्राह्मण का रूप लेकर बर्बरीक के शिवर जा पहुंचे, और उनसे दान माँगा । जब बर्बरीक ने उनसे दान में क्या दू यह पूछा, तो उन्होंने बर्बरीक का शीश मांगा। जिसके बाद एक धनुर्धर होते हुए उन्होंने अपना शीश तलवार से काटते हुए ब्राह्मण को दे दिया। लेकिन शीश देने के बाद उन्होंने श्री कृष्ण जी से अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा की वह इस युद्ध को तब तक देखना चाहते है जब तक युद्ध खत्म नहीं होता। यह इच्छा के चलते हुए श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक का शीश एक पहाड़ी पे रखा दिया। जहा से उन्होंने युद्ध की अच्छी तरह से देखा।

बर्बरीक से प्रसन्न हुए श्री कृष्ण
जब युद्ध समाप्त हुआ तब पांडवो में एक दूसरे के बीच अनुरोध होने लगा। की इस लड़ाई को जीतने का श्रेय किसे जाता है। यह सब का अंत न होते हुए, श्री कृष्ण जी ने एक सुझाव दिया की। क्यों ना इस लड़ाई का श्रेय हम बर्बरीक के शीश से पूछे । क्योंकि एक वही है जिन्होंने पूरा युद्ध अच्छी तरह से देखा है। जिसके बाद सारे योद्धा बर्बरीक के शीश के पास जा पहुंचे और उनसे युद्ध का श्रेय के बारे में पुछा ।
तब बर्बरीक ने युद्ध का श्रेय सिर्फ श्री कृष्ण जी को दिया। उनका कहना था की उन्हे युद्ध में सिर्फ श्री कृष्ण जी का सुदर्शन चक्र ही दिखाई दे रहा था। जो युद्ध को जिताने में सफल रहा। जिसके बाद श्री कृष्ण जी बर्बरीक के दान से प्रसन्न होकर उन्हें कलयुग में अपने नाम से जाना जाने का वरदान दिया। तब से हम उनेह खाटू श्याम बाबा के नाम से जानते है l
कलयुग में बर्बरीक का मंदिर
राजस्थान (Rajasthan ) के शेखावाटी के सीकर जिले में स्थित है धाम खाटू श्याम का मंदिर। जहाँ 365 दिन श्रधालुओ की भीड़ लगी रहती है ऐसा माना जाता है कलयुग में जो श्रद्धालु सच्चे मन से बाबा के धाम आता है अपनी मनोकामना ले कर उसकी मनोकामना बाबा खाटू श्याम पूरी करते है, भगवान श्री कृष्ण ने वरदान दिया था किसी का भाग्य मैंने लिख दिया कोई बदल नही सकता पर कलयुग में जिसका भाग्य तुम बदलना चाहोगे बदल सकते हो इसीलिए श्रद्धालू अपनी मनोकामना लेकर बाबा खाटू श्याम के धाम आते है l
Instagram- Click Here
Read More – क्लिक करे
ये भी पढ़े –
2. 12 ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) का इतिहास: पवित्र स्थलों की रोचक यात्रा
3. Amogh Lila Prabhu – अमोघ लीला प्रभु
4. Iskon Temple – इस्कॉन मंदिर का उद्देश्य
6.Golden Temple – स्वर्ण मंदिर का इतिहास
7.Vaishno Devi – वैष्णो देवी माता मंदिर का इतिहास
8.Jagannath Temple – जगन्नाथ मंदिर का इतिहास