सूर्य पुत्र कर्ण
जब कभी दान पुण्य की बात आती है तो कुंती – सूर्य पुत्र कर्ण का नाम सबसे ऊपर आता है , महाभारत में अर्जुन और युधिष्टर जैसे कई महान चरित्रों का वर्णन मिलता है, लेकिन जहाँ दान की बात आती है तो श्री कृष्ण भी सूर्य पुत्र कर्ण की प्रसंशा ही करते है , श्री कृष्ण कर्ण की प्रशंसा करते हुए कहते की सदी का सबसे महान दानवीर योद्धा कर्ण है l

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कौन थे कर्ण – Who is Karna
Karna के अनेक नाम है जैसे सूर्य पुत्र कर्ण , सूत पुत्र कर्ण ,राधेय ,वसुसेन,दानवीर कर्ण,अंगराज कर्ण,विजय धारी , सबसे प्रसिद्ध नाम दान वीर कर्ण हुआ है , कर्ण का जीवन बहुत ही संघर्ष पूर्ण था, कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले हो गया था, क्योकि कुंती की तपस्या से प्रभावित हो कर ऋषि ने उनको एक मंत्र दिया ,जिस देवता का नाम लेकर इस मंत्र उच्चारण करेगी , वह देवता प्रकट हो कर उनको एक पुत्र प्रदान करेगे,
कुंती ने सूर्य देव का नाम लेकर इस मंत्र का प्रयोग किया जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ, लेकिन कुंती अविवाहित थी इसलिए वह कर्ण को नदी में छोड़ देती है, जिसके पश्चात राधा और अधिरथ कर्ण का पालन करते है, कर्ण वचपन से ही कान में कुण्डल और शरीर पर कबच पहने हुए ही पैदा हुए थे l
सूर्य पुत्र कर्ण के कुण्डल और कबच में इतनी शक्ति थी , की जव तक कर्ण के पास ये दोनों चीजे थी तब तक कोई कर्ण को मार नही सकता था, कुंती ने कर्ण को देखा और अन्दर ही अन्दर डर रही थी, शादी से पहले पुत्र प्राप्ति उस समय पाप माना जाता था उसी डर से कुंती ने कर्ण को एक टोकरी में रख कर पानी में वहा दिया और कर्ण बहते हुए सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिले जो पितामा भीष्म के सार्थी थे l
कर्ण की शिक्षा – Karna Training
सूर्य पुत्र कर्ण को शुरु से धनुष चलाने में अधिक रूचि थी, घुड़सवारी में उन्हें आनंद नही आता था इसलिए उनके पिता गुरु द्रोणाचार्य के पास गये और कर्ण के गुरु बनने की प्रार्थना की लेकिन द्रोणाचार्य ने माना कर दिया क्योकि उस समय वह हस्तिनापुर के गुरु थे और वे सिर्फ छत्रियों को ही शिक्षा दे सकते थे, कर्ण शुद्र थे ,अपनी शिक्षा के लिए बहुत परेशान हुए थे क्योंकी कर्ण कर्म से तो छत्रिय थे लेकिन समाज के हिसाब से सूद्र थे, जिसकी बजह से समाज ने उन्हें स्वीकार नही किया l
उसके पश्चात वे भगवन परशुराम के पास गये ,भगवन परशुराम ने कर्ण को शिक्षा दी और कर्ण सबसे बड़े धनुर्धर बने, और अपनी पूरी शिक्षा भगवान परशुराम से प्राप्त की और परशुराम के प्रिय शिष्य बने l
शिक्षा के दौरान कर्ण को मिले श्राप
युद्ध विद्या काम नही आयेगी– कर्ण ने अपनी शिक्षा भगवान परशुराम से प्राप्त की , लेकिन भगवान परशुराम झूट बोलने से नफरत करते थे, एक बार जब भगवान परशुराम नीद पूरी कर रहे थे तो कर्ण ने भगवान परशुराम का सिर अपनी गोद में रखा हुआ था,
और तभी एक भयानक कीड़ा कर्ण की जांग पर काट रहा था कर्ण इस पीड़ा को आराम से शह रहे थे भगवान परशुराम की नीद खुली तो उन्होंने कर्ण को कष्ट सहन करता देख उनको विश्वास हो गया की कर्ण सूद्र नही है बल्कि एक छत्रिय है और उन्होंने कर्ण को श्राप दिया की कर्ण जब तुमको मेरी विद्या की सबसे अधिक आवश्यकता होगी उस समय मेरी विद्या कभी काम नही आयेगी l
रथ का पहिंयाँ जमीन में धस जायेगा – एक दिन कर्ण धनुष ले कर जंगल में शिकार करने निकले और शिकार करते समय कर्ण ने गलती से गाय के बच्चे को मार दिया, वह गाय का बच्चा एक ऋषि का था ऋषि को पता चला तो ऋषि ने कर्ण को श्राप दिया , की जब तुम अपने सबसे महत्वपूर्ण युद्ध में होगे तो तुम्हारे रथ का पहिया जमीन में धस जायेगा l

कर्ण का विवाह
कर्ण जब युवा अवस्था में तब उनका मन एक राजकुमारी पर आ गया, लेकिन राजकुमारी ने कर्ण को सूतपुत्र मानकर अपने पिता द्वारा आयोजित स्वयंवर में दूसरे व्यक्ति का चयन कर लिया जिसे देख कर कर्ण को बहुत ही क्रोधित हो गए और उन्होंने उसी समाहरोह में स्थित उनकी सहेली से शादी रचाई और अपने राज्य अंगप्रदेश में वापस आ गए और आराम से जीवन यापन करने लगे l
कर्ण की मित्रता
सूर्य पुत्र कर्ण एक आदर्शवादी व्यक्ति थे जब सारे लोगो ने कर्ण का अपमान किया तब दुर्योधन धन ने कर्ण को अपना मित्र बनाया और राज्य का एक छोटा हिस्सा जिसका नाम अंगप्रदेश था वहां का राजा बनाया और अपनी सभा में उचा दर्जा दिया, कर्ण ने इस ऋण को सबसे ऊपर रखा ,कर्ण ने और अपने मित्र के लिए अधर्म का भी साथ दिया जिसका उनको फल भोगना पड़ा ,और महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त किया .,
कर्ण के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
सूर्य पुत्र कर्ण का जीवन कष्टों में बीता, लेकिन कर्ण अर्जुन के बाद सबसे बड़े योधा थे, कर्ण अधर्म के साथ थे जिसकी बजह से अपने प्राण देने पड़े , कर्ण सूर्य देव के पुत्र थे , कुंती उनकी माँ थी , वैसे तो पाण्डव पाच भाई थे लेकिन कुंती के पहले पुत्र कर्ण थे पाण्डव पांच नहीं छः भाई थे जिसमे कर्ण सबसे बड़े थे , लेकिन दुःख की बात तो यह थी की कर्ण की मृत्यु के पश्चात उनके भाइयो को पता चला की कर्ण उनके बड़े भाई है l
महाभारत में कर्ण का योगदान
सूर्य पुत्र कर्ण का महाभारत के युद्ध महत्वपूर्ण योगदान था, कर्ण अकेले ही महाभारत के युद्ध को समाप्त कर सकते थे, क्योंकि कर्ण अर्जुन से भी अधिक महान योद्धा थे , महाभारत के युद्ध में कर्ण के तीर अर्जुन के रथ को पीछे हटा देते थे जबकि अर्जुन के रथ पर त्रिलोकी नाथ, भगवान हनुमान विराजमान थे , कर्ण को अगर भगवान परशुराम ने यदि कर्ण को श्राप नही दिया होता तो महाभारत का परिणाम कुछ और ही होता और अर्जुन की जगह कर्ण महाभारत के विजेता होते l
कर्ण की मृत्यु – Karna Death
कौरव और पाण्डव के बीच अब तक का सबसे बड़ा युद्ध हुआ जिसको महाभारत के नाम दिया, जिसके रचियता वेद व्यास जी थे इसमें कर्ण की मृत्यु के बारे में बताया गया है कर्ण ने अधर्म का साथ दिया था कर्ण को पता था वो अधर्म का साथ दे रहे है फिर भी वे अधर्म की तरफ से लडे थे और उनके गुरु भगवांन परशुराम का श्राप महत्वपूर्ण कारण था, महाभारत के युद्ध में कर्ण और अर्जुन के बीच हुए युद्ध में अर्जुन ने कर्ण का शीश अपने तीर से काट दिया था और इस तरह महान युग के महान योद्धा का अंत हुआ l
कहानी का सार
कर्ण के जीवन से हमें यह सीख मिलती है की हमें हमेश दान वीर और दयालु होना चाहिये l उसका उदार मन और दानशीलता हमें यह सिखाता है कि हमें संघर्ष करने वालों की मदद करनी चाहिए और अपना धन और समय दान करके दूसरों की मदद करनी चाहिए ।
कर्ण की कथा से हमें सामर्थ्य की महत्वपूर्णता समझ में आती है। वह कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद अपनी प्रतिभा और सामर्थ्य के बल पर आगे बढ़ते हैं। जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना और संघर्ष करना महत्वपूर्ण है।
कर्ण न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ क्षत्रिय योद्धा थे , उन्होंने कभी न्याय से पक्षपात नहीं किया और अपने मित्रो के पक्ष में स्थिर होकर खड़े रहना हमें यह ज्ञात कराता है कि न्यायप्रियता, धर्म के पालन और सत्य का पालन करना हमारी मूल्यवान संपत्ति होनी चाहिए।
कर्ण को दानशीलता का सबसे महान उदहारण माना जाता है , क्योंकि वह दानधर्म के हमेश तत्पर रहते थे और अन्य जनों की सेवा के लिए अपनी संपत्ति का उपयोग करते थे, हमें यह सिखाता है कि समाजसेवा और अन्यों की मदद करना हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए।
कर्ण की कथा हमें परिवार के महत्व को समझाती है। वे अपने माता-पिता, गुरु और भाई-बहन के प्रति आदर और सम्मान का पालन करते थे। हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने परिवार के सदस्यों के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान का ध्यान रखना चाहिए l
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