Jagannath Temple – हम सबने भारत के चार धामों के बारे में तो सुना ही है । क्योंकि हमने देखा और सुना हैं की जब व्यक्ति अपने जीवन की सारी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता हैं तो वह चार धाम की यात्रा कर अपने बचे जीवन को सुखी बनाना चाहता हैं। ऐसे ही इन चारो धामों में से एक धाम जगन्नाथ धाम, जो भगवान कृष्ण जी को समर्पित है। अपको बता दे की यह धाम भी बहुत सी रोचक बातो को अपने अंदर समेटे बैठा हैं। और यहाँ आज लाखो की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। तो आइए जानते है जगन्नाथ धाम के बारे में।
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कहाँ है जगन्नाथ मंदिर
जगन्नाथ धाम जो ओडिसा (Odisha ) राज्य के जिले पूरी में समुंदरी तट पर स्थित है पूरी स्थान पर स्थित होने के कारण पूरे क्षेत्र को जगन्नाथ पुरी भी कहा जाता है। यह धाम कृष्ण जी का धाम है। और जगन्नाथ नाम भगवान श्री कृष्ण जी के नामो में से एक नाम है जो दो शब्दो जगन+ नाथ से मिलकर बना है।
जिसका अर्थ है जगन यानी “जग” और नाथ यानी “स्वामी” यानी जग का स्वामी। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है, की इस मंदिर में भगवान कृष्ण और उनके श्रेष्ठ बलवान भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा शाम के समय यह विश्राम करने आते है। और पुराणों के अनुसार इस धाम को वेखुंठ धाम भी कहा गया है ।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
पौराणिक कहानी के अनुसार जगन्नाथ मंदिर के पीछे एक ऐसा रहस्य है की श्री कृष्ण जी ने कलयुग में जन्म लिया था उसके बाद उन्होंने वह जगन्नाथ मंदिर में विराजमान हुए थे। ऐसा कहा जाता है की माता यशोदा, माता देवकी व सुभद्रा सभी रानियाँ द्वारिका से वृंदावन आई। जिसके बाद सभी रानियाँ भगवान कृष्ण जी की बाल लीलाओं की कहानी सुनने के लिए माता यशोदा से आग्रह करने लगी। जिसके बाद यशोदा मैया ने कहानियां प्रारंभ की और सुभद्रा को कक्ष के बाहर खड़े रहने का आग्रह किया।
माता यशोदा का कहना था की जब तक वह कहानियां सुना रही तब तक तुम कक्ष के बाहर रह कर किसी को अंदर नहीं आने मत देना । जैसे ही श्री कृष्ण की बाल कहानियों का प्रारंभ हुआ तो सुभद्रा भी उन कहानियों में मगन हो गई और कक्ष छोड़ अंदर आ गई। जिसके बाद कृष्ण और बलराम उस कक्ष में आकर अपनी कहानियां सुनने लगे।
यह सब देख नारायण जी भी कक्ष में आकर कहानी सुनने लगे। जिसके बाद नारायण जी श्री कृष्ण जी का बाल रूप देख, उनसे प्रश्न पूछने लगे की प्रभु आप बाल रूप में अति सुंदर दिख रहे है इस रूप में आप फिर कब जन्म लेंगे । ऐसा कहने पर श्री कृष्ण जी ने नारायण जी से कहा की, वो अब कलयुग में जन्म लेंगे जहा उन्हे यह रूप देखने को मिलेगा।
मंदिर की मूर्ति की स्थापना
मालवा के तेजस्वी राजा को भगवान जगन्नाथ ने अपनी मूर्ति स्थापित करने का मौका दिया। ऐसा हमने इसलिए कहा की, मालवा के राजा इंद्र्युम्न के सपने में आए जगन्नाथ भगवान ने अपनी छुपी हुई मूर्ति का रहस्य बताया और आग्रह किया की वे वहा से मूर्ति ला कर एक मंदिर बनवा कर उसमे स्थापित कर दे। जैसे ही अगली सुबह हुई तो राजा ने अपने चतुर ब्राह्मण विद्यापति के साथ सैनिकों को मूर्ति लाने के लिए भेज दिया।
और आपको बता दे की मूर्ति को सबर कबीले के लोगो ने नीलचलन पर्वत की गुफा में छुपा रखा था और वह उसे अपना श्रेष्ठ मान कर नीलमाधव की पूजा करते थे। नीलमधव उसी मूर्ति को कहा जाता है। जब यह बात विद्यापति को पता चली तो उन्होंने बड़ी चतुराई से मुखिया की बेटी संग विवाह रचा लिया।
जिसके बाद वह अपनी पत्नी संग उस मूर्ति तक पहुंचे और उससे वहा से चुरा कर राजा को सौप दिया। मूर्ति चोरी होने के बाद कबीले के मुखिया काफी उदास हो गए। जिसके बाद भगवान अपने भक्त को उदास नहीं देख सके और वापिस उस गुफा में मूर्ति के रूप में प्रकट हो गए।
लेकिन उन्हें अपने दोनो वादे को निभाना था एक की उन्होंने कलयुग में जन्म लेना था दूसरा वह राजा के आए सपने में अपने वादे को पूरा कर चाहते थे। जिसके बाद राजा ने अपने सपने को पूरा करने के लिए एक भवर मंदिर बनाया और भगवान जगन्नाथ जी से उसमे विराजमान होने को कहा।
लेकिन भगवान जगन्नाथ जी ने राजा से कहा की तुम मेरी मूर्ति बनवाने के लिए समुंदर में से कटा हुआ पेड़ जो द्वारिका से पूरी की और आ रहा हो वे लेकर आओ। जिसके बाद राजा ने अपने सैनिकों को आदेश दिया लेकिन वो उस कटे हुए पेड़ को लाने में नाकामयाब रहे।

उसी दौरान राजा को समझ आ गया था की उन्हे कबीले के लोग और मुखिया की सह्यता लेनी पड़ेगी। जिसके बाद वह कामयाब हुए और मूर्ति के लिए कारीगर ढूंढा गया। लेकिन कोई भी उस कार्य में सफल नहीं हुआ और उस वक्त एक बूढ़ा आदमी आया, ऐसा कहा जाता है की वो बूढ़ा आदमी खुद भगवान जगन्नाथ का अवतार था। जिसके बाद उस बूढ़े आदमी ने कहा मैं मूर्ति तो बना दूंगा लेकिन इसके लिए मुझे 21 दिन का समय चाहिए और जब मैं मूर्ति बनाओ तो मेरे निकट कोई भी न हो।
ऐसे में कई दिनों तक मूर्ति बनाने की आवाज़ आती रही। लेकिन एक दिन आवाज आनी बंद हो गई और राजा ने सोचा की कही मूर्तिकार अंदर मर तो नही गया । जिस पश्चात राजा ने वो कक्ष खोल दिया और वहा कोई दिखाई न देते हुए अधूरी बनी हुई मूर्तियां रखी देखी। जिसमे राजा ने भगवान जगन्नाथ की इच्छा मानते हुए ऐसे ही उन मूर्तियों को बनाए हुए भवर मंदिर में स्थापित कर दिया। और इसी तरह स्थापित हुआ जगन्नाथ मंदिर।
मंदिर की कुछ रोचक बाते
जगन्नाथ मंदिर भी अपने अंदर कही रोचक बाते समेटा हुआ है। जिसके बारे में हम आपको बताएंगे की किस तरह लोग ऐसे दृश्य की ओर आकर्षित हो कर जगन्नाथ धाम की यात्रा कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। अपको बता दे की ।
- इस मंदिर से हर साल एक ऐसी शोभा यात्रा निकाली जाती है जो बड़े ही धूम धाम से एक त्यौहार की तरह बनाई जाती है इस शोभा यात्रा में भगवान कृष्ण उनके भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा का रथ तैयार कर उन्हे पूरे पूरी का भ्रमण कराया जाता है।
- जगन्नाथ मंदिर के ऊपर एक सुदर्शन चक्र है। और इस सुदर्शन चक्र की सबसे खास बात यह है की आप इस चक्र को जिस भी दिशा से देखेंगे अपको अपने उतने ही करीब और सीधा दिखाई देगा।
- सबसे खास बात यह है की इस मंदिर के अंदर बहुत बड़ा रसोइया घर है जिसमे 500 लोगो की सहयता के साथ भोजन बनाते है और रथ यात्रा के दौरान 2500 से भी अधिक लोगों के लिए भोजन तैयार किया जाता हैं। और जगन्नाथ भगवान के आशीर्वाद के कारण भोजन में कभी कटौती नहीं आती। इसी प्रकार यह मंदिर बहुत ही खास और धामों का पवित्र धाम माना गया। जहाँ बहुत से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए जाते हैं।
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