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कभी कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती है कि हम सवालों के बीच उलझ जाते हैं। हमारी योजना कुछ और होती है। पर हमारी ज़िन्दगी कुछ और हो जाती है। हम सोचते कुछ और है। पर कुछ और हो जाता है। कोई किसी चीज पर विश्वास कर रहा होता हैं पर उसे वहां धोखा मिल जाता है। इन परिस्थितियों में यह सवाल खड़ा होता है की कर्म बड़ा है या भाग्य ?
कर्म ही भाग्य का निर्माता है ।
बचपन से लेकर आज तक हम यह जान पाए हैं कि जो कुछ भी होता है ईश्वर की मर्जी से होता है। फिर मन मे सवाल आता है कि ईश्वर ऐसा क्यों करेगा। अगर हम ईश्वर की मर्जी की दुनिया की कल्पना करें तो कोई बीमार नहीं होगा, कोई और असमय मौत की जद में नहीं जाएगा, बच्चे विकलांग नहीं पैदा होंगे, निर्दयता नहीं होंगी, ऐसे से तमाम समस्याओं से दुनिया परे होगी।
बहुत से लोगों का मानना है की कर्म ही भाग्य निर्माता है। और शायद यही सच है। जीवन में कभी-कभी होने वाले अप्रत्याशित घटनाओं से हमें कर्म की महानता को अनदेखा नहीं करनी चाहिए। कर्म हीन व्यक्तियों को भाग्य का सहारा कभी कभी मिलता है लेकिन कर्म श्रेष्ठ व्यक्ति भाग्य से हर जगह लाभान्वित होते हैं।
कर्म एक यात्रा के समान।
कर्म एक यात्रा है और भाग्य उसका गंतब्य। कर्म आरम्भ है और भाग्य अंत है। भाग्य अर्थात आपके कर्मो का दर्पण। आपके द्वारा किया गया अच्छा कर्म आपका सौभाग्य बनाता है। जिससे आपको सुख, शांति, धैर्य , साहस ,पुरुषार्थ, परमार्थ , कृति और मान सम्मान मिलता है। ठीक इसके विपरीत बुरे कर्म दुर्भाग्य बनाता है इससे आपको दुख, अशांति, अधैर्य, भय ,अनुद्यमी, स्वार्थी, अपकृति और अपमान मिलता है। कर्म करते हुए हम अपने आने वाले कल को बना या बिगाड़ सकते हैं । अच्छे या बुरे कर्मों से ही हमारे अच्छे या बुरे भाग्य का निर्धारण होता है ।
कर्म का मूल्य अधिक।
मनुष्य जैसा चाहे वैसा कर्म कर सकता है, पर कर्मानुसार फल देना परमात्मा का काम है। प्रत्येक कर्म का फल मिलता है। यदि इस जन्म में फल प्राप्त नहीं हो सका तो आगे के जन्मों में वही भाग्य के रूप में सामने आता है। मतलब यह कि भाग्य भी हमारा ही बचा हुआ कर्म है। कर्म से ही भाग्य बनता है और भाग्य को हम न देखते हैं और न जानते हैं। इसलिये मनुष्य जीवन में कर्म मूल्यवान है। मनुष्य को सदैव अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। अंततः मनुष्य के कर्म पर ही उसका भाग्य निर्भर करता है।
हमें कर्म करते रहना चाहिए।
मेहनती पुरुष के पास ही सदैव लक्ष्मी जाती है । सब कुछ भाग्य पर निर्भर है ऐसा कायर पुरूष सोचते हैं । इसलिए भाग्य को छोड़ कर हमें कर्म करते रहना चाहिए । यथाशक्ति प्रयास करने के बावजूद भी यदि सफलता नहीं मिली तो इसमें कोई दोष नहीं है । कर्म करें सफलता अवश्य मिलेगी।