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प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कुछ अच्छाइयाँ और कुछ बुराइयाँ छिपी होती हैं । हम अक्सर दूसरों की बुराइयों का जिक्र करते हैं और उसी पर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। हर मनुष्य को इस बात का ज्ञान होता है कि उसमें कौन सी बुराइयाँ हैं और वो किस हद तक उसके मस्तिष्क पर असर करती हैं।चूंकि हम अपने अंदर की बुराइयों से अनभिज्ञ नहीं होते हैं इसीलिए हमें यह एक कमजोरी की तरह लगने लगती है। हमारे आसपास का वातावरण कई बार हमें खराब लगने लगता है क्योंकि हर कोई हमारी बुरी आदतों, बातों के बारे में ही बातें करता है । पर इसे दूर किया जा सकता है । आइये आज हम आपको ‘अंगुलिमाल ‘के कहानी के माध्यम से बताएंगे कि कैसे बुराई को पहचानकर अंगुलिमाल अच्छा इंसान बना ।
अंगुलिमाल की कहानी ।
काफी समय पहले की बात है।
अंगुलिमाल नाम का एक इंसान था उसने एक प्रतिज्ञा ली
कि वह 1000 लोगों को मारेगा और अंगुलियों की माला गले मे पहनेगा । उसने ऐसा ही किया और वह 999 लोगों को मार चुका था सब लोग उससे थर- थर कांपते थे । यहां तक कि राजा भी उससे डरता था । जहा वो रहता था वहाँ कोई नही जाता था ।
एक दिन गौतम बुद्ध उस रास्ते पर जा रहे थे, साथी भिक्षु ने उनसे कहा कि यह रास्ता सही नही है, हमारे लिए यहाँ खतरा है,
हमारी जान भी जा सकती है ।उसने बुद्ध को बताया कि, यहा अंगुलिमाल नाम का
शक्श रहता है जो लोगो को मारता है । बुद्ध ने यह सुना और वह मुस्कुराते हुए बोले की अब तो मैं जरूर जाऊंगा । उस डाकू को मेरी जरूरत है। उन्होंने साथी भिक्षु से कहा कि तुझे अपनी जान प्यारी है तो तू भाग जा ।
अब बुद्ध उसके सामने जा पहुंचे।
एक सन्यासी का तेज देख कर उसके क्रोध की ज्वाला ओर धधक उठी । अंगुलिमाल बोला सन्यासी आज मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो जाएगी। आज मैं 1000 वध की प्रतिज्ञा पूरी करूँगा । उसका क्रोध चरम सीमा पर था, वह बुद्ध को बोला, तू लौट जा नही तो तुझे मैं मार दूंगा बुद्ध निडरता पूर्वक बोले मार दे ।
बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा कि मैं तो रुक गया तुम कब रुकोगे। फिर बुद्ध ने डाकू से कहा कि तुम्हें अपने शक्तियों इतना घमण्ड है तो इन पेडों की टहनी काट के बताओ । डाकू ने एक झटके में टहनी के दो टुकड़े कर दिए ।
बुद्ध मन ही मन सोचने लगे कि यह डाकू मेरी बात मान रहा है।
यानी इसके बदलने की संभावना है।
बुद्ध फिर बोले अब इस टहनी को जोड़ के बताओ, वो डाकू बोला सन्यासी तू पागल है जो एक बार टूट जाता है वो जोड़ा नही जा सकता ।
बुद्ध बोले यही तो तुझे समझा रहा हूं, इस एक लाइन ने उस डाकू की ज़िंदगी मे ऐसा परिवर्तन लाया की वह इंसान बुद्ध के चरणों मे आ गिरा । उसके आंखों में आंसू थे।
बुद्ध पीछे मुड़ गए
और वो भी बुद्ध के पीछे पीछे आने लगा। गौतम बुद्ध ने उसे शिक्षा दी। वह डाकू अब सज्जन इंसान बन चुका था।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी इन्सान कितना ही बुरा क्यों न हो, वह बदल सकता है। दोस्तों, अंगुलिमाल बुराई का एक प्रतीक है, और हम सबमें छोटे-बड़े रूप में कोई न कोई बुराई है। ज़रूरत इस बात की है कि हम अपने अन्दर की बुराइयों को पहचाने और उन्हें ख़त्म करें।