सभी अपने जीवन लक्ष्य में सफल होना चाहते है लेकिन सफल वही होता है जो निरंतर मेहनत करता है परेशानियों से घवराता नही है इसी हौसले को लिए 9 साल की उम्र से पंजाब में एक खिलाडी तैयारी कर रहा था अपने सपने भारतीय होकी की टीम में अपनी जगह बनाने लिए मेहनत कर रहा था, वो कहते है की सफलता कोई ओडर किया हुआ पिज़ा नही है जो 20 मिनिट में मिल जाएगी, सफलता समय मागती है आज ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बात करेगे l
Table of Contents
(Manpreet Singh) मनप्रीत सिंह का जीवन परिचय
मनप्रीत का पूरा नाम मनप्रीत सिंह पवार है इनका जन्म 26 जून 1992 को भारत के पंजाब में जालंधर जिले के एक छोटे से ग्राम मीठापुर में हुआ था इनके पिता जी का नाम बलजीत सिंह पेशे से एक किसान हैं इनकी माता का नाम मंजीत कौर जो एक गृहणी है दो भाई अमरदीप सिंह और सुखराज सिंह है मनप्रीत के जीवन साथी का नाम नवनीत कौर और एक बेटी है सभी एक साथ मिल जुल कर रहते है , नाम – मनप्रीत सिंह पवार पिता का नाम – बलजीत सिंह माता का नाम – मंजीत कौर भाई का नाम – अमनदीप सिंह और सुखराज सिंह पत्नी का नाम – नवनीत कौर
नाम
मैनप्रीत सिंघ
जन्म तिथि
26 जून, 1992
राष्ट्रीयता
भारतीय
पद
मध्यखेल खिलाड़ी
ऊंचाई
5 फीट 9 इंच (175 सेमी)
वजन
150 पाउंड (68 किलोग्राम)
टीमें
भारतीय राष्ट्रीय टीम
पंजाब वॉरियर्स (HIL)
रांची रे (HIL)
दिल्ली वेवराइडर्स (HIL)
उपलब्धियाँ
ओलंपिक खेल – कांस्य (2021)
एशियाई खेल – स्वर्ण (2014)
एशियाई चैंपियन्स ट्रॉफी – स्वर्ण (2016, 2018)
एफआईएच मेन्स हॉकी वर्ल्ड लीग – रजत (2016-17)
सुल्तान अज़लान शाह कप – रजत (2017, 2018)
एफआईएच हॉकी प्रो लीग – रजत (2020-21)
मनप्रीत सिंह की शिक्षा
मनप्रीत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हाई स्कूल पंजाब के जालंधर से किया था , स्नातक की शिक्षा विनायक मिशन यूनिवर्सिटी पंजाब से ही पूरी की , मनप्रीत पढाई तो करते थे लेकिन उनका मन होकी खेलने में रहता था, इन्होने 9 साल की उम्र से हॉकी खेलना शुरू किया और लगभग 2002 से साल 2005 तक मनप्रीत सिंह ने सुरजीत हॉकी अकादमी से प्रशिक्षण लिया जो पंजाव के जालंधर में स्थित है l
मनप्रीत सिंह का हॉकी करियर
9 साल की उम्र से कर रहे होकी की तैयारी में साल 2011 में मनप्रीत सिंह को पहली बार भारतीय जूनियर हॉकी टीम का हिस्सा बनने का मौका मिला तथा अपने खेल का प्रदर्शन दिखने के लिए अंतरराष्ट्रीय हॉकी टीम में पदार्पण किया । कुछ समय बाद मनप्रीत सिंह को साल 2013 में मैन जूनियर हॉकी वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया l
2014 में दक्षिण कोरिया के इचियोन में आयोजित एशियाई खेलों में वह भारत की मेन हॉकी टीम का हिस्सा थे जहां मनप्रीत सिंह ने अपने शानदार प्रदर्शन से फाइनल में पाकिस्तान को 4-2 से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया , साल 2016 लंदन में मैन हॉकी चैंपियन ट्रॉफी में अपने शानदार प्रदर्शन दिखाते हुए मनप्रीत सिंह ने भारत को रजत पदक दिलाया और भारत ने 38 साल बाद फाइनल में जगह बनाई थी l
इनकी कप्तानी में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई । 6 अप्रैल 2016 जापान बनाम भारत शाह कप में प्रथम मैच के दौरान उन्हें अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिला जिस कारण उन्हें भारत आना पड़ा फिर अंतिम संस्कार कर अपने पिता का मां के कहने पर भारत को तथा देश को गौरवान्वित करने के लिए टीम से फिर जुड़े और भारत ने टूर्नामेंट में दूसरा स्थान प्राप्त किया।
मनप्रीत सिंह की अगुवाई में भारतीय टीम 2020 टोक्यो ओलंपिक खेल, जो कि 2021 में टोक्यो में आयोजित हुआ अपने खेल का प्रदर्शन दिखने के लिए भारतीय टीम टोक्यो के लिए रवाना हुई , जिसके ग्रुप चरण में ऑस्ट्रेलिया से हारने के बाद भारत ने लगातार स्पेन अर्जेंटीना जापान को हराकर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई, इसके बाद भारतीय टीम ने ब्रिटेन को 3-1 से हराकर सेमीफाइनल का रास्ता तय किया लेकिन भारत को बेल्जियम से हार का सामना करना पड़ा और भारत ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक प्राप्त किया 1980 के बाद ओलंपिक में भारतीय टीम ने पोडियम पर फिनिश किया टूर्नामेंट टोक्यो ओलंपिक में।
Manpreet Singh-मनप्रीत सिंह ने अपने जीवन में पुरुष्कार प्राप्त किये
वर्ष 2014 में एशियाई हॉकी फेडरेशन द्वारा जूनियर प्लेयर ऑफ द ईयर का पुरस्कार मिला। वर्ष 2015 में एशियाई हॉकी संघ द्वारा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी पुरस्कार लिया वर्ष 2018 में अर्जुन पुरस्कार लिया वर्ष 2019 के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए हॉकी इंडिया ध्रुव बत्रा पुरस्कार। वर्ष 2019 राज्य पुरस्कार महाराजा पुरस्कार प्राप्त किया । वर्ष 2019 FIH प्लेयर ऑफ द ईयर अवार्ड मिला । व्हाट 2001 किस मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार भारत का सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया
मनप्रीत सिंह से भारतीय आशा करते है आगे भी अपने देश का नाम रोशन करेगे
Amar Katha– श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा में सदाशिव भगवान-शंकर से भगवती-पार्वती को सुनाई गई यह महादेव की वह प्राचीन अमर कथा है जिसको कहने और सुनने वाले प्राणी अमर हो जाते थे , लेकिन भगवान शंकर ने स्वयं ही अमर कथा को श्राप दे दिया की इसको सुनने वाले प्राणी अब अमर नही होगे l यही वो असली अमर कथा है जो एक तोते ने सुन ली थी और वह अमर हो गया था l
Table of Contents
माता पार्वती महादेव को देख कर हमेश सोचती रहती थी , भगवान शंकर अमर क्यों और इनके गले में मुंडो की माला क्यों है
श्री अमरनाथ की गुफा का रहस्य
युगों पहले माता पार्वती के मन में शंका उठी की भगवान शंकर गले में मुंडमाला क्यों और कब धारण की , शंका दूर करने के लिए माता पार्वती ने भगवान शंकर से इस प्रश्न का उत्तर पूछा ,तब प्रभु शंकर ने बताया जितनी बार तुमने जन्म लिया है उतने मुंडो को धारण किया है तब माता पार्वती ने कहा प्रभु मेरा शरीर नाशवान है , मृत्युं को प्राप्त होता है परन्तु आप अमर है, इसका क्या कारण है l तब भगवान शंकर ने रहस्यमय मुस्कान भरकर कहा यह अमरकथा के कारण है l
तब माता पार्वती के मन में अमरता प्राप्त करने की इच्छा जागी और भगवान शंकर से हट करने लगी , कई वर्षो तक हट करने पर भगवान शंकर को कहानी सुनाने के लिए बाध्य कर दिया , परन्तु , समस्या यह थी की कोई अन्य जीव उस कथा को न सुने , क्योकि यह कथा जो कोई सुन लेगा वह अमर हो जायेगा इसलिए भगवान शंकर एक एकांत जगह की तलास करते हुए सर्वप्रथम पहलग्राम पहुचे जहाँ पर उन्होंने अपने नंदी(बैल) का पारित्याग किया, वास्तव में इस ग्राम का प्राचीन नाम बैल गाँव था , जो कालांतर में बिगड़कर तथा क्षेत्रीय भाषा के उच्चारण प्रभाव से पहलगाम बन गया l
तत्पश्चात चन्दनबाड़ी में भगवान शिव ने अपनी जटा को खोल कर चन्द्रमा को मुक्त किया, शेषनाग नामक झील में अपने सर्पो की माला को उतार दिया, आगे चलकर महागुनस पर्वत पर अपने पुत्र गणेश डबल.का त्याग करने का निश्चय किया, फिर पंचतरनी नमक स्थान पर पहुच कर शिव जी ने अमरनाथ की गुफा में प्रवेश से पहले पांच तत्व (पृथ्वी, जल , वायु, अग्नि , और आकाश ) को परित्याग किया l भगवान शिव इन्ही पांच तत्वों के स्वामी माने जाते है l
इसके पश्चात माता पार्वती और भगवान शिव ने इस पर्वत श्रखला पर ताण्डव नृत्य किया था, ताण्डव नृत्य का मतलब है सृष्टी का त्याग करना | इसके पश्चात भगवान शिव सब कुछ छोड़ कर अमरनाथ की इस गुफा में पार्वती सहित प्रवेश किया और मृगछाला के ऊपर बैठ कर ध्यान मग्न हो गये |
कथा सुनाने से पहले भगवान शिव ने कालाग्नि नामक रूद्र को प्रकट किया , उसको आदेश दिया की चारो तरफ ऐसी आग लगा दो की सारे जिव जंतु जलकर भस्म हो जाये | रूद्र ने एसा ही किया और चारो तरफ आग लगा दी ,परन्तु उनकी मृगछाला के नीचे एक तोते का अंडा रह गया और उसने अंडे से बहार आकार अमर कथा को सुना लिया l
अमर कथा की महिमा –(Amar Katha)
अमरकथा की मान्यता है की इसको सुनने से वह व्यक्ति अमर हो जाता था जो यह कथा को ध्यान पूर्वक सुनता है इस अमर कहानी को सुन कर भगवान शिव के परम धाम की प्राप्ति होती है, यह कथा इतनी पवित्र थी जिसको किसी इंसान जीव जंतु कीड़े आदि प्राणधारी जीव को सुना नही सकते थे क्योकि सुनते ही वह अमर हो जाता, इस अमरनाथ की गुफा में भगवान की शिव लिंग की पूजा होती है इस कहानी को सुन कर प्रभु शिव अपने परम धाम में स्थान प्रदान करते है ,
श्री अमरनाथ की अमरकथा
इस कथा का नाम अमर कथा इसलिए है की इसके श्रवण करने से शिवधाम की प्राप्ति होती है, यह वह पवित्र कथा है जिसके सुनने से सुनने वाला अमर हो जाता है, जब भगवान श्री शंकर जी यह कथा भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक तोते का बच्चा भी इस परम कथा को सुन रहा था और इसे सुनकर इस तोते ने श्री शुकदेव का रूप लिया l इस कथा को सुनकर शुकदेव जी अमर हो गये थे बाद में शुकदेव जी महान ऋषि बने थे l
यह संवाद भगवती और भगवान शंकर जी के है यह परम पवित्र कथा लोक व परलोक का सुख देने वाली है भगवान शंकर और माता पार्वती का संवाद का वर्णन भृगु-सहिता, नीलमत-पुराण ,तीर्थ संग्रह आदि ग्रंथो में पाया जाता है हम सभी कहानी को अपने माता पिता के जरिये जानते है , आगे हम इन्ही अमर कहानियों के बारे में जानेगे l
जब कभी दान पुण्य की बात आती है तो कुंती – सूर्य पुत्र कर्ण का नाम सबसे ऊपर आता है , महाभारत में अर्जुन और युधिष्टर जैसे कई महान चरित्रों का वर्णन मिलता है, लेकिन जहाँ दान की बात आती है तो श्री कृष्ण भी सूर्य पुत्र कर्ण की प्रसंशा ही करते है , श्री कृष्ण कर्ण की प्रशंसा करते हुए कहते की सदी का सबसे महान दानवीर योद्धा कर्ण है l
Table of Contents
कौन थे कर्ण – Who is Karna
Karna के अनेक नाम है जैसे सूर्य पुत्र कर्ण , सूत पुत्र कर्ण ,राधेय ,वसुसेन,दानवीर कर्ण,अंगराज कर्ण,विजय धारी , सबसे प्रसिद्ध नाम दान वीर कर्ण हुआ है , कर्ण का जीवन बहुत ही संघर्ष पूर्ण था, कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले हो गया था, क्योकि कुंती की तपस्या से प्रभावित हो कर ऋषि ने उनको एक मंत्र दिया ,जिस देवता का नाम लेकर इस मंत्र उच्चारण करेगी , वह देवता प्रकट हो कर उनको एक पुत्र प्रदान करेगे,
कुंती ने सूर्य देव का नाम लेकर इस मंत्र का प्रयोग किया जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ, लेकिन कुंती अविवाहित थी इसलिए वह कर्ण को नदी में छोड़ देती है, जिसके पश्चात राधा और अधिरथ कर्ण का पालन करते है, कर्ण वचपन से ही कान में कुण्डल और शरीर पर कबच पहने हुए ही पैदा हुए थे l
सूर्य पुत्र कर्ण के कुण्डल और कबच में इतनी शक्ति थी , की जव तक कर्ण के पास ये दोनों चीजे थी तब तक कोई कर्ण को मार नही सकता था, कुंती ने कर्ण को देखा और अन्दर ही अन्दर डर रही थी, शादी से पहले पुत्र प्राप्ति उस समय पाप माना जाता था उसी डर से कुंती ने कर्ण को एक टोकरी में रख कर पानी में वहा दिया और कर्ण बहते हुए सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिले जो पितामा भीष्म के सार्थी थे l
कर्ण की शिक्षा – Karna Training
सूर्य पुत्र कर्ण को शुरु से धनुष चलाने में अधिक रूचि थी, घुड़सवारी में उन्हें आनंद नही आता था इसलिए उनके पिता गुरु द्रोणाचार्य के पास गये और कर्ण के गुरु बनने की प्रार्थना की लेकिन द्रोणाचार्य ने माना कर दिया क्योकि उस समय वह हस्तिनापुर के गुरु थे और वे सिर्फ छत्रियों को ही शिक्षा दे सकते थे, कर्ण शुद्र थे ,अपनी शिक्षा के लिए बहुत परेशान हुए थे क्योंकी कर्ण कर्म से तो छत्रिय थे लेकिन समाज के हिसाब से सूद्र थे, जिसकी बजह से समाज ने उन्हें स्वीकार नही किया l
उसके पश्चात वे भगवन परशुराम के पास गये ,भगवन परशुराम ने कर्ण को शिक्षा दी और कर्ण सबसे बड़े धनुर्धर बने, और अपनी पूरी शिक्षा भगवान परशुराम से प्राप्त की और परशुराम के प्रिय शिष्य बने l
शिक्षा के दौरान कर्ण को मिलेश्राप
युद्ध विद्या काम नही आयेगी– कर्ण ने अपनी शिक्षा भगवान परशुराम से प्राप्त की , लेकिन भगवान परशुराम झूट बोलने से नफरत करते थे, एक बार जब भगवान परशुराम नीद पूरी कर रहे थे तो कर्ण ने भगवान परशुराम का सिर अपनी गोद में रखा हुआ था,
और तभी एक भयानक कीड़ा कर्ण की जांग पर काट रहा था कर्ण इस पीड़ा को आराम से शह रहे थे भगवान परशुराम की नीद खुली तो उन्होंने कर्ण को कष्ट सहन करता देख उनको विश्वास हो गया की कर्ण सूद्र नही है बल्कि एक छत्रिय है और उन्होंने कर्ण को श्राप दिया की कर्ण जब तुमको मेरी विद्या की सबसे अधिक आवश्यकता होगी उस समय मेरी विद्या कभी काम नही आयेगी l
रथ का पहिंयाँ जमीन में धस जायेगा – एक दिन कर्ण धनुष ले कर जंगल में शिकार करने निकले और शिकार करते समय कर्ण ने गलती से गाय के बच्चे को मार दिया, वह गाय का बच्चा एक ऋषि का था ऋषि को पता चला तो ऋषि ने कर्ण को श्राप दिया , की जब तुम अपने सबसे महत्वपूर्ण युद्ध में होगे तो तुम्हारे रथ का पहिया जमीन में धस जायेगा l
कर्ण का विवाह
कर्ण जब युवा अवस्था में तब उनका मन एक राजकुमारी पर आ गया, लेकिन राजकुमारी ने कर्ण को सूतपुत्र मानकर अपने पिता द्वारा आयोजित स्वयंवर में दूसरे व्यक्ति का चयन कर लिया जिसे देख कर कर्ण को बहुत ही क्रोधित हो गए और उन्होंने उसी समाहरोह में स्थित उनकी सहेली से शादी रचाई और अपने राज्य अंगप्रदेश में वापस आ गए और आराम से जीवन यापन करने लगे l
कर्ण की मित्रता
सूर्य पुत्र कर्ण एक आदर्शवादी व्यक्ति थे जब सारे लोगो ने कर्ण का अपमान किया तब दुर्योधन धन ने कर्ण को अपना मित्र बनाया और राज्य का एक छोटा हिस्सा जिसका नाम अंगप्रदेश था वहां का राजा बनाया और अपनी सभा में उचा दर्जा दिया, कर्ण ने इस ऋण को सबसे ऊपर रखा ,कर्ण ने और अपने मित्र के लिए अधर्म का भी साथ दिया जिसका उनको फल भोगना पड़ा ,और महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त किया .,
कर्ण के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
सूर्य पुत्र कर्ण का जीवन कष्टों में बीता, लेकिन कर्ण अर्जुन के बाद सबसे बड़े योधा थे, कर्ण अधर्म के साथ थे जिसकी बजह से अपने प्राण देने पड़े , कर्ण सूर्य देव के पुत्र थे , कुंती उनकी माँ थी , वैसे तो पाण्डव पाच भाई थे लेकिन कुंती के पहले पुत्र कर्ण थे पाण्डव पांच नहीं छः भाई थे जिसमे कर्ण सबसे बड़े थे , लेकिन दुःख की बात तो यह थी की कर्ण की मृत्यु के पश्चात उनके भाइयो को पता चला की कर्ण उनके बड़े भाई है l
महाभारत में कर्ण का योगदान
सूर्य पुत्र कर्ण का महाभारत के युद्ध महत्वपूर्ण योगदान था, कर्ण अकेले ही महाभारत के युद्ध को समाप्त कर सकते थे, क्योंकि कर्ण अर्जुन से भी अधिक महान योद्धा थे , महाभारत के युद्ध में कर्ण के तीर अर्जुन के रथ को पीछे हटा देते थे जबकि अर्जुन के रथ पर त्रिलोकी नाथ, भगवान हनुमान विराजमान थे , कर्ण को अगर भगवान परशुराम ने यदि कर्ण को श्राप नही दिया होता तो महाभारत का परिणाम कुछ और ही होता और अर्जुन की जगह कर्ण महाभारत के विजेता होते l
कर्ण की मृत्यु – Karna Death
कौरव और पाण्डव के बीच अब तक का सबसे बड़ा युद्ध हुआ जिसको महाभारत के नाम दिया, जिसके रचियता वेद व्यास जी थे इसमें कर्ण की मृत्यु के बारे में बताया गया है कर्ण ने अधर्म का साथ दिया था कर्ण को पता था वो अधर्म का साथ दे रहे है फिर भी वे अधर्म की तरफ से लडे थे और उनके गुरु भगवांन परशुराम का श्राप महत्वपूर्ण कारण था, महाभारत के युद्ध में कर्ण और अर्जुन के बीच हुए युद्ध में अर्जुन ने कर्ण का शीश अपने तीर से काट दिया था और इस तरह महान युग के महान योद्धा का अंत हुआ l
कहानी का सार
कर्ण के जीवन से हमें यह सीख मिलती है की हमें हमेश दान वीर और दयालु होना चाहिये l उसका उदार मन और दानशीलता हमें यह सिखाता है कि हमें संघर्ष करने वालों की मदद करनी चाहिए और अपना धन और समय दान करके दूसरों की मदद करनी चाहिए ।
कर्ण की कथा से हमें सामर्थ्य की महत्वपूर्णता समझ में आती है। वह कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद अपनी प्रतिभा और सामर्थ्य के बल पर आगे बढ़ते हैं। जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना और संघर्ष करना महत्वपूर्ण है।
कर्ण न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ क्षत्रिय योद्धा थे , उन्होंने कभी न्याय से पक्षपात नहीं किया और अपने मित्रो के पक्ष में स्थिर होकर खड़े रहना हमें यह ज्ञात कराता है कि न्यायप्रियता, धर्म के पालन और सत्य का पालन करना हमारी मूल्यवान संपत्ति होनी चाहिए।
कर्ण को दानशीलता का सबसे महान उदहारण माना जाता है , क्योंकि वह दानधर्म के हमेश तत्पर रहते थे और अन्य जनों की सेवा के लिए अपनी संपत्ति का उपयोग करते थे, हमें यह सिखाता है कि समाजसेवा और अन्यों की मदद करना हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए।
कर्ण की कथा हमें परिवार के महत्व को समझाती है। वे अपने माता-पिता, गुरु और भाई-बहन के प्रति आदर और सम्मान का पालन करते थे। हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने परिवार के सदस्यों के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान का ध्यान रखना चाहिए l
Mahatma Gandhi – हमारा भारत शुरू से किसी न किसी का गुलाम रहा है पहले राजा महाराजा का शासन रहता था फिर मुगलों ने अनेक वर्षो तक शासन किया, इनके बाद अंग्रेज आये भारत व्यापर करने और कूट नीति से भारत पर अपना शासन करना शुरु कर दिया, जब भारत गुलाम था तब भारत में सत्य अहिंसा के मार्ग पर चल रहा एक आदर्श व्यक्ति जिसका भारत देश की आज़ादी में बहुत बड़ा हाथ है, जिनको भारत में बापू के नाम से जानते है जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है जिनको हम महात्मा गाँधी Mahatma Gandhi के नाम से जानते है |
Table of Contents
नाम
मोहनदास करमचंद गांधी
जन्म तिथि
2 अक्टूबर 1869
जन्म स्थान
पोरबंदर, गुजरात, भारत
पिता का नाम
करमचंद गांधी
माता का नाम
पुतलीबाई
पत्नी का नाम
कस्तुरबा गांधी
शिक्षा
वेस्लीयान मिशन स्कूल, लंदन
प्रमुख आंदोलन
नॉन-कोअपरेशन आंदोलन
विचारधारा
सत्याग्रह, अहिंसा
महत्वपूर्ण कार्य
डांडी मार्च
मृत्यु तिथि
30 जनवरी 1948
मृत्यु स्थान
नई दिल्ली, भारत
Mahatma Gandhi-महात्मा गाँधी का जीवन परिचय
Mahatma Gandhi जी शांत सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलते थे उनका जीवन बहुत सरल था, हमेशा गीता हाथ में रहती थी गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था , (Mahatma Gandhi) गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूवर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था, पिता जी का नाम कर्मचंद गाँधी और माता का नाम पुतली बाई था, पुतली बाई कर्मचंद की चौथी पत्नी थी, करमचंद गाँधी जी की तीन पत्नियों का निधन प्रसव के दौरान ही हो गया था,
गाँधी जी का विवाह तब हुआ जब वह 14 वर्ष के थे और कस्तुरवा जी 13 वर्ष की थी, गाँधी जी के चार पुत्र हुए जिनके नाम हरीलाल,मनीलाल,रामदास,देवदास था, गाँधी जी अपने जीवन में साधारण विचार रखते थे, शाकाहारी भोजन, हफ्ते में एक दिन उपवास रखना प्रतिदिन गीता पड़ते थे l
भारत की आज़ादी में Mahatma Gandhi का महत्व
Mahatma Gandhi-महात्मा गाँधी जी आदर्शो पर चलते थे, गाँधी जी हिंसा के विरोधी थे महात्मा गाँधी जी ने अपने पुरे जीवन में सत्य, अहिंसा और सदभाव जैसे आदर्श शव्दों का पालन किया है,
मोहनदास करमचंद गांधी जी को लोग बापू के रूप में भी जाने जाते हैं, भारतीय आजादी के लिए एक महत्वपूर्ण और प्रमुख योगदानकर्ता थे। उनके विचारधारा और क्रियाएं न सिर्फ लोगों को जागरूक करने में मदद करती थी , बल्कि वे एक प्रेरणास्रोत बने, जिनसे लाखों लोग उनके मार्गदर्शन में चले और स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया।
गांधी जी ने नॉन-कोअपरेशन आंदोलन, असहयोग आंदोलन, और अल्पकालीन आंदोलन जैसे अनेक आंदोलनों के आध्यात्मिक नेता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी अहिंसा और सत्याग्रह की सिद्धांतों ने देशभक्तों को प्रेरित किया और उन्हें शांतिपूर्ण और अहिंसापूर्ण संघर्ष करने की शक्ति दी। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सफलता में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता थे।
Mahatma Gandhi जी का अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित सत्याग्रह उनका महान योगदान था। उन्होंने लोगों को शक्तिशाली होने और अपने अधिकारों के लिए स्वयं खड़े होने की प्रेरणा दी। डांडी मार्च, जिसमें उन्होंने नमक का अवैध उत्पादन किया था, देशभर में आंदोलन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया। इसके पश्चात्, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन गतिमान रूप से गति प्राप्त करने लगा और ब्रिटिश साम्राज्य को अंतिम धक्का दिया।
गांधी जी की विचारधारा और अहिंसा के सिद्धांत आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका योगदान भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक पलों में महत्वपूर्ण है और उन्हें एक महान नेता के रूप में स्मरण किया जाता है, जिनके माध्यम से हमारा देश के लोगो में स्वतंत्रता प्राप्त करने की प्रेरणा जागी थी|
Mahatma Gandhi-महात्मा गाँधी जी की शिक्षा
स्तर
पढ़ाई की स्थान
प्राथमिक
पोरबंदर, गुजरात
माध्यमिक
राजकोट, गुजरात
उच्चतर माध्यमिक
मुंबई, महाराष्ट्र
स्नातक
लंदन, यूनाइटेड किंगडम
वकालती पढ़ाई
मुंबई, यूनाइटेड किंगडम
वकालती प्रशिक्षण
लंदन, यूनाइटेड किंगडम
महात्मा गाँधी जी शिक्षा में बहुत अच्छे थे उन्होंने कक्षा दश ,और इंटर मिडियत गुजरात से और स्नातक लन्दन से किया था बकील की शिक्षा लेने के लिए मुबई और यूनाइटेड किंगडम और बकालती का अभ्यास लंदन, यूनाइटेड किंगडम से किया था
महात्मा गाँधी जी द्वारा किये गए आन्दोलन
महात्मा गाँधी जी ने आन्दोलन का प्रारम्भ दक्षिण अफ्रीका से बकील के रूप में शुरु की वहा से भारत लौट कर भारत में अंग्रेजो के खिलाफ आन्दोलन शुरु कर दिया 1919 में रोलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह,1920-1922 खिलाफत आंदोलन जैसे कई आन्दोलन शुरु किये कुछ आन्दोलन पुरे हुए तो कुछ अधूरे रह गए गाँधी जी के साथ कई देश भक्तो ने अपनी जिंदगी दाव पर लगा दी भारत में आकार गाँधी जी भारतीय कोंग्रेश पार्टी का नेतृत्व करते नजर आये
आंदोलन
तिथि
रोलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह
1919
खिलाफत आंदोलन
1920-1922
नॉन-कोअपरेशन आंदोलन
1920-1922
चौरी-चौरा आंदोलन
1922
सॉल्ट सत्याग्रह
1930
भारत छोड़ो आंदोलन
1942
यहां एक टेबल में मोहनदास करमचंद गांधी जी की प्रमुख आंदोलन और उनकी तिथियां दी गई हैं। इससे आपको गांधी जी के महत्वपूर्ण आंदोलनों की जानकारी मिलेगी।
गाँधी का गर्म दल पर प्रभाव
मोहनदास करमचंद गांधी के गरम दल (Garam Dal) पर प्रभाव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण रहा है। गरम दल एक गुप्त समिति थी जो गांधी जी द्वारा बनाई गई थी और स्वतंत्रता संग्राम की नीति निर्धारित करने के लिए काम करती थी। यह समिति उन विशेष लोगों से मिलकर बनाई गई थी जो गांधी जी की नेतृत्व में अहिंसा, सत्याग्रह, स्वदेशी और अन्य गैर-कार्यकर्ता आंदोलनों के प्रति समर्पित थे।
गरम दल का प्रमुख उद्देश्य अंग्रेजी सरकार के खिलाफ गुप्त और असंगठित प्रतिरोध की योजनाओं का निर्माण करना था। यह गांधी जी की विचारधारा और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित था। गरम दल के सदस्यों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असंगठित सत्याग्रह और अनुशासित कार्यवाही के माध्यम से अपना प्रभाव दिखाया। इसमें समाजिक विरोध, अशांति को शांतिपूर्णता में बदलने के लिए प्रयास किए गए और अंग्रेजी राज के खिलाफ जनसमर्थन और सहयोग का मार्ग चुना |
महात्मा गाँधी जी के आदर्श
मोहनदास करमचंद गांधी के सिद्धांतों का मूल आधार उनकी आध्यात्मिकता, अहिंसा, सत्याग्रह, स्वदेशी, सादगी और सर्वोदय के आदर्शों पर आधारित था। यहां कुछ मुख्य सिद्धांतों का वर्णन किया गया है:
अहिंसा (Non-violence): गांधी जी का महत्वपूर्ण सिद्धांत अहिंसा था। उनका मानना था कि हिंसा कभी भी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकती है और अहिंसा ही समरसता और शांति का मार्ग है।
सत्याग्रह (Truth and Non-violent Resistance): गांधी जी ने सत्याग्रह को एक प्रभावी और अहिंसापूर्ण संघर्ष का माध्यम माना। इसे सत्य और न्याय की रक्षा के लिए उठाया जाता है।
स्वदेशी (Self-sufficiency): गांधी जी का महत्वपूर्ण सिद्धांत स्वदेशी था। उन्होंने भारतीय उद्योगों की समर्थन किया और विदेशी वस्त्रों की अपने देश के उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्धा करने की प्रेरणा दी।
सादगी (Simplicity): गांधी जी ने सादगी को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने यह सिद्धांत अपनाया कि मानवीय सुख और पूर्णता सादगी में हैं और अतिरिक्त वस्तुओं की आवश्यकता कम होनी चाहिए।
सर्वोदय (Welfare of All): गांधी जी का लक्ष्य समाज के सभी वर्गों के कल्याण का था। उन्होंने न्याय, सामरिकता और समानता की महत्वपूर्णता पर बल दिया और विभाजन और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
ये सिद्धांत गांधी जी के चिंतन के मध्य एक महत्वपूर्ण स्थान रखते थे और उनके नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान किया।
गाँधी जी का राजनितिक जीवन
मोहनदास करमचंद गांधी का राजनितिक जीवन व्यापक और महत्वपूर्ण रहा है। गांधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में मान्यता प्राप्त है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवनभर समाज, राष्ट्र और मानवता के लिए समर्पित कार्य किए हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन किया गया है जो गांधी जी के राजनितिक जीवन की महत्वपूर्ण चरणों को दर्शाती हैं:
सत्याग्रह आंदोलन: गांधी जी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित कई आंदोलन चलाएं। उन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों के लिए असहिष्णुता के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन का प्रचार किया।
खिलाफत आंदोलन: गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया, जिसमें वे हिंदू-मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए मध्यस्थता की ओर प्रयास किए।
नॉन-कोऑपरेशन आंदोलन: 1920 में, गांधी जी ने नॉन-कोऑपरेशन आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें वे अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन और विदेशी वस्त्रों के विरोध में लोगों को उकसाने का आह्वान किया।
दण्डी मार्च: 1930 में, गांधी जी ने नमक अधिकार आंदोलन के तहत दण्डी मार्च आयोजित किया, जिसमें उन्होंने दण्डी में खुद ही नमक बनाने की कार्रवाई की, जो अंग्रेजी सरकार के कर नियमों का उल्लंघन करने का रूप था।
भारत चोड़ो आंदोलन: 1942 में, गांधी जी ने ‘भारत चोड़ो आंदोलन’ शुरू किया, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भारत से अधिकार वापस लेने के लिए आह्वान किया।
ये आंदोलन और क्रांतिकारी कार्य गांधी जी के राजनितिक जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से रहे हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम योगदान दिया।
महात्मा गाँधी जी की मृत्यु
मोहनदास करमचंद गांधी की मृत्यु 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली के भारतीय राष्ट्रीय बाग में हुई थी। उन्हें नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति ने नई दिल्ली में गोली मार कर हत्या कर दी थी । गोडसे ने गांधी जी को विवादित रूप से उनके समर्थन के लिए पाखंडी मानते हुए उनकी हत्या की थी। उन्हें गांधी जी के द्वारा चलाए जा रहे पश्चिमी शैली के समाज सुधार कार्यों से भी असंतुष्टि थी। हत्या के बाद गोडसे ने अपनी कार्रवाई के पीछे धार्मिक और राजनीतिक मोटिवेशन को दर्शाने की कोशिश की थी। गोडसे को बाद में गिरफ्तार किया गया और उन्हें फांसी की सजा हो गई।
गांधी जी की मृत्यु ने देश और विश्व में गहरी शोक की भावना पैदा की और उनके विचारों और आंदोलनों की अनमोल विरासत को जीवित रखने में मदद की। उनकी मृत्यु ने भारत को एक विश्वविख्यात धरोहर दी, जिसका प्रभाव आज भी देश की राजनीति, समाज, और संस्कृति पर दिखता है।
महात्मा गाँधी जी का भारत पर प्रभाव
बर्तमान में गांधी जी का भारत में एक महत्वपूर्ण प्रभाव है। वे आज भी एक राष्ट्रीय और आंतर्राष्ट्रीय महानायक के रूप में मान्यता प्राप्त हैं और उनके विचार और सिद्धांत आज भी लोगों के दिलों और मस्तिष्कों में बसे हुए हैं।
यहां कुछ क्षेत्रों में गांधी जी का प्रभाव दिखाया गया है:
अहिंसा और सत्याग्रह: गांधी जी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत आज भी व्यापक प्रभाव रखते हैं। उनका अहिंसा का सिद्धांत और उनकी अपार्थिविकता ने लोगों को आपसी विवादों को शांति से हल करने की प्रेरणा दी है।
सामरिकता और समानता: गांधी जी ने सामरिकता और समानता के महत्व को प्रभावशाली रूप से बताया। उन्होंने विभाजन, जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समाज में समानता को स्थापित करने के लिए कठिन परिश्रम किया। आज भी उनके विचारों का प्रभाव विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच सामरिकता और समानता को प्रोत्साहित करने में दिखाई देता है।
ग्रामीण विकास: गांधी जी का ग्रामीण विकास पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव है। उन्होंने ग्रामीण स्वराज, ग्राम स्वदेशी, ग्रामोदय आदि के मुद्दों पर जोर दिया और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए अपार प्रयास किये। उनकी विचारधारा और कार्यों के प्रभाव से ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता, स्वावलंबन, और सामरिक गतिविधियाँ बढ़ी हैं।
स्वच्छता अभियान: गांधी जी का स्वच्छता के प्रति समर्पण और स्वच्छ भारत अभियान पर प्रभाव बहुत है। उन्होंने स्वच्छता को स्वयं सेवा का हिस्सा माना और इसे सामाजिक सुधार का एक महत्वपूर्ण आयाम बनाया।
यह कुछ बाते गाँधी जी के जीवन और विचारधारा को दर्शाती है जो देश के सभी वर्गों को प्रेरित करती है साथ ही देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं हो सकता । टूटे मन से कोई खड़ा नही हो सकता ।
सफलता मेहनत से ही मिलती है इसी हौसले से कुछ लोग चलते है जिनको सफलता चाहिए होती है वे अच्छी मेहनत और पूरी लगन से चलते है हमारे भारत में लोग मेहनत और लगन पर पूरा विश्वास करते है क्योंकी जीवन का नाम ही संघर्ष है अपनी सफलता के साथ साथ समाज को बदलने की चाह लेकर आए हमारे प्रिय अटल बिहारी वाजपेयी जी, देश भक्त, कर्मनिष्ठ, बेहतरीन कवि थे, अटल जी एक पूर्ण रूप से ईमानदार , बेहतरीन वक्ता, सक्षम प्रशासक,देशभक्त दूरदर्शी होने के साथ साथ वादविवाद करता और कवि थे । आइए पूर्ण रूप से इनके जीवन पर चर्चा करते है
Table of Contents
श्रेणी
विवरण
पूरा नाम
अटल बिहारी वाजपेयी
जन्म तिथि
25 दिसंबर, 1924
जन्म स्थान
ग्वालियर, मध्य प्रदेश, ब्रिटिश इंडिया
शिक्षा
विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर से राजनीति विज्ञान में स्नातक (बीए)
राजनीतिक पार्टी
भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा)
किये गए पद
भारत के प्रधानमंत्री (1998-2004)
विदेशी मामलों के मंत्री (1977-1979, 1980-1996)
सांसद का सदस्य (1957-2009)
प्रमुख उपलब्धियाँ
पोखरण II न्यूक्लियर परीक्षण करने, आर्थिक सुधार शुरू करने, गोल्डन क्वाड्रेलेटरल परियोजना की शुरुआत करने
पुरस्कार
पद्म विभूषण (1992), भारत रत्न (2015)
मृत्यु तिथि
16 अगस्त, 2018
मृत्यु स्थान
नई दिल्ली, भारत
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जीवन परिचय
आज हम एक ऐसे व्यक्ति के जीवन के बारे में जानने जा रहे है जो एक देशभक्त कवि ,वादविवाद करता रहे थे । इनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था ग्वालियर इस समय ब्रिटिश भारत के नाम से जाना जाता था अब यह मध्यप्रदेश के नाम से जाना जाता है, अटल जी का मूल निवास उत्तर प्रदेश के प्राचीन स्थान बटेश्वर में है, (Atal Bihari Vajpayee) श्री अटल बिहारी वाजपेयी के पिता जी श्री पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी है जो मध्यप्रदेश के ग्वालियर में अध्यापक थे अटल जी की माता का नाम श्री मति कृष्ण देवी है ।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तिगत जीवन
श्री अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) का जीवन बहुत ही विनम्र और शांत स्वभाव का था, पूरे जीवन भर श्री अटल जी अविवाहित रहे और अपने जीवन में दो लड़कियों को गोद लिया अपने मित्र की बेटी राकुमारी कोल की पुत्री वी एन कोल और नमिता भट्टा चार्य का पालन पोषण किया, राजकुमारी कोल की मृत्यु 2014 में हो चुकी थी। अटल बिहारी जी के साथ मिलकर नमिता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य कविता और काव्य निर्माण करते थे l
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की शिक्षा
अटल जी के पिता जी ग्वालियर में अध्यापक थे अध्यापक होने के साथ साथ वे एक हिंदी और ब्रज भाषा के कवि थे । अटल जी में काव्य की रुचि उनके वनसानुगत थे श्री अटल जी ने अपनी बी ए की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज ( वर्तमान में रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाना जाता है ) पूरी की । उसी समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक से जुड़े और वाद विवाद में हिस्सा लेना शुरू किया
श्री अटल जी ने डी ऐ बी कॉलेज से राजनीतिक शस्त्र से प्रथम श्रेणी में एम ए की परीक्षा उत्तीर्ण की बाद में अपने पिता जी के साथ कानपुर के कॉलेज से कानून की पढ़ाई की पिता जी और अटल जी दोनो एक साथ कानून पड़ रहे थे परन्तु अटल जी को बीच में पढ़ाई को विराम देना पड़ा । पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ राजनीति के पाठ तो पड़े ही साथ ही वीर अर्जुन ,राष्ट्र धर्म , और दैनिक स्वदेश में कुशलता पूर्वक संपादक का कार्य करते थे ।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जीवन में राजनीति का प्रभाव
श्री अटल जी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालो में से एक थे । ये 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे श्री अटल जी ने 1952 लोक सभा का चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 1957 में बलरामपुर (जिला गोंडा उत्तरप्रदेश) से भारतीय जनसंघ के प्रत्यासी के रूप में जीत कर लोकसभा में पहुंचे 1957 से 1977 तक भारतीय जनसंघ के नेता रहे मोरारजी देशाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रह कर देश की छवि को विदेश में बनाई l
6 अप्रैल 1980 को बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष भी श्री अटल जी थे , 1996 में अटल जी ने प्रधान मंत्री की सपथ ली और देश की भाग दौड़ सभाली 19 अप्रैल 1998 में दोबारा अटल जी ने प्रधानमंत्री पथ की सपथ ली और 13 दलों के गठबंधन की सरकार के साथ मिल कर देश के विकाश में 5 वर्ष में अनेक आयाम छुए l
श्री अटल बिहारी वाजपेयी का भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनना
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी सरकार में रहते हुए पोखरण में कुछ भूमी में 13 मे 1998 को परमाणु विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति से संपन्न देश बनाया, अटल जी ने ये काम इतनी सावधानी से किया की पडोसी राज्यों को भनक भी नही लगने दी और पश्चिमी देशो के खुफिया एजेंसी को भनक तक नही लगने दी दुसरे देशो को जब पता चला तब तक अटल जी ने भारत को परमाणु शक्ति प्रदान कर चुके थे, उनके विरोध का दट के सामना किया पश्चिमी देशो ने भारत पर अनेक प्रतिबन्ध लगाये लेकिन अटल जी ने सब का जम कर सामना करते हुए देश को विकाश की तरफ लेते चले गए l
पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने में पहल – (Atal Bihari Vajpayee)
19 फरवरी 1999 को सदा ए सरहद नाम से दिल्ली से लाहोर तक बस सेवा शुरु की गई इसका उद्घाटन श्री अटल विहारी जी द्वारा किया गया और पहले बस यात्री बने और दिल्ली से लाहोर तक जा कर नवाज सरीफ से मुलाकात की और आपसी समंधो में एक नयी सुरुआत दी
श्री अटला जी का कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण निर्णय
कुछ समय पश्चात् पाकिस्तान के तत्कालीन पाकिस्तानी सेना के प्रमुख चीफ परवेज मुशर्रफ़ के निर्देश पर उनके देश के उग्रवादियों ने भारत के कारगिल पर हमला वोल दिया और भारत की कुछ पार्वती चोटी पर कव्जा कर लिया, श्री अटल जी बड़े ही विनम्र रूप से सारे नियंमो का उलंघन न करते हुए पाकिस्तानी सेना को कारगिल से खदेड़ दिया और भारत को उग्रवादियों से मुक्त कराया लेकिन इस वजह से भारत को जान और माल का काफी नुकशान हुआ l
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भारत के बड़े बड़े शहर दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई को राजमार्गो से जोड़ने के लिए स्वर्णित चतुर्भुज परियोजना की सुरुआत की ऐसा माना जाता है की जीतने रोड का विकाश अटल जी के ज़माने में हुआ है उतना शेरशाह सूरी के साशन काल में हुआ था l
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की उपलब्धिया
पुरस्कार
वर्ष
भारत रत्न
2015
पद्म विभूषण
1992
लोकमान्य तिलक पुरस्कार
1994
सर्वश्रेष्ठ संसदीय पुरस्कार
1994
कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा D. Lit. (Honoris Causa)
1996
अग्रा विश्वविद्यालय द्वारा D. Litt. (Honoris Causa)
1999
उत्कृष्ट संसदीय पुरस्कार
1997
लोकमान्य तिलक पुरस्कार
2002
भारत में सर्वश्रेष्ठ प्रशासक पुरस्कार
2002
उत्कृष्ट संसदीय पुरस्कार
2005
भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार
2011
भारत रत्न पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार
2015
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने जीवन में कई उप्लाव्धिया प्राप्त की उसमे से सबसे ऊपर 2015 में सरकार द्वारा दिया गया (भारत रत्न) जिसे की भारत के सर्वोच्च पद के रूप में जाना जाता है और फिर परमाणु निरीक्षक भारत के प्रथम गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री, पद्म विभूषण और अनेक पद प्राप्त हुए जैसे लोकमान्य तिलक पुरस्कार, श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार, इत्यादि
श्री अटल विहारी जी की अंतिम स्वास
अटल बिहारी वाजपेयी जी की मृत्यु का दुःख पुरे भारत को था, 2009 में अटल जी को दिल का दौरा पड़ा उसके कुछ समय पश्चात अटल जी के किडनी में इन्फेक्शन के कारण उनकी तवियत ख़राब होने लगी और वे वोलने में भी असक्षम हो गए, 16 अगस्त 2018 को दिल के दौरे के कारण श्री अटल विहारी वाजपई जी ने में इस दुनिया में अपनी आखरी स्वास ली और भारत को इतनी उप्लाव्धिया दिला कर अपने जीवन को त्याग दिया और उनके पार्थिव शारीर को अंतिम संस्कार के लिए लेजाया गया अटल जी आजीवन तक भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षर में लिखा जाना चाहिए और अटल जी पुरे भारतीयों के दिलो में रहेगे
तथ्य
विवरण
शिक्षा और शिक्षा
आटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश, ब्रिटिश इंडिया में हुआ था।
कवि और वक्ता
वाजपेयी एक कुशल कवि और वक्ता थे, जिनके प्रख्यात भाषणों के लिए जाना जाता था। उन्होंने कई कविता संग्रह प्रकाशित किए।
भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा) के संस्थापक सदस्य
वाजपेयी ने 1980 में भा.ज.पा के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह इसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री
वाजपेयी 1998 से 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे और उन्होंने इस दौरान पूरा कार्यकाल पूरा किया, जो कांग्रेस से बाहर का पहला पीएम था।
पोखरण II न्यूक्लियर परीक्षण
वाजपेयी के नेतृत्व में, भारत ने मई 1998 में पोखरण II न्यूक्लियर परीक्षण किए, जिससे भारत को एक न्यूक्लियर शक्ति के रूप में स्थापित किया गया।
पाकिस्तान के साथ लाहौर समझौता
1999 में, वाजपेयी ने एक ऐतिहासिक बस यात्रा पर लाहौर, पाकिस्तान की ओर निकलकर लाहौर समझौता पर हस्ताक्षर किए, जो दोनों देशों के बीच शांति और सहयोग के लिए था।
मध्यम और समावेशी शासन दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध
वाजपेयी को मध्यम और समावेशी शासन शैली के लिए जाना जाता था, जिसमें आर्थिक सुधार और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित था।
वित्तीय सुधारों को प्रस्तुत करने और गोल्डन क्वाड्रेलेटरल परियोजना की शुरुआत
वाजपेयी की सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों को लागू किया और गोल्डन क्वाड्रेलेटरल महामार्ग परियोजना जैसे बहुमुखी परियोजनाओं की शुरुआत की।
राजनीतिक विचारधारा के समूह में व्यापक समर्थन वाले एक राजनेता
वाजपेयी को अनेक दलों के नेताओं द्वारा अत्यधिक सम्मान और प्रशंसा मिली, चाहे वह उनके अपने दल के अंदर हों या बाहर।
पद्म विभूषण और भारत रत्न प्राप्तकर्ता
वाजपेयी को पद्म विभूषण (1992) और भारत रत्न (2015) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
Atal Bihari Vajpayee
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत
अर्थ -आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है
Mehandipur Balaji – मंदिर जो आज काफी प्रसिद्ध है यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है, बालाजी हनुमान जी के नमो में से एक नाम हैं। मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में भक्त अपने दुखो का निवारण करने के लिए आते हैं। क्योंकि लोग मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की चमत्कारी शक्तियों में काफी आस्था रखते हैं। जिसके चलते यहां काफी भीड़ देखने को मिलती हैं। तो आइए जानते है मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के इतिहास और आस्था के बारे में।
Table of Contents
मेहंदीपुर बालाजी धाम – Mehandipur Balaji
मेहंदीपुर बालाजी जो राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है। जहा हिंदू ही नही अन्य कई धर्म के लोग भी देखने को मिलते है। ऐसा कहा जाता हैं की हनुमान जी वहा आए हर व्यक्ति के दुखो का निवारण किसी न किसी रूप में आकर जरूर करते है। वहा रह रहे स्थानीय लोग हर रोज सवेरे मंदिर में बाला जी के दर्शन करने आते है। कहा जाता हैं वहा महंत जी का हर रोज बैठना होता, वहा आए लोग महंत जी को अपनी परेशानी बताते हैं। वह उनकी परेशानी को जानकर उन्हे दवाई देते है और बताए हुए इलाज पर चलने के सलाह देते हैं।
चार हिसो में बाटा हुआ है मेहंदीपुर बालाजी
जैसे की हम सब सुनते आए है। की जब हनुमान जी का नाम जपते हैं तो कोई भी भूत प्रेत पास नही आते। तो ऐसे में मंदिर को चार हिस्सों में बाटा गया है। जिसमे पहले दो में भैरव बाबा और बालाजी की मूर्ति स्थित है। वही तीसरी और चौथे हिस्से में आत्माओं के सरदार राज का हिस्सा स्थित है। तो ऐसे में जो भी लोग भूत प्रेत से परेशान होते हैं तो वो इस जगह पर आकर अपने दुखो का निवारण करते है और अपने जीवन को सुखी बनाते हैं। और अपको बता दे की इस हिस्से में लोग काफी दूर दूर से लोग माथा टेकने आते है, और यहाँ आए दिन भीड़ देखने को मिलती रहती है।
साथ ही आपको बता दे की यहां प्रसाद के रूप जल दिया जाता है क्योंकि यहां बालाजी की मूर्ति में बाय तरफ एक छोटा छेद है जिसमे से जल की धारा बहती रहती है इस जल को एक पतीले में इकठ्ठा कर के हनुमान जी के चरणों में अर्पित किया जाता है जिसके बाद वह प्रसाद रूप में आए हुए भक्तो को दिया जाता हैं। और यहाँ की काफी प्रभावित आरती शनिवार और मंगलवार के दिन होती है। जिसमे लोगो की काफी भीड़ देखने को नजर आती हैं।
कैसे स्थापित हुआ मेहंदीपुर बालाजी धाम
वैसे तो इस धाम का इतिहास 100 साल पुराना है, इस धाम के पीछे भी एक ऐसी कहानी है जिसने यहाँ मेहंदीपुर बालाजी मंदिर को स्थापित किया। ऐसा कहा जाता है की एक समय मंदिर के पुराने महंत को बालाजी का सपना आया था। जिस सपने में उन्होंने अपने मंदिर की स्थापना का आदेश दिया था। जिसमे उन्होंने महंत जी को अपने मंदिर को स्थापित करने के बाद उसकी सेवा और पूजा अर्चना का आदेश देते हुए आशीर्वाद दिया था। जिसके बाद इस मंदिर की स्थापना राजस्थान में हुई। और मंदिर में तीन देवी देवताओं की मूर्ति को स्थापित किया गया। जो आज बेहद प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है ।
आज इस मंदिर के अंदर बहुत ही भाव पूर्ण से पूजा अर्चना महंत किशोर पूरी जी के द्वारा की जाती है। जो भक्ति भाव में काफी कड़क और हर नियम का बिलकुल सिद्धांत से पालन करने वाले व्यक्ति है। यह धाम कई तरह की मान्यताओ के लिए प्रसिद्ध हुआ, यहाँ दुष्ट प्रेत आत्माओं से मुक्ति दिलाने के लिए प्रसाद के रूप में लड्डू या इत्यादि का भोग बालाजी पे लगाना होता हैं। जिसके बाद दुष्ट प्रेत आत्मा शांति पाकर व्यक्ति के शरीर को त्यागती है।
मंदिर के अंतर्गत और भी प्रसिद्ध मंदिर
मेहंदीपुर बालाजी अपने दृश्य और मान्यता से लोगो को काफी आकर्षित करते हैं लेकिन ऐसे में जब भी व्यक्ति मेहंदीपुर बालाजी दर्शन करने जाता है। तो वह आस पास में स्थित मंदिर के भी दर्शन करता हैं। जैसे की अजंनी माता मंदिर, काली माता मंदिर, गणेश जी का मंदिर इत्यादि।
प्रसाद वे अन्य चीजों से जुड़ी बाते
मेहंदीपुर बालाजी के मंदिर में लोग अपने दुखो का निवारण पाने के लिए आते है। तो ऐसे में कहा जाता है की भोग का प्रसाद जो व्यक्ति खाता हैं उसके दुखो का निवारण हो जाता है। और यह भी कहा जाता है की वहां पर पाए जाने वाले पत्थर से जोड़े का दर्द, सीने के बीमारी व कई अन्य बीमारियो का इलाज होता हैं।
बाला जी मंदिर में प्रवेश करने पर वहा का दृश्य
मंदिर में प्रवेश करने के बाद वहा का दृश्य काफी चौकाने वाला होता हैं, सबसे पहले तो वहा लाए हुए प्रसाद को भोग में चढ़ाया जाता हैं जिसके बाद दर्शन करने होते हैं और दर्शन करते समय वहा आए लोगो को कई तरह के नजारे देखने को मिलते है, जिसमे वहा लोग चिल्ला रहे होते हैं तो कई जोर जोर से बालाजी के नारे लगा रहे होते है तो कई अपने सिर को दीवार पर मार रहे होते है तो कई बैठकर हनुमान चालीसा काफी ऊंची आवाज में पढ़ रहे होते हैं।
मेहंदीपुर बाला जी में कैसे जाए और जाने का सही समय
अगर आप लोग मेहंदीपुर मंदिर में जाने की सोच रहे है तो आप लोग सड़क मार्ग, वायु मार्ग और रेल मार्ग तीनो रास्ते से जा सकते है। जिसमे अगर आप वायु मार्ग चुनते है तो हवाई अड्डा जो राजस्थान में स्थित है। जिससे आप आगे आसानी से दौसा जिले बाला जी धाम पहुंच सकते हैं। अब बात आती है की मंदिर में जाने का सही समय क्या है,
तो ऐसे में यहां पर हनुमान जी के त्योहारों को काफी धूम धाम से मनाया जाता है जैसे की दशहरा, हनुमान जयंती इत्यादि। ऐसे में इन मोहत्स्व पर हनुमान जी की पूजा अर्चना बड़े धूम धाम से की जाती है। तो आप लोग इन त्योहारों के दिनों में भी जा सकते है अगर आप गर्मी में जाने की सोच रहे हैं तो शाम 9 बजे ही दर्शन करे और सर्दियों में सुबह 8 बजे दर्शन करे।
Siddhi Vinayak Mandir – भारत के सबसे धनी मंदिरों की लिस्ट में गिना जाने वाला सिद्धि विनायक मंदिर आज पुरे विश्व भर में प्रसिद्ध है, यहाँ लाखो की संख्या में दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते है , यहाँ आम लोगो के साथ इस मंदिर में नेता, राजनेता और बड़े सितारे यह दर्शन करते हुए नजर आते हैं।
Table of Contents
सिद्धि विनायक मंदिर – Siddhi Vinayak Mandir
मुंबई में स्थित सिद्धि विनायक मंदिर, जो गणपति बप्पा को समर्पित है, अक्सर हम सुनते आए है की गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता और दुखहर्ता भी कहा जाता है। इसे के चलते लोगो के मन में मान्यता देखने को मिलती और इसी मान्यता के चलते मंदिर में हमेशा बप्पा के दर्शन करने के लिए लोगो की भीड़ देखने को मिलती है। लोग अपनी मनोकामना लेकर और अपने जीवन के दुखो को दूर करते हैं और अपना विश्वास बप्पा में और अटूट करते हैं। इसी तरह हर एक पवित्र स्थान अपने में कुछ खास बातो को समेटे हुए हैं। तो आइए जानते है सिद्धिविनायक की खूबसूरती और उसकी रोचक बातो के बारे में।
सिद्धि विनायक मंदिर 18 नवंबर 1801 में बनवाया गया था। यह निर्माण एक ठेकेदार द्वारा किया गया था, साथ ही इस मंदिर का निर्माण में एक किसान महिला ने अपना योगदान दिया था, अपको बता दे की, ऐसा कहा जाता है की यह किसान महिला की कोई संतान नहीं थी, जिसके चलते यह महिला ने राशि का योगदान देकर मंदिर के निर्माण में कार्य किया था।
सिद्धि विनायक मंदिर की आस्था
जैसे की हमने आपको बताया की इस किसान महिला की कोई संतान न होने के कारण, वह चाहती थी की कोई भी महिला उनके तरह दुखी न हो, जिसके चलते उन्होंने इस मंदिर का निर्माण, इस आस्था से करवाया था की जो भी नया जोड़ा अपनी संतान की मुराद लेकर आएगा। उसकी झोली कभी खाली नही जायेगी। इसी आस्था के चलते जो जोड़ा संतान के सुख से अप्रचित रहते है, वह अपनी मुराद के साथ यहां सच्चे मन से दर्शन करने आते है। और अपनी झोली भर के जाते हैं।
सबसे अमीर मंदिर में से है सिद्धि विनायक मंदिर
सिद्धि विनायक मंदिर को अमीर मंदिरों में से एक मंदिर माना जाता हैं। यहाँ पर हर साल लाखो करोड़ों रुपए की राशि का चढ़ावा चढ़ता हैं। बताया जाता है की मंदिर में हर साल 10 से 15 करोड़ की राशि दान की जाती है।
सिद्धि विनायक मंदिर में दिखाई देगी हनुमान जी की मूर्ति
सिद्धि विनायक मंदिर में हनुमान मूर्ति का भी इतिहास है ऐसा कहा जाता है की जब मंदिर के लिए सड़क चौड़ी की जा रही थी तो उस दौरान पंडित जी को हनुमान जी की मूर्ति मिली थी। जिसके बाद उन्होंने उस मूर्ति को सिद्धिविनायक मंदिर में गणेश जी की मूर्ति के साथ स्थापित किया। आज जो भी लोग यहां बप्पा के दर्शन करने आते हैं वे साथ में हनुमान जी के दर्शन भी जरूर करते है। और अपको बता दे, की सिद्धि विनायक मंदिर मंगलवार की आरती के लिए भी काफी प्रसिद्ध हैं और इस दिन लोगो की काफी लंबी लाइन भी देखने को मिलती हैं।
बप्पा की मूर्ति का दृश्य
यह मंदिर अपने में ही बेहद खास है। जिसके चलते इसकी सुंदरता में बप्पा की मूर्ति चार चांद लगाती है तो ऐसे में बप्पा की मूर्ति में चार हाथ दर्शाए गए है जिसमे एक हाथ में कमल, दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी, तीसरे हाथ में लड्डू और और चौथे हाथ में मोतियों की माला। इस मूर्ति को काले पत्थर द्वारा बनाया गया है जो देखने में काफी खूबसूरत और आकर्षित है बप्पा की मूर्ति अपनी पत्नियों रिद्धि सिद्धि द्वारा घिरे हुए दिखाई दे रहे है।
मंदिर जाने का सही समय
अगर आप सिद्धि विनायक मंदिर के दर्शन करने का सोच रहे हैं तो ऐसे में हम आपको बताएंगे की किस मौसम में आप मुंबई जाकर दर्शन कर सकते है, जैसे की हम जानते है की मुंबई का मौसम गर्म रहता है तो ऐसे में आप गर्मी के मौसम में न जाकर, अक्टूबर से फरवरी के मौसम में अवश्य जाएं। जिस दौरान आप बप्पा के दर्शन बिना किसी परेशानी के और अच्छी तरह कर पाएंगे। अब बात आती है यात्रा की बप्पा के मंदिर में यात्रा करने का सही समय दोपहर का है, जिस दौरान वहा भीड़ कम होती है और आप अच्छे से और जल्दी बप्पा के दर्शन कर पाएंगे।
इनके अलावा सिद्धि विनायक मंदिर में नवरात्रि, विनायक चतुर्थी, गुडी पड़वा अक्षय तृतीया, राम नवमी, नाग पंचमी व इत्यादि ऐसे कई त्योहार बड़े धूम धाम से मनाए जाते है, आप लोग इन त्योहारों के दिन भी जाकर दर्शन कर सकते और वहा का आकर्षित नजारा देख सकते हैं।
Ankor Wat Temple – हिन्दू धर्म में ऐसे अनेको प्राचीन धार्मिक स्थल और मंदिर मौजूद है , जिसके पीछे कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है और लोगो की आस्था और विश्वास इनसे बना हुआ है । आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जिसको विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल माना जाता हैं।जो दुनिया के साथ अजुबो के बाद सबसे आश्चर्यचकित रचना है।
Table of Contents
कहाँ है अंकोरवाट मंदिर
अंकोरवाट मंदिर जो दक्षिण एशिया में कबोडिया देश में स्थित है। जो भारत से लगभग 4500 किलोमीटर की दूरी पर है । जो शुरू में हिंदू धार्मिक स्थल था जहा हिंदू लोगो का आना जाना था। जिसके बाद इस मंदिर को कबोडिया की राजधानी अंगकोर पर बुद्ध शासन के चलते इसे बुद्ध मंदिर का रूप दिया गया। जिसके बाद इसमें हिंदू और बुद्ध भगवान की मूर्तिया देखने को मिलती है, कहा जाता है की यह मंदिर भगवान विष्णु जी को समर्पित है।
अंकोरवाट मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का इतिहास जिस तरह से अनोखा है उसी तरह से इस मंदिर का निर्माण और अंदर का दृश्य भी अनोखे तरह से किया गया है। कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण सौ लाख रेत के पत्थरों से किया गया, जिसमे प्रतेक पत्थर का वजन डेढ़ से दो टन का था। और इसी अनोखे दृश्य के चलते यह मंदिर इतना प्रचलित हुआ की इसे वर्ड गिन्नीज बुक में शामिल किया गया,
इसकी इमारत को यूनेस्को 1992 में वर्ल्ड हेरिटेज ने शामिल किया था। साथ ही साथ अमेरिका के मैगजीन ने इस मंदिर को विश्व का आश्चर्य जनक स्थलों में शामिल किया। जिसके बाद यह मंदिर काफी प्रसिद्ध हुआ और जहाँ लाखो की संख्या में लोग घूमने और वहा दर्शन करने जाते हैं।
अंगाकोर वाट मंदिर का इतिहास
कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण 12 वी सदी में हुआ था और इसका निर्माण हिंदू धर्म के राजा सूर्यवान जो विष्णु के भक्त थे उनके द्वारा किया गया था। इस मंदिर का निर्माण हिंदू धर्म के मंदिर से काफी सामान्य था जिसमे कई तरह की दीवारों पे नकाशी के द्वारा जीवन के बारे में बताया गया। इस मंदिर के चारो और खाई है। जो लगभग 650 फीट चौड़ी है, और 36 फीट चौडा पत्थर का रास्ता है ।
अंकोरवाट मंदिर के अंदर की कला
अंकोरवाट मंदिर की कला पूरी हिंदू धर्म को दर्शाती है जिसके चलते लोगो को हिंदू धर्म और पौराणिक कथाओं की काफी जानकारी भी है। ऐसे में जब आप अंगकोर वाट मंदिर में प्रवेश करते हैं। तो आपको दीवार पे रामायण और महाभारत के दृश्यों को दर्शाती है। जिसमे महाभारत और रामायण की पौराणिक कथाओं का वर्णन है और अलग अलग तरह की कला के द्वारा चित्रकारी कर रखी हैं।
अपको बता दे, की यह मंदिर चारो ओर पानी से घिरा हुआ है। जिसका दृश्य काफी खूबसूरत है यहाँ लोगो को मन की शांति मिलती है व साथ ही साथ यहाँ आए पर्यटकों को भगवान विष्णु जी के साथ भगवान ब्रह्मा, शिव जी के दर्शन करने को मिलते है।
मंदिर घूमने का सही समय
अगर आप लोग अंकोरवाट घूमने का सोच रहे है तो ऐसे में बाते आती की किस मौसम में अंगकोर घूमने जाना सही रहेगा समय है। तो ऐसे में आप लोग नवंबर से लेकर मार्च तक जा सकते है। इस दौरान गर्मी कम होने की वजह से और बारिश न होने की वजह से आप अंकोरवाट को अच्छी तरह घूम सकते है।
और अपको बता दे की, अंकोर मंदिर जिस देश में है वह ज्यादातर गर्म ही रहता है। तो आप इस दौरान ऐसे कपड़े ही पहने जो न ज्यादा छोटे हो और न ही ज्यादा गर्म। जिस कारण आप मंदिर को बिना किसी परेशानी के अंकोर मंदिर को अच्छी तरह घूम सकते हैं।
विदेश से आने वाले पर्यटक कैसे प्रवेश करे अंकोर मंदिर में
जैसे की हम सब जानते है अंगकोर मंदिर विश्व का सबसे बड़ा मंदिर है जिसको देखने दूर दूर से लोगो का आना जाना लगा रहता है। तो ऐसे में विदेश से आने वाले पर्यटकों को अंगकोर मंदिर में पास लेकर ही प्रवेश करना होता है और यह पास टिकट अधिकारी ऑफिस से ही प्राप्त किया जा सकता है। और इस पास और टिकट के लिए पैसा देना अनिवार्य होता है जो या तो रुपए के रूप में होगा या डॉलर के रूप में। जिसके बाद हम अंकोर मंदिर में प्रवेश कर उसको अच्छी तरह घूम सकते हैं।
अंकोरवाट मंदिर के आस पास भारतीय रेस्ट्रोरेन्ट
भारत से आए पर्यटक को वहा अपने भोजन के लिए काफी कड़ी मशकत नही करनी पड़ती। भारतीय पर्यटकों को वहा आसानी से भारतीय भोजनालय मिल जाते है जहा भारतीय भोजन के अलग अलग मनोरंजक भोजन होते है।
जो भारतीय लोगो की भूख को मिटाते है। वही अपको अंकोर मंदिर से थोड़ा दूर अंकोर इंडियन रेस्ट्रोरेन्ट (Angkor Indian Resturant) दिखाई देगा, जिसमे आपकी भारत के भोजन की कई वैरायटी मिलेगी। यह होटल सुबह के 7:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक खुला रहता है।
भारत से कंबोडिया देश कैसे पहुंचे
भारत से जाने वाले पर्यटकों को बाय एयर जाने के लिए भारत से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलोर से फ्लाइट ले सकते है जिसके बाद यह फ्लाइट कंबोडिया के फनोम पेन्ह इंटरनेशनल एयरपोर्ट या सीएम इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर फ्लाइट लैंड करती है जिसके बाद आप कंबोडिया के लिए किसी भी बस या कैब के द्वारा अंकोर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। और वहा का आनंद उठा सकते है।
Iskon Temple – हिन्दू धर्म कई भगवानों में विश्वास रखता हैं जिसके चलते अनेको ऐसी कहानियां और रोचक बाते है जो भगवान के प्रति हमारा अटूट विश्वास जागरूक करती हैं। ऐसे में हमारे हिंदू धर्म के कई लोग भगवान कृष्ण जी को बहुत ज्यादा मानते है। क्योंकि हमने बचपन से श्री कृष्ण जी की नटखट शैतानी और उनकी लीला के बारे में बहुत कुछ सुना और देखा है। ऐसे में आज हम आपको भगवान कृष्ण जी का एक तीर्थ स्थान मंदिर बताएंगे जो देश के साथ विदेश में भी लोगो को अपनी और आकर्षित करता है।
Table of Contents
कहाँ है इस्कॉन टेम्पल
इस मंदिर के बारे में तो आपने सुना ही होगा, जो उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh) राज्य के मथुरा (Mathura ) शहर के वृंदावन (Vrindavan) में स्थित है। जो भारत के अलावा कई अन्य देशो में भी स्थित है और जहाँ लोग अपनी मुराद लेकर श्री कृष्ण जी के दर्शन करने जाते हैं। ऐसे में इस्कॉन मंदिर की काफी मान्यता होने के कारण, लोग को इस मंदिर में आध्यात्मिक रास्ते पर चलने की सीख दी जाती है।
व साथ ही साथ जीवन जीना का सही तरीका भी सिखाया जाता है। इस मंदिर की स्थापना 1966 में विदेश में श्री कृष्ण जी के भक्त प्रभुपाद ने की थी। जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर को विदेश के साथ भारत में भी स्थापित किया। इस्कॉन मंदिर को एक बेहद ही रूपी रूप में बनवाया गया है। जो एक खूबसूरती का अनोखा दृश्य है।
कैसे स्थापित हुआ था इस्कॉन टेम्पल
स्वामी प्रभुपाद जी के गुरु जो चाहते थे, की कृष्ण भक्ति की लीला देश के साथ विदेश में भी अंग्रेजी भाषा में प्रचलित की जाए। जिसके बाद प्रभुपाद जी ने अपने स्वामी का कहा मानते हुए, अपने सफर की और निकल पड़े थे और उन्होंने आध्यात्मिक कृष्ण कथाओं को अंग्रेजी में विवरण कर वहा के लोगो को काफी आकर्षित किया, जिसके चलते पहला इस्कॉन मंदिर न्यूयॉर्क में बनाया गया। जिसके पश्चात स्वामी प्रभुपाद जी का उनकी प्रसिद्ध नगरी मथुरा में निधन हो गया। जिसके बाद इस्कॉन मंदिर का इतिहास और उसके लेकर मान्यता, लोगो के मन में काफी जागरूक हुई।
इस्कॉन मंदिर के सिद्धांत
पूरी दुनिया में 400 मंदिरों में फैला इस्कॉन मंदिर , जिसको इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णा कांशसनेस ( “International Society for Krishna Consciousness”) है। जिसकी फुल फॉर्म अंग्रेजी शब्दों से ली गई थी। इस्कॉन मंदिर का निर्माण प्रभुपाद जी ने कृष्ण लीला को दुनिया भर में फैलाने के लिए किया था। जिसके बाद लोगो के मन में काफी जागरूकता शुरू होने लगी और लोगो को इस मंदिर में आकर एक शांति का एहसास होने लगा। कहा जाता है की जो भी व्यक्ति अपने जीवन को सरल और सुखी बनाना चाहता हैं उसे इस्कॉन मंदिर में आकर जीवन व्यतीत कर चार नियम का पालन करना होता है – तप , दया, सत्य, और मन की शुद्धता
इस्कॉन टेम्पल के कुछ नियम
हम सब जानते है धार्मिक स्थानों पे हर तरह के नियम का पालन किया जाता हैं। क्युकी ऐसी जगह पर हर काम नियम के अनुसार पूर्ण किया जाता है।
जैसे की हमने आपको बताया की इस्कॉन मंदिर में आध्यात्मिक जीवन से परिचय करवाया जाता है जिसके चलते वह रह रहे मनुष्य को कुछ बातो का बेहद ध्यान रखना होता हैं।
पहला नियम इस्कॉन का यहाँ रह रहे लोगो को तामसिक भोजन का त्याग कर एक सरल भोजन को अपनाना होता है जैसे की प्याज, लहसुन, मास, मदिरा इन सब का त्याग करना होता हैं।
2. ऐसे माहौल से दूर रहना होता है, जिनका तालुक जुआ, मदिरा और इत्यादि से होता हैं।
3. इस्कॉन में मनुष्य को हर रोज एक घंटा शास्त्र अध्यन में बिताना होता है। जिसमे हमे आध्यात्मिक और भारत के इतिहास की जानकारी के साथ शास्त्रों का अध्यन करवाया जाता हैं।
साथ ही इस्कॉन में मनुष्य को हर रोज वहा का प्रमुख भजन “हरे कृष्ण हरे रामा”) ९ की माला को 16 बार जपना होता है।
भारत के कुछ प्रसिद्ध इस्कॉन मंदिर
आज लोगो के मन में इस्कॉन मंदिर को लेकर एक ऐसी मान्यता बन हो चुकी हैं। की दूर दूर से लोग इस मंदिर में कृष्ण राधा के दर्शन और अंदर की गई सुंदर नकाशी और उसकी खूबसूरती को देखने आते हैं। ऐसे में भारत में बने कई इस्कॉन मंदिर जो आज बेहद प्रसिद्ध और मान्यता हासिल कर चुके है। तो आइए जाने प्रसिद्ध इस्कॉन मंदिर के बारे में।
1.प्रसिद्ध दिल्ली इस्कॉन मंदिर
भारत में बना इस्कॉन मंदिर जो दिल्ली हरी कृष्ण हिल्स नेहरू प्लेस में स्थापित है जिसका उद्घाटन भारत के पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपाई द्वारा किया गया था। जहाँ आज लाखो संख्या में लोग इस्कॉन के वातारण और मंदिर के अंदर का दृश्य देखने दूर दूर से आते हैं।
प्रसिद्ध मथुरा, वृंदावन इस्कॉन मंदिर
मथुरा, वृंदावन तो श्री कृष्ण का बचपन का स्थान है और साथ ही साथ प्रभुपाद जी का काफी प्रिय नगरी भी है, तो यहाँ पर इस्कॉन मंदिर का होना तो लाजमी ही हैं इसी कारण से मथुरा, वृंदावन में होने पर यह मंदिर काफी प्रसिद्ध और शांत हैं।
प्रसिद्ध जयपुर, इस्कॉन मंदिर
भारत का एक और प्रसिद्ध मंदिर जो श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम के प्रेम पर समर्पित है जिसको श्री गिरिधारी दाऊजी मंदिर’ के रूप में जाना जाता है, मानसरोवर, जयपुर में स्थित इस्कॉन मंदिर। यहां की मूर्तियां और चित्र आपका दिल जीत लेंगे।
प्रसिद्ध मुंबई, इस्कॉन मंदिर
श्री राधा रासबिहारी जी’ मंदिर के रूप में जाना जाता है, मुंबई के जुहू में स्थित इस्कॉन मंदिर। यह 4 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। यह मंदिर कही भक्तो से भरा रहता है, जिस कारण यह बेहद लोगो का अलग अलग जगह से आना जाना साल भर लगा रहता हैं।
Golden Temple – भारत में कई ऐसे मन्दिर और गुरद्वारे मौजूद है। जो अलग अलग धर्मो का प्रतीक है। जिनका दृश्य किसी खजाने से कम नहीं है। और इसी तरह भारत में कई धर्मो के लोग एक दूसरे के साथ मिल कर रहते है। ऐसे में सिखो का प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर जो सिखो के साथ–साथ सभी धर्मो का प्रतीक है जहाँ हर तरह के लोग अपनी मनोकामना लेकर स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने जाते है।
Table of Contents
कहाँ है स्वर्ण मंदिर
स्वर्ण मंदिर जो सिखो के धर्म का प्रतीक है यह मंदिर पंजाब (Punjab) राज्य के अमृतसर (Amritsar) में स्थित श्री हरमिंदर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। अपको बता दे की यह मंदिर सोने (Gold ) से बना हुआ है जो खुद में ही एक आकर्षित दृश्य है। यह एक ऐसा पवित्र स्थल है जिसने अपने अंदर खूबसूरती को समेटा हुआ है। अगर हम अंदर से स्वर्ण मंदिर को देखते है तो हमे दीवार पे की हुई कई तरह की नकाशी दिखाई देती है ।
स्वर्ण मंदिर का इतिहास – Golden Temple
ऐसा कहा जाता है की यह स्वर्ण मंदिर 400 वर्ष पुराना है जिसका निर्माण सिखो के चौथे गुरु ने शुरुवात की थी जिसके बाद गुरु नानक और उनके पांचवे गुरु श्री अर्जुन देव जी ने 1577 में उनका पूर्ण रूप से निर्माण किया था। जिसके बाद इसे एक पूर्ण रूप में पक्का किया गया और जिसके बाद इसका निर्माण तालाब के बीच में किया गया। ऐसा कहा जाता है की जो भी श्रद्धालु मंदिर में आते है वह पहले तालाब में नहाते है। क्योंकि पौराणिक कथा के अनुसार इस तालाब में नहाने से कई तरह के रोग से मुक्ति मिलती है और पापों का नाश होता है जिसके बाद गुरु ग्रंथ साहिब जी को स्थापित किया गया।
अपको बता दे, की इस मंदिर का निर्माण सुरक्षित रूप से पूरा किया गया था। लेकिन इस मंदिर पर कई बार कई आक्रमण किए गए। जिसकी वजह से मंदिर पूरे रूप से नष्ट हो गया था। जिसके बाद भगवान में आस्था की वजह से और लोगो के अटूट विश्वास से इस मंदिर का दुबारा एक सुंदर रूप में निर्माण किया गया। जहाँ आज उसी अटूट विश्वास से लाखो की संख्या में लोग मंदिर के सुंदर दृश्य को देखने के लिए दूर–दूर से आते हैं।
किस तरह हुआ मंदिर का निर्माण
जैसे की हमने आपको बताया की मंदिर को एक बड़े सरोवर के बीच बनाया गया है जिसको रात के समय में देखना बहुत आकर्षित लागत है। ऐसे ही इस मंदिर के अंदर का निर्माण भी बेहद खूबसूरत है अपको बता दे की इस मंदिर के दीवारों का निर्माण एक बहुत सुंदर नकाशी से किया गया है इसके चार द्वार है जिन्हे लोग देखने के लिए आते है। इस मंदिर की इमारत तीन मंजिला है। जिसमे ऊपरी हिस्सा सोने से बना हुआ है।
सबसे बड़ा लंगर
अमृतसर स्वर्ण मंदिर में लाखो लोग माथा टेकने आते है। जहाँ लोगो को अच्छी तरह से लंगर खिलाया जाता है। ऐसा कहा जाता है की अमृतसर गुरदवारे में दुनिया का सबसे बड़ा लंगर होता है। जहाँ करीबन एक दिन में लाखो लोगो को लंगर खिलाया जाता है। और रोजाना संगत को देखते हुए दिन में 2 लाख से भी अधिक रोटियां बनाई जाती है। लेकिन आपको बता दे की, इस मंदिर में थाली में भोज को छोड़ना उनके लिए बेकद्री होती हैं जिस कारण लोगो को उतना ही खाना लेना चाहिए। जितनी उन्हे भूख हो।
स्वर्ण मंदिर में अनुरोध है इन बातो का
गुरुद्वारे में जाने से पहले जूते चपलो को बाहर उतार कर ही अंदर जाना होता है।
गुरुद्वारे में प्रवेश करने से पहले हमे अपने सिर को रुमाल, दुपट्टा, स्कार्फ से ढकना जरूरी है।
गुरुद्वारे में कैप्री या कोई भी छोटे कपड़े डाल के जाना सख्त मना है।
यह आए श्रद्धालु को अपने साथ किसी भी तरह का शराब, सिगरेट और ड्रग्स इत्यादि लाना माना हैं।
गुरुद्वारे में आए श्रद्धालु को अन्य प्रकार की फोटो या सेल्फी लेना माना हैं।
गुरुद्वारे में आए श्रद्धालु को अंदर दरबार साहिब के अंदर चल रही गुरुबाणी को नीचे बैठ कर ही सुनना होता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है की नीचे बैठ कर गुरुबाणी को सुनना गुरु ग्रंथ साहिब जी को सम्मान देने का तरीका है।
कैसे पहुंचे अमृतसर स्वर्ण मंदिर
अमृतसर स्वर्ण मंदिर में बाय रोड और ट्रेन से रास्ता भी उपलब्ध है। जिसमे करीबन 9 घंटे का समय लगता है। अब अमृतसर जाने के लिए बाय प्लेन भी रास्ता उपलब्ध है जिसमे करीबन 1 घंटे के सफर को तेय हम अमृतसर स्वर्ण मंदिर में जा सकते है।
कौनसा सही समय ही अमृतसर स्वर्ण मंदिर में दर्शन करने का
स्वर्ण मंदिर में दर्शन करने के लिए हर रोज लंबी लाइन का सामना करना पड़ता है। क्योंकि मंदिर में लाखो लोगो की कगार में माथा टेकने आते है। जिस स्थिति में लोगो को मंदिर में दर्शन करने के लिए लंबी लाइन में खड़ा होना पड़ता है ऐसी में अगर आप लाइन से बचना चाहते हैं तो आप सुबह के चार बजे स्वर्ण मंदिर में माथा टेक सकते ।
जिसके दौरान लाइन बेहद कम होती और नंबर भी जल्दी आता है। और रही बात वीकेंड पर स्वर्ण मंदिर में जाकर दर्शन करने का । ऐसे समय पर अपको सुबह शाम काफी लंबी लाइन देखने को ही मिलेगी। तो ज्यादातर लोगो वीकेंड को छोड़ आगे पीछे के दिन में दर्शन कर सकते हैं। जिसे आप लाइन से बच कर जल्दी दर्शन कर सकते हैं।