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Inspirational Story – जशराज चारण हर दिन 25 किलो आटे की रोटियां बनाकर, भरते हैं 300 से ज़्यादा बेसहारा कुत्तों का पेट

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वैसे तो जानवरों और पक्षियों से इंसान का प्यार कोई नई बात नहीं है। युगों से इंसान पशु-पक्षियों से प्यार करता रहा है।

दुनिया में कई सारे लोग हैं जो पक्षियों और जानवरों से बेहद प्यार करते हैं। कई लोगों ने कुत्ता, बिल्ली जैसे जानवरों को ऐसे अपना लिया है कि वे उन्हें अपने घर-परिवार का बेहद अहम हिस्सा मानते हैं। आज हम आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बताएंगे जो हर रोज पशुओं के लिए भोजन तैयार करते हैं। हर दिन उनके द्वारा 300 बेसहारा कुत्तों का पेट भरा जाता है। आइये जानते है इस नेक कार्य के बारे में।

जशराज चारण का परिचय

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जशराज चारण कच्छ के मांडवी तालुका के कठड़ा गाँव के निवासी है। उन्हें जानवरों से इतना प्यार है कि वह प्रतिदिन जानवरों के लिए भोजन तैयार करते हैं और बेसहारा जानवरों का पेट भरते हैं। उनका परिवार हर दिन 25 किलो आटे का रोटी तैयार करता है और कुत्तों को खिलाता है। जानवरों के प्रति उनका यह अद्भुत प्यार को उनके गांव के लोग काफी प्रशंसा करते हैं।

वन विभाग में काम करते थे जशराज

जशराज वन विभाग में काम करते थे। उन्होंने पहले फॉरेस्ट गार्ड और वनपाल के तौर पर काम किया है। उन्होंने वन विभाग में 37 साल काम किया है। वह विभाग में काम करते-करते जशराज को जानवरों से काफी लगाव हो गया तभी से वो जानवरों की खूब सेवा करते हैं। जानवरों के भोजन में प्रतिमाह उनके द्वारा 35 हजार रुपये का खर्च किया जाता है। जसराज के परिवार के और लोग भी वन विभाग में कार्यरत है। अभी वर्तमान में उनका छोटा बेटा और बेटी वन विभाग में अपनी सेवा दे रही हैं।

भरते है 300 कुत्तों का पेट

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जशराज रिटायर होने के बाद से ही पशु प्रेम में लगे हुए है। वह अपने गांव के 300 कुत्तों को प्रतिदिन भोजन कराते हैं। उन्हें यह सब करना बहुत पसंद है।इसकी शुरुआत अचानक ही उनके द्वारा हुई थी। जशराज रोज ऑफिस से आने के बाद वॉक पर जाया करते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि कुत्ते के छोटे-छोटे बच्चे, अपनी माँ के साथ बड़ी ही दयनीय हालत में थे। चूँकि उनकी माँ भी अपने बच्चों को छोड़कर खाना लाने नहीं जा सकती थी। इसलिए वह भी भूखी और कमजोर हो गई थी। जशराज ने उस दिन तो उन्हें बिस्कुट खरीद कर खिला दिए। लेकिन अगले दिन उन्होंने अपनी पत्नी से तीन-चार रोटियां बना कर देने को कहा। इस तरह वह उनको रोज रोटियां देने लगें।

जानवरों की संख्या बढ़ी

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इसी चीज को रोजाना करने से जानवरों को संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई। इस तरह अब उनके घर में 300 कुत्तों के लिए हर रोज खाना तैयार होता है। वहीं, जशराज हर दिन जंगल में छोटे-छोटे जानवर, जैसे- खरगोश, हिरन और सियार के छोटे बच्चों को बिस्कुट खिलाने जाते हैं। इसके लिए वह हर महीने लगभग पांच हजार के बिस्कुट भी खरीदते हैं। इन सभी कामों में जशराज के परिवार वाले हमेशा साथ देते हैं।

जशराज चारण के पशु प्रेम की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। लोगों को जशराज से सिख लेने की आवश्यकता है।

 

Neeraj Chopra Biography in Hindi

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आइए इस लेख के माध्यम से नीरज चोपड़ा के जीवन के बारे में जाने:-

नाम नीरज चोपड़ा
जन्मतिथि 24 दिसंबर 1997
आयु (2021) 23 वर्ष
धर्म हिंदू
जन्म स्थान पानीपत, हरियाणा
पिता का नाम सतीश चोपड़ा
माता का नाम सरोज देवी
खेल ट्रैक एंड फील्ड (जेवलिन थ्रो)
कोच उवे होन
प्रतिस्पर्धा जेवलिन थ्रोअर (भाला फेंकना)
पुरस्कार विशिष्ट सेवा मेडल
शिक्षा DAV कॉलेज, चंडीगढ़

 

टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए एथलीट में पहली बार गोल्‍ड मेडल जीतकर नीरज चोपड़ा जी ने इतिहास रचा है। नीरज ने भारत का 100 सालों का इंतजार खत्म किया है। मात्र 23 साल की उम्र में इन्होंने अपनी फिटनेस की जो मिसाल पेश की वो हर किसी को प्रेरित करने वाली है। आइये जानते है उनके बारे में।

नीरज चोपड़ा का परिचय।

Image/ Twitter/ Neeraj Chopra

नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर 1997 को पानीपत, हरियाणा में हुआ। नीरज हरियाणा के एक गांव खंडरा के रहने वाले हैं। उनके पिता का नाम सतीश चोपड़ा है जो कि पेशे से एक कृषक हैं। वहीं उनकी माता सरोज देवी हैं जो कि एक ग्रहणी हैं। नीरज के परिवार में उनके माता-पिता, भाई बहनों, तीन चाचाओं के अलावा 19 सदस्य एक ही छत के नीचे रहते हैं। वे अपने 10 चचेरे भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं।

बचपन में थे नीरज काफी मोटे |

कभी बचपन में 80 किलो का वजन लेकर आलोचना का शिकार होने वाले नीरज के लिए टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीतने का सफर तय करना इतना आसान नहीं था। इस बीच उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह अपने मोटापे से परेशान रहते थे।

पानीपत की मिट्टी से निकले नीरज |

देश को अपने प्रदर्शन से गर्व महसूस कराने वाले श्री नीरज चोपड़ा का जन्‍म हरियाणा के पानीपत में एक किसान परिवार में 24 दिसंबर 1997 को हुआ था। नीरज ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पानीपत से ही की। अपनी प्रारंभिक पढ़ाई को पूरा करने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ में एक बीबीए कॉलेज ज्वाइन किया था और वहीं से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी।

मोटापा कम करने के लिए थामा भाला |

Image/ Twitter/ Neeraj Chopra

श्री नीरज चोपड़ा अपने बचपन में बहुत मोटे थे। मात्र 13 साल की उम्र में ही उनका वजन करीब 80 किलो था। जिसके कारण गांव के दूसरे बच्‍चे उनका मजाक बनाते थे, उनके मोटापे से उनके परिवार वाले भी परेशान थे। इसलिए उनके चाचा उन्‍हें 13 साल की उम्र से दौड़ लगाने के लिए स्‍टेडियम ले जाने लगे। लेकिन इसके बाद भी उनका मन दौड़ में नहीं लगता था। स्‍टेडियम जाने के दौरान उन्‍होंने वहाँ पर दूसरे खिलाड़ियों को भाला फेंकते देखा, तो इसमें वो भी उतर गए। यहाँ से उनकी जिंदगी बदल गई।

यूट्यूब को बनाया था गुरु

एक समय ऐसा भी था, जब नीरज के पास कोच नहीं था। तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। वो यूट्यूब को ही अपना गुरु मानकर भाला फेंकने की बारीकियां सीखते थे। इसके बाद मैदान पर पहुँच जाते थे। उन्होंने वीडियो देखकर ही अपनी कई कमियों को दूर किया। शुरुआती दौर में नीरज को काफी मुश्किलें आईं। आर्थिक तंगी के कारण उनके परिवार के पास नीरज को अच्छी क्‍वालिटी की जेवलिन दिलाने के पैसे नहीं होते थे। लेकिन नीरज बिना किसी निराशा के सस्ती जेवलिन से ही अपनी प्रेक्टिस जारी रखते थे।

कोच ने दिया भाला फेंकने का प्रशिक्षण

Image/Neeraj Chopra with Coach /Jagran

नीरज चोपड़ा की प्रतिभा को देखते हुए सबसे पहले भाला फेंकने की कला पानीपत के कोच जयवीर सिंह ने उन्हें सिखाई। इसके बाद पंचकूला में उन्होंने 2011 से 2016 की शुरुआत तक ट्रेनिंग ली। हालांकि नीरज सिर्फ भाला ही नहीं फेंकते थे, बल्कि लंबी दूरी के धावकों के साथ दौड़ते भी थे। नीरज के साथ पंचकूला के हॉस्टल में रहने वाले कुछ दोस्त भी थे जो उनके साथ पानीपत में ट्रेनिंग किया करते थे।

ऐसे शुरू किया भाला फेंकने का खेल |

श्री नीरज चोपड़ा पढ़ाई के साथ- साथ जेवलिन यानी भाला फेंकने का भी अभ्‍यास करते रहे, इस दौरान उन्‍होंने नेशनल स्‍तर पर कई मेडल अपने नाम किए। नीरज ने 2016 में पोलैंड में हुए आईएएएफ वर्ल्ड यू- 20 चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर दूर भाला फेंककर गोल्ड जीता। जिससे खुश होकर आर्मी ने उन्‍हें राजपूताना रेजिमेंट में बतौर जूनियर कमीशंड ऑफिसर के तौर पर नायब सूबेदार के पद पर नियुक्त किया।

चोट के आगे भी नहीं टेके घुटने 

Neeraj Chopra while injured

श्री नीरज चोपड़ा के लिए ओलंपिक की राह आसान नहीं रही। उन्हें कंधे की चोट के कारण मैदान से दूर रहना पड़ा। कंधा ही मजबूत कड़ी होता है। नीरज भाले के बिना रह नहीं सकते थे। ठीक होने पर दोबारा मैदान पर वापसी की। कोरोना के कारण कई प्रतियोगिताएं नहीं खेल सके, पर हिम्‍मत नहीं हारी। टोक्‍यो ओलिंपिक में क्‍वालिफाइ कर ही लिया। अपने पहले ही टूर्नामेंट ने नीरज जी ने इसका कोटा हासिल कर लिया था।

भाला फेंकने में बनाए कई रिकॉर्ड

Image /Neeraj Chopra/ Twitter

नीरज चोपड़ा ने भाला फेंकने को ही अपना एकमात्र लक्ष्य बना लिया। साल 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में नीरज ने 88.06 मीटर का थ्रो कर गोल्ड मेडल जीता था। नीरज पहले भारतीय हैं जिन्होंने एशियन गेम्स में गोल्ड जीता है। एशियन गेम्स के इतिहास में जेवलिन थ्रो में अब तक भारत को सिर्फ दो मेडल ही मिले हैं। नीरज से पहले 1982 में श्री गुरतेज सिंह ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। पटियाला में आयोजित इंडियन ग्रांड प्रिक्स में अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए 88.07 मीटर का थ्रो कर नया नेशनल रिकार्ड बना दिया।

ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर रच दिया इतिहास

Image /Neeraj Chopra at Tokyo Olympics/ Twitter

टोक्यो ओलंपिक में भारत को एक गोल्ड की दरकरार थी। भारत के इस सूखे को खत्म करने का काम श्री नीरज चोपड़ा ने किया। साल 2008 के बाद भारत की तरफ से व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज दूसरे भारतीय खिलाड़ी बन गए। इससे पहले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक 2008 में गोल्ड मेडल जीता था। नीरज अपने फाइनल मुकाबले में उन्होंने अपने प्रदर्शन को और बेहतर करते हुए 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंका था। जिसकी वजह से वो भारत की ओर से एकमात्र गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी बने और उन्होंने इतिहास रच दिया।

 

जीवन को सुखी कैसे बनाये.? How to make life happy.? Tips for happiness in daily life.

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मनुष्य का महत्वाकांक्षी होना एक स्वाभाविक गुण है । प्रत्येक व्यक्ति जीवन में कुछ न कुछ विशेष प्राप्त करना चाहता है । कुछ बड़े होकर डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं तो कुछ व्यापार में अपना नाम कमाना चाहते हैं ।

इसी प्रकार कुछ समाज सेवा करना चाहते हैं तो कुछ भक्ति के मार्ग पर चलकर ईश्वर को पाने की चेष्टा करते है । सभी व्यक्तियों की इच्छाएँ अलग-अलग होती हैं परंतु इनमें से बहुत कम लोग ही अपनी इच्छा को साकार रूप में देख पाते हैं । थोड़े से भाग्यशाली अपनी इच्छा को मूर्त रूप दे पाते हैं । ऐसे व्यक्तियों में सामान्यता दृढ़ इच्छा-शक्ति होती है और वे एक निश्चित लक्ष्य की ओर सदैव अग्रसर रहते हैं । हम ज़िंदगी को जितना कोशिश करेंगे उतना ही हमें वापस मिलेगा। आज हम जानेंगे कि हमें अपने ज़िंदगी को खुशहाल बनाने के लिए क्या करना होगा।

ज़िंदगी में लक्ष्य होना जरुरी।

मनुष्य के जीवन में एक निश्चित लक्ष्य का होना अनिवार्य है । लक्ष्यविहीन मनुष्य क्रिकेट के खेल में उस गेंदबाज की तरह होता है जो गेंद तो फेंकता है परंतु सामने विकेट नहीं होते । इसी भाँति हम परिकल्पना कर सकते हैं कि फुटबाल के खेल में जहाँ खिलाड़ी खेल रहे हों और वहाँ से गोल पोस्ट हटा दिया जाए तो ऐसी स्थिति में खिलाड़ी किस स्थिति में होंगे इस बात का अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है । अत: जीवन में एक निश्चित लक्ष्य एवं निश्चित दिशा का होना अति आवश्यक है ।

भूत भविष्य की बातों के बारे में ज्यादा न सोचना।

हम में से ज्यादातर लोग अपनी पुरानी गलतियों या बीती हुई बातों के बारे में सोच सोचकर परेशान होते रहते हैं। पुरानी बातों को याद कर करके रोते हैं। या बीते हुए समय को याद करके अफ़सोस करते रहते हैं कि हम ये नहीं कर पाये, हम वो नहीं कर पाये या हमारे साथ ऐसा क्यू हुआ या हमारे साथ वैसा क्यू नहीं हुआ और भी न जाने क्या क्या । उसी तरह हम भविष्य के बारे में बहुत ज्यादा सोच- सोच कर परेशान होते रहते हैं। और बहुत ज्यादा तनाव ले लेते हैं। इसलिए भूत भविष्य की चिंता छोड़कर अपने वर्तमान पर ध्यान दें। और जितना हो सके, वर्तमान में अच्छा सोचे, और अच्छा करें। हमेशा यह सोचें कि आपको जिंदगी में एक सफल इंसान बनना है।

आगे बढ़ने के लिए साहस होना जरूरी।

असल जिंदगी में मनुष्य का जीवन उतार चढ़ाव से भरा होता है। ऐसे में साहस का दामन थामे रहना बेहद जरूरी है। अगर आप साहस को अपना दोस्त नहीं बनाएंगे तो जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जीवन में कई सारे ऐसे मौके आते हैं जब आपका साहस ही आपको आगे की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। खास तौर पर आजकल का समय बहुत ज्यादा कॉम्पिटेटिव हो गया है। हर कोई एक दूसरे से आगे बढ़ना चाहता है। लोगों में इतनी ज्यादा प्रतिस्पर्धा की भावना है कि वो किसी भी हालत में किसी से पीछे नहीं रहना चाहते। अगर आज के युग में आप साहस का दामन थामकर आगे नहीं बढ़े तो बहुत पीछे रह जाएंगे। इसलिए हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि साहस मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत होती है।

अपने अंदर बदलाव की भावना।

सफल लोग हमेशा बदलाव को सहजता से लेते है। यदि आप बदलाव को सहजता से ले तो आपको सरल और सहज दोनों विशिस्ट गूढ़ बन जाता है यदि उसके साथ कोई सकरातमक बदलाव जुड़ जाता है। यदि आप ज़िंदगी के अनुसार बदलाव नहीं करेंगे तो सफल होने के बाद भी असफल हो जाएंगे। समय के साथ- साथ आपको अपने काम और पर्सनल लाइफ में बदलाव लाना जरुरी है।

चुनौती से घबराएं नही।

आपके द्वारा किया गया हर एक काम और आपके मिला हर एक मौका एक चुनौती की तरह होता है। ज़िंदगी में जो लोग इस बात को समझ कर अपना काम कर रहे है। उनके सफल होने का मौका दूसरे के मुकाबले कई गुना बढ़ जाता है। चुनौती मन और शरीर को मंजिल की दिशा में साधकर उसको वहाँ पर अपना ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है। जो लोग चुनौती का सामना करने से घबराते है। सफलता भी उनसे बहुत कोसो दूर रहती है। इसलिए ज़िंदगी में सफल होने के लिए कभी भी किसी भी चुनौती से घबराना नहीं चहिए।

अपने जीवन में लगातार कोशिश करतें रहे । क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती है।

 

Success story of Indian Hockey Team : Chak De! India,भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीता

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“चक दे इंडिया” Chak De! India.

हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी ( Hockey India’s national game ) पर आधारित वर्ष 2007 में यश चोपडा ( Yash Chopra) द्वारा बनायीं गयी यह फ़िल्म देख कर शायद ही कोई भारतीय ऐसा हो जिसमे राष्ट्र प्रेम की भावना प्रबल ना हुई हो | यह फिल्म हमे भारतीय हॉकी के कई सारे पहलू दिखाती है जैसे टीम मे अनुशासन का महत्त्व , सीनियर खिलाड़ियों का जूनियर खिलाड़ियों के साथ आपसी तालमेल, खिलाड़ियों मे देश और टीम के लिए कुछ कर दिखाने की भावना इत्यादि और इन्ही के चलते अंत में भारतीय हॉकी टीम जीत हासिल करती है |

Image/Tokyo2020Twitter

ऐसा ही कुछ इतिहास रचा है भारतीय पुरुष हॉकी टीम (Indian Men’s Hockey Team) ने  जिसने कल दिनांक 5 अगस्त,2021 तोक्यो (Tokyo Olympics) ओलंपिक में कांस्य पदक ( Bronze medal ) अपने नाम कर लिया है। भारतीय टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक में पदक हासिल किया है। ओलंपिक के इतिहास में भारतीय पुरुष हॉकी टीम का यह तीसरा कांस्य पदक ( Bronze medal) है। इससे पहले भारत ने 1968 और 1972 में ब्रॉन्ज़ मेडल (Bronze medal ) जीता था और इससे पहले भारत आठ स्वर्ण ( Gold medal) और एक रजत पदक ( Silver medal ) भी जीत चुका है।

41 वर्ष के इंतज़ार के बाद मिली इस ख़ुशी का कोई जवाब नहीं जिसने हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया है और टीम का हर खिलाडी मानो जैसे योद्धा की भांति गर्व से शान से खड़ा था, सभी के चेहरे पर ख़ुशी साफ साफ देखी जा सकती थी और उनके जोश के पीछे 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों की ख़ुशी और उत्साह भी भरपूर था

 भारतीय फील्ड हॉकी में आखिरी बार हमने सन 1980 मोस्को ओलम्पिक (Moscow Olympics) में मैडल जीता था ! तब से लेके तोक्यो (Tokyo) तक के सफर में भारतीय हॉकी टीम को कई नाकामियों का सामना करना पड़ा हैं। बीजिंग ओलिंपिक ( Beijing Olympics ) में लिए तो हम भारतीय क्वालिफाई तक नहीं कर सके थे। इतिहास हमारे पक्ष में नहीं था, मगर भारतीय हॉकी टीम के खिलाडी जोश से लबरेज थे। 

समय खत् होते ही जीत हासिल करते ही भारतीय  जहां जश् में डूब गए , वहीं जर्मनी के खिलाड़ी मायूस होकर वहीं बैठ गए। जर्मनी (Germany) ने काफी कड़ी टक्कर दी मगर भारतीय टीम उसपर भारी पड़ी। भारत ने 5-4 से मुकाबला जीता है| खेल के आखिरी चरण में जिस तरह गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने जर्मन के हर हमले को कुंद कर दिया, वह फैन्‍स के जेहन में लंबे समय तक जीवंत रहेगा। जीत के बाद  श्रीजेश (Sreejesh) बहुत ही उत्साहित दिखे |

श्रीजेश ( Sreejesh) ने कई पेनाल्‍टी कॉर्नर्स बचाए। उनका जोशीला अंदाज खेल में खूब दिखायी दिया और आखिर में तो जर्मनी बिना गोलकीपर के खेल रही थी मगर वह भारतीय डिफेंस को तोड़ नहीं सकी। सेमीफाइनल ( Semi final )में वर्ल्‍ड चैम्पियन ( World Champion) बेल्जियम को शुरुआती तीन क्वार्टर में कड़ी चुनौती देने के बावजूद टीम 2-5 से हार गई। हालांकि उस हार से मिले सबक ने जर्मनी के खिलाफ टीम को मजबूती दी।

जर्मनी (Germany )ने बेहद तेज शुरुआत की लेकिन पूरी मैच में बरकरार नहीं रख सकी। पहले क्वार्टर में उसका दबदबा था तो भारतीय टीम ने बाकी तीन क्वार्टर बाजी मारी।जैसे  ही जर्मनी चूका, भारतीय खिलाड़ियों ने बड़ी होशियारी के साथ मौके का फायदा उठाया | भारतीय टीम 1980 मास्को ओलिंपिक ( Moscow Olympics) में अपने आठ गोल्‍ड मेडल्‍स ( Gold medals) में आखिरी मेडल जीतने के 41 साल बाद कोई ओलिंपिक मेडल जीती है।

वैसे तो पूरी टीम ने धमाकेदार खेल का प्रदर्शन किया लेकिन श्रीजेश (Sreejesh ) अलग ही जोश में थे। जीत के बाद वह अपने किले यानी गोलपोस् पर चढ़कर बैठ गए।

भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team ) ने ओलिंपिक (Olympics) में अपने प्रदर्शन ने ना सिर्फ ब्रॉन् मेडल (Bronze medal) जीता है, बल्कि हर भारतीय का दिल भी जीत लिया है

तोक्यो ओलिंपिक ( Tokyo Olympics) में यह भारत का चौथा मेडल है। इससे पहले वेटलिफ्टिंग (Weightlifting ) में मीराबाई चानू ( Mirabai Chanu) ने सिल्वर (Silver medal), बैडमिंटन (Badminton) में पीवी सिंधू ( PV Sindhu )और मुक्केबाजी में लवलीना बोरगोहेन ( Lovlina Borgohain, Indian Boxer) ने ब्रॉन् मेडल ( Bronze medal) जीता है।

 

 

Inspirational Story : लुधियाना की रहने वाली 42 वर्षीया रूह चौधरी,पिछले कई सालों से अपनी कमाई से कर रही है जानवरों की सेवा !

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वैसे तो इंसान का जानवर से प्यार करना कोई नई बात नहीं है। युगों से इंसान पशुओं से प्यार करता रहा है । दुनिया में कई सारे लोग हैं, जो जानवरों से बेहद प्यार करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी है जो जानवरों से ऐसे प्यार करते है जैसे उनके परिवार का ही सदस्य हो । कहते हैं प्यार-मोहब्बत, लगाव जैसी भावनाएं सिर्फ इंसानों में होती है, जानवर इमोशनलेस होते हैं। पर ऐसा नहीं है, जानवरों में भी भावनाएं होती हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताएंगे जिन्हें जानवरों से बेहद प्यार है। वह रोज जानवरों को खाना खिलाती है । बीते लॉकडाउन में भी उन्होंने जानवरों के प्रति अपने प्रेम को दिखाया है। आइये जानते है उनके बारे में।

रूह चौधरी का परिचय । 

Image/ Better India / रूह चौधरी

रूह चौधरी लुधियाना की रहने वाली है। वह 42 वर्ष की है।रूह को जानवरों से बहुत लगाव है। वह रोज लगभग 75 बेजुबान जानवरों को खाना खिलाती है । यह काम रूह काफी दिनों से करती आ रही है ।बीते लॉकडाउन में जब लोग घर में अपना समय बीता रहे थे तब रूह जानवरों के लिए खाने का प्रबंध करती थी। वह लॉकडाउन में प्रतिदिन 500 बेसहारा कुत्तों को खाना खिलाया करती थी।

बचपन से जानवरों से लगाव।

रूह को अपने बचपन से जानवरों से लगाव है। वह अपने पापा से जानवरों की देखभाल करना सीखी हैं। रूह को बचपन में कोई भी जानवर घायल दिखता था तो वह तुरंत उसे सही इलाज दिलाना और हर रोज उसे खाना खिलाती थी। वह बेजुबानों का दर्द बचपन से समझती आई है। उनका कहना है कि इन बेजुबानों का दर्द इंसान नही समझेंगे तो कौन समझेगा। ये जानवर भी हमारे पृथ्वी के अभिन्न अंग है। इनकी देखभाल करना इंसानों का कर्तव्य है। जानवरों से ही पृथ्वी का संतुलन कायम है। इस धरती पर इन्हें भी रहने का अधिकार है।

अपनी कमाई से करती है जानवरों की सेवा।

Image/ Better India/ हर रोज खिलाते हैं बेसहारा जानवरों को खाना

रूह चौधरी रोजाना जानवरों को खाना देती है । यह काम वह अपने बेटे के साथ मिलकर करती हैं । सुबह-शाम दोनों वक्त वह घूम-घूम कर सेवा देती है। रूह काफी समय से बेकिंग कर रही थी और साथ ही, खाना बनाने का भी उन्हें शौक था । उन्होंने तय किया कि वह घर से ही एक छोटी-सी पहल करें और उन्होंने वीकेंड पर बतौर ‘होम शेफ’ काम करना शुरू किया। वह “बेकिंग के कुछ ऑर्डर मैं पहले भी लेती थी। लेकिन यह नियमित नहीं था । लेकिन पिछले साल लॉकडाउन से उन्होंने नियमित वीकेंड पर खाने के ऑर्डर लेना शुरू किया। उनके इन ऑर्डर से जो भी पैसे आते हैं, वह उनसे इन बेसहारा जानवरों के खाने और इलाज आदि की व्यवस्था करती हैं। वह जितना कमाती है वह जानवरों की सेवा में लगाती हैं।

पर्यावरण के लिए भी सोचती है रूह।

Image/ Better India/ पर्यावरण के लिए भी सोचती है रूह।

रूह चौधरी को जितना जानवरों से प्यार है उतना ही वह पर्यावरण के लिए भी सोचती हैं। उनके घर से किसी भी तरह का कचरा बाहर नही फेंका जाता है । वह अपने घर पर ही कचरे से जैविक खाद तैयार करती हैं । वह अपने रसोई के कचरे से जैविक खाद बनाती हैं, जिनका उपयोग वह अपने बेटे के साथ बागबानी करने में करती हैं। वह प्लास्टिक की कोई भी सामग्री नहीं खरीदती हैं और सभी तरह की खरीदारी के लिए कपडे का बैग लेकर जाती हैं। वह हमेशा यह सोचती है कि उनके कारण पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नही हो।

Image / Better India/मिट्टी के बर्तनों में पैक करती हैं खाना

उनकी सभी डिशेज भी उनके ग्राहकों तक पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से पैक होकर पहुंचाई जाती हैं। अपनी डिशेज को पैक करने के लिए वह मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करती हैं।

रूह चौधरी के जानवरों और पर्यावरण के प्रति इतना समर्पण सचमुच अद्भुत है। रूह आज सभी लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत है। हमें भी जानवरों और पर्यावरण से प्यार करना चाहिए। हमारा आने वाले भविष्य के लिए यह दोनों बहुत ही जरूरी है। पृथ्वी को संतुलित रखने में भी यह जरूरी है। हमें अपने जीवन में इन सभी पहलुओं को अपनाकर अपने अंदर बदलाव लाने की जरूरत है।

 

अगर आप रूह चौधरी से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।

 

मानसिक अशांति को कैसे दूर करें और अपने मन को कैसे शांत करें ? How to remove mental disturbance and how to calm your mind?

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मनुष्य अपनी सारी आदतों को सुधार सकता है, समस्त गतिविधियों को शांत कर सकता है। लेकिन मन की चंचलता और उथल-पुथल को काबू करना आसान काम नहीं होता है। मनुष्य की चित्त वृत्ति चेतना का संचालन स्वयं मनुष्य नहीं करता है, ऐसा मानना गलत होगा। क्योंकि पुराने समय में ऋषि मुनियों में मन को एकाग्र करने की शक्तियां मौजूद होती थीं। इन शक्तियों को प्राप्त करने के लिए कोई विशेष साधन की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि कुछ ऐसे कार्य करने होते हैं, जिससे आप अपने मन को स्थिर करने के लायक बन जाते हैं।

कभी-कभार मनुष्य अपने मन की चपलता को अच्छा भी मानता है वहीं कुछ व्यक्ति मन की दौड़ भाग से परेशान हो जाते हैं। ऐसे लोग यह उपाय खोजते हैं कि मन को शांत करने के लिए क्या किया जा सकता है?आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे अपने मन को शांत किया जा सकता है।

योग करके मन को शांति।

अपने मन को शांत करने का सबसे अच्छा उपाय है कि योगा किया जाए। योगा करने से दिमाग और मन दोनों ही शांत होते है। योगा का मुख्य फायदा होता है मन को शांत करना है। योगा की मदद से काफी कम समय में मन को शांत किया जा सकता है। योगा के कुछ ऐसे प्रकार भी होते है जिनकी मदद से बहुत समय के लिए दिमाग को शांत किया जा सकता है।

अकेले रहना पसंद करें।

अकेले रहने से मन काफी हद तक शांत रहता है। अकेले रहने से हमारे पास किसी भी प्रकार का कोई चिंता नहीं होती है। अकेले रहने से बस हम ही अपने पास रहते है। हम देखते है कि कब हमारा मन शांत रहता है और कब हमारे मन में बेचैन रहता है। इसके साथ ही बहुत कुछ हम खुद के बारे में जान सकते है। जब हमारे पास हमारे बारे में इतना ज्ञान रहेंगे तब हम अपने मन को कभी भी शांत कर सकते है।

अच्छी बातें को सुनने की कोशिश करें ।

कभी ऐसा भी होता है कि किसी बात या घटना के कारण भी मन बैचैन हो जाता है। ऐसे में मन को शांत करने के लिए अच्छी और प्रेरित करने वाली विचार और बातें सुनना चाहिए। यह मन को काफी आसानी के साथ कम से में शांत कर देंगे।

पुरानी बातों को याद ना करें ।

बीते हुआ कल कभी नहीं आता है। लेकिन बीते हुए कल को याद करने से मन बेचैन जरूर होता है और फिर मन को शांत और दिमाग को शांत करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में अगर किसी के बीते हुए कल में कुछ भी बुरा या अच्छा हुआ है तो उसे याद नहीं करना चाहिए। जब भी बीते कल को याद किया जाता है तब-तब मन शांत से बेचैन हो जाता है।

अपनी नींद को पूरा करें ।

पूरा नींद ना लेना भी मन और दिमाग का शांत न रहने का कारण बन सकता है। नींद एक बहुत जरूरी हिस्सा होता है शरीर के लिए। लेकिन जब नींद पूरा नहीं होता है तब बहुत से मुश्किल का कारण भी बनता है। अगर सही तरीके से और पूरा नींद ना लिया जाए तो मन बेचैन हो सकता है।

बाहर घूमने जाएं ।

एक स्थान पर लम्बे समय तक रहने से मन में बेचैनी होने बढ़ जाती है। एक स्थान पर रहने पर मन भी नहीं लगता है। मन में तरह-तरह की बेचैनी होने लगती है। अपने मन को शांत करने के लिए समय-समय पर बाहर का घूमते रहना चाहिए। घूमने से हम सभी चिंता को कम कर देते है। हम यह भूल जाते है कि हमें किसी भी प्रकार का चिंता या काम है।

नकारात्मक चीजों से बचें ।

अक्सर जब भी हम किसी नकारात्मक चीज या व्यक्ति से मिलते हैं तो हमारा ब्लड-प्रेशर हाई हो जाता है और हम डिप्रेस्ड फील करते हैं। हम बेचैन हो जाते हैं। यह स्थिति हमारी सेहत पर सीधा असर डालती है। ऐसे में अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो अपने आसपास से निगेटिव चीजों और व्यक्तियों को दूर रखें। ऐसा करने से आप खुश रहेंगे और स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। मन को भी शांति मिलेगी।

ईश्वर का ध्यान करें ।

अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा समय ईश्वर की पूजा-पाठ के लिए भी निकालें। कहते हैं कि जो सुख और शांति पूजा-पाठ करने से मिलती है, वह किसी और चीज से नहीं मिलती। पूजा-पाठ करने से आपका मन भी शांत रहेगा और आपको आत्मिक शांति भी मिलेगी ।

दोस्तों या परिवार से बात करें ।

अवसाद या तनाव के समय की इस कठिन परिस्थति के समय आप अपने परिवार के बीच में जाये अच्छे दोस्तों के साथ रहे जो आपके तनाव को कम कर रास्ते बनाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह करते है। आपकी हर समस्याओं में आपकी मदद करते है। इससे बेचैनी कम होगी। मन शांत भी रेहगा।

आशा है आप इन बातों को पढ़कर मानसिक अशांति को दूर कर पाएंगे।

 

रिश्तों में मिठास कैसे लाये – रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं ? How to make relationships stronger.?

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किसी ने सच ही कहा है कि “एक अच्छा रिश्ता हमेशा हवा की तरह होना चाहिए, खामोश लेकिन आस-पास”। दुनिया में सभी लोग परफेक्ट नहीं होते और हर रिश्ता परफेक्ट नहीं हो सकता। किसी भी रिश्तों को शर्तों के आधार पर कायम नहीं कर सकते। अधिकांश रिश्ते आज इसलिए टूटते हैं क्योंकि हम उनसे ज़रूरत से ज्यादा अपेक्षा रखते हैं, उम्मीद रखते हैं।

रिश्तों की शुरुआत में ही ढेरों उम्मीदों का पहाड़ खड़ा कर लेना कोई समझदारी नहीं होती हैं। समय धीरे-धीरे रिश्तों को सींचता है, खूबसूरती के साथ हर रिश्तों को। यूँ कह सकते है कि रिश्तों में जो प्यार, भरोसा, आपसी सम्मान, और प्रगाढ़ता आती है। उसके लिए वक्त के साथ आपसी तालमेल और सूझ-बुझ की ज़रूरत होती है। आज हम आपको बताएंगे कि रिश्तों में मिठास कैसे लाया जा सकता है।

हम एक- दूसरे का सम्मान करें।

कोई रिश्ता मज़बूत तब बनता है, जब दोनों व्यक्ति एक-दूसरे का सम्मान करे। एक दूसरे की पृष्टभूमि का सम्मान करे। और ऐसा तब संभव होता है जब हम एक-दूसरे की भावनाओं का क़द्र करते हैं। यहां बातों को रखने में झिझक न हो। एक-दूसरे के सामने हम खुलकर कोई भी पसंद-नापसंद वाली बात रख सके। और यहाँ डरने के बजाये साथ बैठ कर विचार कर सके। ये तभी संभव है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भरोसा करते हो। अक्सर हम रिश्तें निभाते वक्त अपनी बुद्धिजीवी सोच को दूसरों पर हावी कर देते हैं। जिससे फिर धीरे-धीरे आपसी सम्मान खोने लगता है। ऐसा नहीं होना चाहिए क्योकि हर किसी को अपना आत्मसम्मान और स्वाभिमान प्यारा होता है।

एक-दूसरे को वक्त दें।

रिश्तों के लिए वक्त दवा बन गया है। वक्त के अभाव में रिश्ते दम तोड़ रहे हैं। किसी भी रिलेशन के लिए एक-दूसरे को समय देना बेहद ज़रूरी है। उदाहरण के तौर पर, एक नन्हें पौधे को बड़ा पेड़ बनाने के लिए एक माली को भी पौधे को वक्त देना पड़ता है। ठीक उसी तरह आपको भी हर रिश्तों में माली की भूमिका निभाना पड़ेगा। समय निकाल कर उसे देखना, अपने प्यार से बातें करना।

रिश्तों में ईमानदारी होनी चाहिए।

वो कहा गया है ना कि रिश्तों में ईमानदारी भरोसा पैदा करती है। इस दुनिया में सबसे महंगी चीज, अगर कुछ है तो वो है ईमानदारी। आप ईमानदार रहेंगे तभी जाकर सामने से वफ़ा की बात कर सकते हैं। चाहे रिश्ता कैसा भी हो, ईमानदारी दोनों तरफ से जरुरी है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक तरफ से ईमानदार हो। दोनों तरफ से और दोनों व्यक्ति को ईमानदार होना जरुरी होता है।

विश्वास की डोर होना जरूरी।

किसी भी रिलेशन को मज़बूत बनाने के लिए सबसे अहम विश्वास होता है। आप सामने वाले विश्वास करना सीखे, चाहे रिश्ते में आप जिस
के साथ भी हो। मज़बूत रिश्ते की नींव तभी मजबूत होती है। प्यार है तो शक कैसा? और नहीं है तो फिर हक़ कैसा? बात-बात में शक करना सही नहीं है। कभी-कभी जो हम सामने वाले को लेकर सोच रहे होते हैं। वो सही नहीं होता। सामने वाले की बातों को सुनना और समझनी चाहिए कि उससे आपका रिश्ता कैसा है। कोई तीसरा आदमी आपके कान भरे तो उनपर इतनी जल्दी विश्वास मत करिये, क्योंकि आप अपने चाहने वाले को बेहतर तरीके से जानते हैं।

पुरानी बातों को भूलना,पैसों को बीच में न लाना।

आप इंसान हैं और इंसान का स्वाभाव में है गलती करना। कभी-कभी करीबी लोगो से भी गलती हो सकती है। किसी बातों को पकड़ कर न रखे। उसे माफ़ करे और रिश्तों में आगे बढ़ें। रिश्तों को पैसों से न तोलें, उसे अहमियत दें। कई बार ऐसा होता है, हम रिश्तों को अहमियत न देकर उन्हें पैसों से तौलने लग जाते हैं। कोई भी रिश्ता ज़िंदगी का अहम हिस्सा तब बनता है, जहाँ आपकी दी हुई चीजों को धन-दौलत से तौला न जाए।

इन चीजों को अपनाकर आप अपने रिश्तों में मिठास ला सकते हैं।

 

कर्म किसे कहते हैं .? कर्मों का सिद्धांत एवं उसके प्रकार ! – What is Karma.? Doctrine of Karma and Types of Karma.

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किसी भी काम के करने को  कर्म करना कहते है और कर्म मन वाणी या शरीर से किया जाता है | कर्म अच्छे या बुरे दोनों प्रकार के हो सकते है |

अच्छे या बुरे सभी तरह के कर्मो का भुगतान करना ही होता है | इसलिए कोशिश तो यही होनी चाहिये कि कर्म इकट्ठे ही ना हो पाए परन्तु ऐसा कदापि सम्भव ही नहीं है क्योंकी मन से किसी का अच्छा या बुरा सोचने पर भी या वाणी से किसी को बुरा या भला कहे जाने पर भी कर्म का निर्माण होता है ऐसा जरुरी नहीं कि शरीर के माध्यम से किसी का कुछ अच्छा या बुरा करने पर वो कर्म माना जाये !

इस प्रकार ये सभी क्रियाये ही कर्मो की श्रेणी में आते है |

हिन्दू धर्म के अनुसार कर्म तीन प्रकार के होते है – प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म और क्रियामान कर्म !  

 प्रारब्ध कर्महमारे ही द्वारा पिछले जन्मो में किये गए पाप पुण्य के कर्मो में से वे कर्म जिनका भुगतान या फल हमें इसी जन्म में भोगना है, वे प्रारब्ध कर्म है |

संचित कर्महमारे सभी पिछले अनंत जन्मो के पाप पुण्य के कर्म जो काफी भारी मात्रा में एकत्रित है, वे संचित कर्म है |

क्रियामान कर्म – वर्तमान में किये जा रहे सभी पाप पुण्य के कर्मो को क्रियामान कर्म कहते है |

इस प्रकार मनुष्य की पहचान कर्मों से होती है। उत्कृष्ट कर्मों से वह श्रेष्ठ बनता है, निकृष्ट कर्मों से पतित बनता है कर्मानुसार फल भोगने का सिद्धांत अकाट्य है। भारतीय हिन्दू संस्कृति कर्म फल में विश्वास करती है। मनुष्य जो कुछ प्राप्त करता है, वह उसके कर्म का ही फल है।

जिस तरह आजकल सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे होते हैं और हमारी हर गतिविधि उसमें कैद हो जाती है, उसी तरह हमारा हर एक कर्म भी एक सजीव कैमरे में सुरक्षित है। मानव निर्मित सी.सी.टी.वी. तो कभी खराब या बंद भी हो सकता है लेकिन इस सजीव कैमरे से बचने का कोई तरीका नहीं है। कई बार ऐसा होता है कि बुरे कर्म करते रहने पर भी किसी व्यक्ति को उसके बुरे कर्मों की सजा नहीं मिलती और हम मान लेते हैं कि भगवान ने अन्याय किया है  जबकि वह व्यक्ति या तो अपने पूर्व जन्म के कर्मों का सुख भोग रहा होता है या उनके गुनाहों का घड़ा भरने में अभी कुछ समय होता है। भगवान हर व्यक्ति को उसके अवचेतन मन में कैद कर्मों के अनुसार परिणाम अवश्य देता है!

कर्म की महत्ता अद्वितीय है हमारा अधिकार केवल कार्य करने पर है , फल प्राप्ति पर नहीं

गीता मे भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है –

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

हम कर्म करें , परन्तु फल की इच्छा करें यहां पर फल की इच्छा करने का अर्थ है कि हम पहले से इस बारे मे चिंतित हों परिश्रम का फल मीठा होता है जब हम कार्य करेंगे तो फल अवश्य ही मिलेगा इस तरह से हमारे जीवन में कर्म का बहुत बड़ा महत्व है कोई भी हो या कहीं भी हों , अपना कार्य मन लगा कर मेहनत से करें , सफलता अवश्य मिलेगी |

जीवन की सफलता के लिये कर्म करना अति आवश्यक है, भाग्य तो केवल उसमें मदद करता है  कर्म के दो रूप माने जा सकते हैं। इस प्रकार भाग्य से कर्म को नहीं जीता जा सकता है लेकिन कर्म से भाग्य को जीता जा सकता है|सफलता ,असफलता कर्म पर ही निर्धारित है| |परिश्रम से किये गए हर कार्य में सफलता अवश्य मिलती है जो भाग्य को भी बदल देती है | भाग्य में जितना लिखा है उतना ही मिलेगा यह सोचकर हाँथ पर हाँथ धरे बैठने से भाग्य भी रूठ जाता है|

जिस प्रकार भाग्य से पुश्तैनी सम्पत्ति मिल जाती है किंतु उसे सँभाल कर रखने के लिये मेहनत करना पड़ता है |नहीं तो राजा से रंक बनने में देर नहीं लगती

पूरा जीवन इसी ढर्रे पर कटता है। मरते समय भी ऐसे ही विचार सूक्ष्म शरीर के साथ चले जाते हैं। यहाँ यह भी समझना उचित होगा कि मृत्यु के उपरांत केवल हाड़मांस का शरीर ही भस्मीभूत होता है उसमें से मन और आत्मा अपने संस्कारों को साथ लेकर पहले ही विदा हो चुके होते हैं। जब पुनर्जन्म होता है तो पिछले संस्कार साथ होते हैं। कर्म का फल मनुष्य को भोगना ही पड़ता है। कहा गया है– ‘ जो जस किया सो तस फल चाखा।

जीवन की सफलता मुख्यत: कर्म से ही मिलती है ।हाँ कभीकभी हमारे कर्म में कोई कमी या अड़चन जाने से विलंब अवश्य हो जाता है ।साथ ही यदि हम भाग्य की बात करें तो वह भाग्य नहीं बल्कि हमारी कड़ी मेहनत का ही परिणाम होता है जो यदि तुरंत मिल जाता है तो उसे भाग्य से मिला मान लेते हैं।

उदाहरण :दो व्यक्ति एक ही काम को कभी भी एक समान नहीं कर सकते।कार्य में नवीनता लाना, कुछ हुनर दिखाना, आकर्षक बनाना आदि कहीं कहीं अंतर पैदा कर देते हैं और सफलता भी दोनों को उसी के आधार पर मिलती है ।हमारे द्वारा किए कार्य ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं ।कभीकभी परिस्थितियाँ, साधनों की कमी, अनुभव और परिश्रम हमारे कार्य की सफलता या असफलता का कारण बन जाते हैं।यदि किसी को संपत्ति वंशानुगत मिल भी जाती है तो उसे आगे बढ़ाने के लिए निरंतर कर्म करना ही पड़ता है ।एक कहावत हैबाबा पेड़ लगाए और पोता फल खाए।लेकिन पोता यदि उस पेड़ को नहीं सींचेगा, खाद ना डाले तो वह पेड़ भी सूख जाएगा। भोजन करने के लिए भी  मनुष्य को हाथ मुँह तक ले जाना ही पड़ता है इसलिए जीवन की सफलता कर्म ही है

सुप्तस्य सिंहस्य मुखे नहिं प्रविशन्ति मृगा: ।

सोते हुए शेर के मुख में अपने आप मृग (हिरन) प्रवेश नही करते हैं अर्थात जंगल के राजा के पास आकर कोई भी जानवर नहीं कहता है कि महाराज जागो मैं गया हूं , मुझे खा लो जंगल का राजा होते हुए भी शेर को अपनी भूख मिटाने के लिए श्रम या काम करना पड़ता है जब जानवरों को भी कर्म करने की आवश्यकता है , तो हम तो मनुष्य हैं , हम कर्म से क्यों मुख मोड़ें हम में सोचने समझने की शक्ति है अत: हमें कर्म की महत्ता को जानना चाहिए

 

परिवर्तन ही जीवन है ! – Change is Life – Why change is important for personal development.?

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परिवर्तन का अर्थ है किसी भी भौतिक या अभौतिक वस्तु मे समय के साथ साथ भिन्नता उत्पन्न होना। भिन्नता वस्तु के बाहरी रूप मे या उसके आन्तरिक संगठन, बनावट या गुण में हो सकती है । परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है। 

परिवर्तन ही जीवन है और जीवन में परिवर्तन लाना बहुत आवश्यक है यदि आप परिवर्तन का विरोध कर रहे है तो आप जीवन का विरोध कर रहे है, परिवर्तन के अतिरिक्त कुछ भी स्थायी नहीं है

परिवर्तन आपके सुविधा क्षेत्र के अंत में शुरू होता है। कोई भी परिवर्तन अपने आप में कभी तकलीफ नहीं देता परिवर्तन का विरोध ही कष्ट देता है और किसी भी तरह का विकास परिवर्तन के बिना विकास सम्भव ही नहीं है | 

यदि हम बदलते नहीं हैं, तो हम आगे नहीं बढ़ते हैं। यदि हम आगे नहीं बढ़ते हैं, तो हम वास्तव में जीवित नहीं हैं। स्थिर पानी जिसमे बहाव नहीं होता है, वह दूषित होता जाता है, इसी प्रकार अगर हमारे जीवन में भी बहाव या बदलाव ना हो, तो वह भी नीरस होने लगता है |

इंसान को सकारात्मक परिवर्तन लाने में विलम्ब नहीं करना चाहिए  रंग रूप और सोच में समय के साथ बदलाव जरुरी है, पर अपनी जड़ से जुड़े रहना भी जरुरी है|

जब भी किसी चीज या किसी प्रभाव की जब अति होने लगे तो वहां परिवर्तन आवश्यक हो जाता है अन्यथा लम्बे समय तक कुछ बदलाव ना होने पर हम ऊब जाते है, तन और मन से थक जाते है और उस समय थोड़ा भी परिवर्तन आने पर तरो ताज़ा हो जाते है, एक नई ऊर्जा उत्पन्न होती है और हम उत्साह के साथ वापिस  काम में लग जाते है यदि कोई अपने रोजमर्रा के कामो से ऊब जाये तो अपनी दिनचर्या में थोड़ा सा बदलाव या थोड़ा सा विराम ले कर हम दोगुने उत्साह के साथ वापिस जुट जाते है 

परिवर्तन का उद्देश्य होता है बेहतर को प्राप्त करना | अगर आप जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं और कुछ बेहतरीन करना चाहते हैं तो आपको ख़ुद को भी बदलना होगा| उस लक्ष्य को पाने के लिए उसी के अनुसार श्रम भी करना होगा | हर परिवर्तन की शुरूआत थोड़े तकलीफ और असुविधाओ के साथ हो सकती है | अगर हम बदलते नहीं हैं तो हम आगे नही बढ़ सकते और जीवन में त रक्की नहीं कर पाते | जीवन में कुछ भी सीखने और आगे बढ़ने के लिए परिवर्तन ही सबसे सफल माध्यम माना गया है।

परिवर्तन से आप सफलता के शिखर तक पहुँच सकते हैं। एक ही चीज पर अड़े रहने और नई चीजों को ना सीखने से आगे बढना असंभव है।

प्रकृति में भी ये परिवर्तन ही तो है जो प्रकृति को नया रंग, नया रूप प्रदान करता है। पतझड़ में पेड़ से पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत ऋतु में पेड़ो में नाये पत्ते आकर उसे हरा-भरा बना देते हैं। परिवर्तन ही एकमात्र उपाय है जो हमारे जीवन को रंगीन बना देता है परिवर्तन जीवन का अभिन्न अंग है इसीलिए इसका स्वागत करना चाहिए।

परिवर्तन का अंतराल थोड़ा कठिनाई भरा भले ही होता है लेकिन हम परिवर्तन से डरे तो उन्नति भी बिना परिवर्तन संभव नहीं है | पूरी सृष्टि भी अपने आप में हो रहे निरंतर परिवर्तन के कारण ही इतनी खूबसूरती से चल रही है  रोज सुबह से शाम और फिर शाम से रात और फिर से सुबह और यदि ये परिवर्तन ना हो, तो सृष्टि सही से नहीं चलेगी |

ऐसा भी देखा गया है कि हम में से कई लोग खुद को ना बदल कर, सामने वाले को बदलने की कोशिश करते है और ऐसा ना होने पर परेशान होते है, दुखी हो जाते है और इसके स्थान पर यदि हम ऐसा सोच ले कि जो परिवर्तन करना है हमें स्वयं में करना है तो ये परेशानी आएगी ही नहीं | रोज धीरे धीरे अगर हम अपने अंदर एक छोटा सा सकारात्मक परिवर्तन लाते है तो हम पाएंगे कि कुछ समय बाद हम काफी बदल चुके होंगे |

 

 

क्या कर्म भाग्य को बदल सकता है – इंसान किस्मत को कैसे बस में कर सकता है ? How to control Luck or Fate..?

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कभी कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती है कि हम सवालों के बीच उलझ जाते हैं। हमारी योजना कुछ और होती है। पर हमारी ज़िन्दगी कुछ और हो जाती है। हम सोचते कुछ और है। पर कुछ और हो जाता है। कोई किसी चीज पर विश्वास कर रहा होता हैं पर उसे वहां धोखा मिल जाता है। इन परिस्थितियों में यह सवाल खड़ा होता है की कर्म बड़ा है या भाग्य ?

कर्म ही भाग्य का निर्माता है ।

बचपन से लेकर आज तक हम यह जान पाए हैं कि जो कुछ भी होता है ईश्वर की मर्जी से होता है। फिर मन मे सवाल आता है कि ईश्वर ऐसा क्यों करेगा। अगर हम ईश्वर की मर्जी की दुनिया की कल्पना करें तो कोई बीमार नहीं होगा, कोई और असमय मौत की जद में नहीं जाएगा, बच्चे विकलांग नहीं पैदा होंगे, निर्दयता नहीं होंगी, ऐसे से तमाम समस्याओं से दुनिया परे होगी।
बहुत से लोगों का मानना है की कर्म ही भाग्य निर्माता है। और शायद यही सच है। जीवन में कभी-कभी होने वाले अप्रत्याशित घटनाओं से हमें कर्म की महानता को अनदेखा नहीं करनी चाहिए। कर्म हीन व्यक्तियों को भाग्य का सहारा कभी कभी मिलता है लेकिन कर्म श्रेष्ठ व्यक्ति भाग्य से हर जगह लाभान्वित होते हैं।

कर्म एक यात्रा के समान।

कर्म एक यात्रा है और भाग्य उसका गंतब्य। कर्म आरम्भ है और भाग्य अंत है। भाग्य अर्थात आपके कर्मो का दर्पण। आपके द्वारा किया गया अच्छा कर्म आपका सौभाग्य बनाता है। जिससे आपको सुख, शांति, धैर्य , साहस ,पुरुषार्थ, परमार्थ , कृति और मान सम्मान मिलता है। ठीक इसके विपरीत बुरे कर्म दुर्भाग्य बनाता है इससे आपको दुख, अशांति, अधैर्य, भय ,अनुद्यमी, स्वार्थी, अपकृति और अपमान मिलता है। कर्म करते हुए हम अपने आने वाले कल को बना या बिगाड़ सकते हैं । अच्छे या बुरे कर्मों से ही हमारे अच्छे या बुरे भाग्य का निर्धारण होता है ।

कर्म का मूल्य अधिक।

मनुष्य जैसा चाहे वैसा कर्म कर सकता है, पर कर्मानुसार फल देना परमात्मा का काम है। प्रत्येक कर्म का फल मिलता है। यदि इस जन्म में फल प्राप्त नहीं हो सका तो आगे के जन्मों में वही भाग्य के रूप में सामने आता है। मतलब यह कि भाग्य भी हमारा ही बचा हुआ कर्म है। कर्म से ही भाग्य बनता है और भाग्य को हम न देखते हैं और न जानते हैं। इसलिये मनुष्य जीवन में कर्म मूल्यवान है। मनुष्य को सदैव अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। अंततः मनुष्य के कर्म पर ही उसका भाग्य निर्भर करता है।

हमें कर्म करते रहना चाहिए।

मेहनती पुरुष के पास ही सदैव लक्ष्मी जाती है । सब कुछ भाग्य पर निर्भर है ऐसा कायर पुरूष सोचते हैं । इसलिए भाग्य को छोड़ कर हमें कर्म करते रहना चाहिए । यथाशक्ति प्रयास करने के बावजूद भी यदि सफलता नहीं मिली तो इसमें कोई दोष नहीं है । कर्म करें सफलता अवश्य मिलेगी।