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(Brahmacharya) ब्रह्मचर्य – आत्म-संयम और आध्यात्मिक विकास के रहस्यों का द्वार

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Brahmacharya– मानव शरीर पांच तत्व आकाश,जल,वायु,अग्नि और मिटटी से मिल कर बना है इसी प्रकार मानव शरीर में पांच ज्ञानेद्रिया नाक,कान,आँख,जीव और त्वचा है, इन इन्द्रियों को बस में रखना बहुत जरुरी है लेकिन आज के समय में मानव शरीर पर इन इन्द्रियों का दुषप्रभाव है, जिसकी बजह से व्यक्ति बहुत परेशान,चिंतित और मानसिक रोग से ग्रस्त है, हमारे सनातन धर्म में पांच इन्द्रियों पर काबू करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना बताया गया है l

Brahmacharya- ब्रह्मचर्य क्या है ?

ब्रह्मचर्य का अर्थ है अपनी इन्द्रियों को बस में रखना, ब्रह्मचर्य संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है “ब्रह्मा के चरणों में चलना” या “ब्रह्म की यात्रा करना”. यह एक पुरानी भारतीय आध्यात्मिक पद्धति है जिसका मुख्य उद्देश्य है इंद्रियों को नियंत्रित करके ब्रह्मा या आत्मा की अनुभवयात्रा करना। यह एक व्यक्ति के जीवन में आत्मविश्वास, धार्मिकता और आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ावा देने का एक मार्ग है।

लोगो को बताया ही नहीं जाता की ब्रह्मचर्य क्या है ? और इससे मानव जीवन का कितना और किस प्रकार विकास हो सकता है l केवल इसी अज्ञानता के कारण बड़े बड़े शिक्षित नवयुवक आज अशिक्षा के अंधकार में पड़े हुए है l कमोतोजक और विलासी वस्तुओ के दास बनकर वे अपने शारीरिक शक्तियों का अपव्यय कर रहे है l उन्हें मालूम नहीं की शरीर की भिंती को स्थायी रखने वाली नीव को हम अपने ही हाथो से गिरा रहे है !

ब्रह्मचर्य को आध्यात्मिक साधना के रूप में भी देखा जाता है, जिसमें एक व्यक्ति अपनी इच्छा और भावनाओं को नियंत्रित करके सत्य, शुद्धता और सामर्थ्य की अवस्था को प्राप्त करने का प्रयास करता है।

ब्रह्मचर्य के नियम – (Brahmacharya)

Brahmacharya के मार्ग का चयन: ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करने से पहले, व्यक्ति को अपने जीवन में ब्रह्मचर्य को समझने की आवश्यकता होती है, और इसे अपने अनुसार स्वीकार करना चाहिए। यह एक योग्य और सुसंगत मार्ग का चयन करना शामिल होता है, जो उसके धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए सहायक होता है।
शारीरिक ब्रह्मचर्य: शारीरिक ब्रह्मचर्य में व्यक्ति को अपने इंद्रियों को नियंत्रित करने का प्रयास करना होता है। इसका अर्थ है, व्यक्ति को विवेकपूर्वक और सावधानीपूर्वक अपनी इंद्रियों का उपयोग करना जिससे कि वह अपने इंद्रियों के वशीभूत होकर विषयों की ओर न जाए l

ब्रह्मचर्य के महत्वपूर्ण गुण

Brahmacharya में व्यक्ति अपने शारीरक गतिविधियों पर नियंत्रण रखता है अपने कार्य के लिए दुसरो पर निर्भर नही रहता है, अपने मन को वश में रखना सीखना होता है, ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति का जीवन पूर्ण रूप से शुद्ध होता है, मानव को अपने जीवन में विवाह से पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य बताया गया है , Brahmacharya में मानव को अपनी गतिविधियों के साथ साथ खान पान को भी पुर्णतः शुद्ध रखना जरुरी है, पुराने ज़माने से चली आ रही कहावत इसका बहुत बड़ा उदाहरण है

ब्रह्मचर्य के लाभ: ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन, शरीर, और आत्मा को आनंद, शांति, और सुख मिलता है। इसके अलावा यह आत्मसम्मान, संतुष्टि, उच्चता की भावना, और सम्पूर्णता के अनुभव को प्रदान करता है।

जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन

ब्रह्मचर्य की आवश्यकता

Brahmacharya की आवश्यकता धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और शारीरिक स्तर पर हो सकती है। यह एक व्यक्ति के विकास और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण आदर्श है। निम्नलिखित कुछ कारण हैं जिनके कारण ब्रह्मचर्य की आवश्यकता हो सकती है,

आध्यात्मिक विकास: ब्रह्मचर्य आध्यात्मिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मन को संतुलित रखकर और अवास्तविक आकर्षणों से दूर रहकर आध्यात्मिक अनुभव को संभव बनाता है। यह विचारशीलता, शांति, ध्यान, और धार्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है

सामाजिक संतुलन: ब्रह्मचर्य सामाजिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। यह व्यक्ति को संबंधों, संगठनों और समाज के साथ एक साथी और समरस्थ बनाने में मदद करता है।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य: ब्रह्मचर्य शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह विकार्य लैंगिक संबंधों से बचने और जननांगों के स्वस्थ्य रखने में मदद करता है। यह यौन संचारित रोगों और अनचाहे गर्भावस्था के जोखिम को कम कर सकता है।

ब्रह्मचर्य के लाभ

आज के समय में मानव का Brahmacharya बिगड़ गया है, एक मन भोजन से एक बार का वीर्य बनता है , मानव अपनी मन की शांति के लिए दिन में कई कई वार वीर्य नास कर देता है, जिसके कारण शारीर में कमजोरी, मन अशांत रहता है, कार्य में दृढ़ता समाप्त हो जाती है मानव के जीवन में गलत आचरण और गलत क्रिया करने की बजह से मानव तन मन दोनों से कमजोर होता जा रहा है l

वीर्य नास को मानव एक क्रिया समझ कर उसे बहाता रहता है, मानव समझता है इससे हमारे शारीर पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा लेकिन उसके उलट बहुत दुष्प्रभाव पड़ते है , अगर ब्रह्मचर्य (Brahmacharya) का पालन करके वीर्य को बचाया जाये तो एक शक्तिशाली मन और शरीर का विकस किया जा सकता है ,कार्य करने में भी आनंद आयेगा , और आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपने मन को मजबूत बना पाओगे l

वीर्य रक्षा के नियम –

मानव जीवन का मूल उद्देश्य संसार पर विजय प्राप्त करना है और यह तभी संभव हो सकता है जब इन्द्रियों को अपने वश में किया जाय, इन्द्रियां खाली समय में पाप मार्ग की और दौड़ती है , उसी समय उन्हें उस मोहमयी दुनिया कीओर भागने का अवसर मिलता है l इसलिए मनुष्य का कर्तव्य है की वह उन इन्द्रियों को , जिनसे पाप की श्रृष्टि होती है , सदैव अच्छे कामो में लगाये रहे l उन्हें बुरे कार्यों की ओर जाने का समय न दे l इससे ब्रह्मचर्य साधन में सहायता मिलेगी l शरीर की शक्तियों का विकास होगा और हृदय में आत्मिक ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न होगा l

प्रतेक ब्रह्मचारी को परिश्रमपूर्ण कार्यो में लगा रहना चाहिए l अच्छी और सुरुचिपूर्ण पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए , ईश्वर की प्रार्थना तथा महापुरुषों के जीवन चरित्र का पाठ करना चाहिए | सद्वृत्तियों का सहारा लेना चाहिए , यही ब्रह्मचर्य के मूल साधन है l प्रतेक ब्रह्मचारी को इन्ही का सहारा लेना चाहिए l इन नियमो का पालन कर कोई भी मनुष्य अपनी वीर्य शक्ति को शुरक्षित रख सकता है l

ब्रह्मचर्य पर विद्वानों की सम्मतियाँ

स्वामी नित्यानंद – वीर्य से आत्मा को अमरत्व प्राप्त होता है , अतः प्रतेक स्त्री पुरुष को ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना चाहिए |
स्वामी विवेकानंद – वीर्य ही साधुता है और दुर्बलता पाप भी , अतः बलवान और वीर्यवान बनने की चेष्टा करनी चहिये l
महात्मा ईसा – ईश्वर के राज्य में सर्वप्रिय बनने के लिए अविवाहित जीवन बिताना अत्यंत धर्म है l दुसरे शब्दों में ब्रह्मचर्य जीवन ही स्वर्गिक आदेश है l

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