महाभारत को हर किसी ने टीवी पर देखा है इसके सभी पात्र एक से बड़ के एक योद्धा रहे थे । सभी ने अपनी प्रतिभा के जरिए लोगों के मन में एक छवि बनाई हुई है । ऐसे ही महाभारत के एक पात्र है जिनको भीष्म के नाम से जाना जाता है, भीष्म पितामाह की कहानी महाभारत के प्राचीन भारतीय महाकाव्य में से एक है। महाभारत एक इतिहास, धर्म, और इंसानी संघर्ष को समर्थन करने वाली अद्भुत कथा है जिसमें भीष्म पितामाह जैसे बड़े से बड़े योद्धा और धर्मप्रेमी की भूमिका है।
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भीष्म पितामाह का संबंध महाभारत के इतिहास, शांतनु और गंगा देवी के संतान के रूप में है। उनका असली नाम ‘देवव्रत’ था जिसे उनके पिता राजा शांतनु ने दिया था। इसके पीछे एक रोमांचक और संवेदनशील कथा है, जो महाभारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भीष्म पितामाह का जन्म
पूरी महाभारत हस्तिनापुर में हुई है, हस्तिनापुर में राम के भाई भरत के वंशज रहते थे, जिनमे शांतनु नाम के राजा अपना जीवन यापन कर रहे थे, जो एक बहुत महान और बलशाली राजा थे , एक दिन शांतनु अपने राज्य से कुछ दूर गंगा किनारे भ्रमण कर रहे थे, उसी समय गंगा अपने स्त्री रूप में आती है , तभी शांतनु की नजर गंगा पर जाति है तो शांतनु गंगा का सुंदर रूप देख कर मोहित हो जाते है,
शांतनु रोज गंगा किनारे भ्रमण पर जाते और गंगा को देख कर आ जाते , एक दिन शांतनु गंगा से विवाह के लिए कहते है तो गंगा हां कर देती है लेकिन एक वचन रखती है, विवाह के बाद मैं कुछ भी करु तुम मुझ से कुछ नहीं कहोगे, अगर अपने टोका तो मैं हमेशा के लिए आप से दूर चली जाऊंगी, शांतनु वचन देते है और गंगा से विवाह कर लेते है ,विवाह के पश्चात गंगा को एक पुत्र होता है
तो गंगा अपने पुत्र को गंगा में प्रवाह कर देती है , वचन के कारण शांतनु कुछ नहीं कहते है, इसी प्रकार गंगा अपने सात पुत्रों को बहा देती है आठवां पुत्र होता तो गंगा बहाने जा रही होती है, तो शांतनु से रहा नहीं गया और गंगा से पूछ लिया ,तब गंगा ने बताया मेरे सात पुत्र को श्राप मिला हुआ था उनको मुक्त करने के लिए जल में प्रवाह करती थी, और फिर वचन की वजह से गंगा तुरंत वहां से चली गई ।
अब शांतनु अकेले पड़ गए थे ,कुछ समय पश्चात शांतनु गंगा किनारे घूम रहे थे , उसी समय एक नव युवक गंगा किनारे धनुर विद्या का प्रदर्शन कर रहा था ,
तब गंगा ने बताया ये हमारा 8 वा पुत्र है शांतनु ने देखा और बोले ये हस्तिनापुर का युवराज होगा । गंगा ने पुत्र का देवव्रत नाम बताया और वहां से चली गई ।
भीष्म की शिक्षा – Bhishma Pitamah
गंगा 8 वे पुत्र को लेकर चली गई थी, और अपने पुत्र की शिक्षा के लिए भगवान परशुराम के पास ले गई थी, भगवान परशुराम ने देवरत को शिक्षा प्रदान की और
उस समय के सबसे धनुर्धर बने , भगवान परशुराम जी के बारे में सभी जानते है , कितने महान पुरुष रहे है सतयुग, द्वापर, त्रेता तीनों युगो में रहे है, भगवान परशुराम जी ने कई बार पृथ्वी से क्षत्रियों वीरों को ख़तम कर दिया था , और भगवान परशुराम के प्रिय शिष्य देवव्रत बने l
भीष्म पितामाह की प्रतिज्ञा
शांतनु के जीवन से जब गंगा चली गई तो वे अकेले पड़ गए , एक दिन वे भ्रमण पर निकले तो उन्हे एक सुंदर कन्या दिखी जिनको देख कर उनका मन विचलित हो गया, और वे वहां से चले आए, शांतनु दिन भर गहन चिंतन में रहते थे, इस व्यव्हार को देख कर देवव्रत भी चिंतित हुए , एक दिन देवव्रत ने शांतनु से पूछ लिया , पिता श्री आपकी चिंता का कारण क्या है , तब शांतनु ने अपनी चिंता का कारण बताया l
कारण जान कर देवव्रत ने अपने पिता जी के लिए उस देवी को अपने साथ ले कर आये l शांतनु से विवह करने से पहले देवी की भी एक वचन की मांग की, जिसको शांतनु पूरा नही करना चाहते थे, देवी चाहती थी की हस्तिनापुर का युवराज मेरा ही पुत्र होगा , किन्तु शांतनु , देवव्रत को युवराज घोषित कर चुके थे , यह बात सुन कर देवव्रत ने देवी को वचन दिया की आपका ही पुत्र युवराज होगा l
तब देवव्रत ने प्रतिज्ञा ली की, मैं देवव्रत आज ये प्रतिज्ञा करता हूँ मैं अपने सारे सुख को त्याग रहा हूँ , और आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करुगा , और महाराज में अपने पिता की छवि देखूगा और अपने हस्तिनापुर के लिए अपना जीवन समर्पित करता रहूँगा , तब शांतनु ने देवव्रत को भीष्म नाम दिया ,और साथ ही वरदान दिया की भीष्म तुम्हरी मृत्यु तुम्हारी इच्छा के अनुसार होगी l
भीष्म के द्वारा किये गये अधर्म
1.एक दिन भीष्म जा रहे थे अचानक उनके पास सांप आ गया, जिसे देख कर भीष्म ने उसे मार दिया , मरने के बाद उसे बेर के पेड़ पर गिरा दिया , जिससे उसे कई कटे लगे , उस अधर्म के कारण उन्हें वाणों के सईया लेटना पड़ा l
2. एक बार महाराज के विवाह के लिए भीष्म पितामाह दुसरे राज्य की दो बहनों को भरी सभा से उठा लाये थे, जिस बजह से एक एक युवती ने उनकी मृत्यु का कारण बनने की प्रतिज्ञा की और कई जन्मो तक तपस्या की ,
3. द्रोपदी के चीर हरण रोकने के लिए कुछ नही किया ,
4. अपनी प्रतिज्ञा के कारण भीष्म ने अधर्म (कौरवों) का साथ दिया l

भीष्म पितामाह की मृत्यु का कारण
महाराज भरत द्वारा बनाई गई नीतिया सदियों से चली आ रही थी , जिनका उलघन शांतनु और भीष्म की प्रतिज्ञा के कारण हुआ , यही कारण था की हस्तिनापुर में अधर्म शुरू हुआ , भरत की नीती यह थी की जो युवराज योग्य होगा वही राजा होगा , लेकिन भीष्म की प्रतिज्ञा के कारण यह नीती का उलंघन हुआ जिसने अभी तक जन्म नही लिया था उसे हस्तिनापूर का युवराज घोषित कर दिया l
कुछ वर्षो बाद राजकुमारी अम्बा को उठा लाये थे जो अम्बा को किसी ने नहीं अपनाया और जिसके कारण अम्बा ने भीष्म की मृत्यु के कारण बनने की प्रतिज्ञा की l
महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ पर शिखंडी मौजूद थे , शिखंडी पिछले जन्म में राजकुमारी अम्बा थी , पितामाह भीष्म ने शिखंडी को पहचान लिया और अपने शास्त्र त्याग दिए क्योकि भीष्म पितामाह स्त्री पर शास्त्र नहीं उठाते थे, उधर अर्जुन ने यह सब द्रश्य देख रहे थे और अवसर पाकर पितामाह भीष्म के शरीर में अनेको तीर को पार कर दिया l
पुराने अधर्म के कारण भीष्म पितामाह को वाणों की सईया पर लेटना पड़ा, जितने कांटे उस सांप को लगे थे उतने ही तीर उनके शरीर में आर पार हुए l और कई दिनों तक भीष्म ने उस सईया पर जीवन जिया , अपने पाप कर्मो के कारण इतन कष्ट उठाया था , और माघ माह की अष्टमी के दिन उन्होंने अपनी देह का त्याग किया l
Bhishma Pitamah ki Pratigya
कहानी का सार
भीष्म का जीवन अपने पिता की ख़ुशी के लिए समर्पित था , उन्होंने उनकी अपने पिता के शब्दों का मान रखने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य अपना लिया था, और सारा राज पाठ अपने सौतेले भाई को दे दिया, भीष्म पितामह का जीवन हमें कर्तव्य, ज्ञान, त्याग, ईमानदारी, समर्पण, सम्मान, धर्म का पालन, नम्रता, और क्षमा जैसे अनेक महत्वपूर्ण गुणों को सिखाता है। इन सिखाएं का अनुसरण करके हम अपने जीवन को एक महान और सार्थक दिशा में बढ़ा सकते हैं।
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