Bali-रामायण एक प्रसिद्ध और प्राचीन भारतीय काव्य है जिसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि माने जाते हैं। यह भारतीय संस्कृति के महाकाव्यों में से एक है और हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक माना जाता है। रामायण में मुख्य रूप से राजा राम की कथा और उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाएं, उनके भक्त हनुमान का बल, वानर सेना की सहायता, राक्षस रावण के विनाश का वर्णन ,अधर्मी बाली का वध, और सीता की अपहरण और उनकी रक्षा का वर्णन शामिल है।
हमें इस महान ग्रन्थ से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है , रामायण भी एक एसा ग्रन्थ है जिसमे सभी को धर्म से चलने का ज्ञान मिलता है , और जो अधर्म का साथ देता है उसे दण्ड अवश्य मिलता है, ऐसे ही एक रामायण के पात्र महाबली बाली की चर्चा करेगे ,

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महाबली बाली का जन्म
बाली के जन्म के बारे में रोचक प्रसंग है , जो श्री राम के पूछने पर हनुमान जी ने बताया है , इस वाक्य का वर्णन रामायण के उत्तरकाण्ड में मिलता है , रामायण के इस कथन के अनुसार एक ऋक्षराज नामक वानर था जो बहुत ही बलशाली था , उसे अपने बाल का बहुत घमण्ड था , एक दिन वह अपने बाल के मद में चूर हो कर , घूम रहा था , घूमते हुए वह एक सरोवर के पास जा पंहुचा ,
वह सरोवर भगवान ब्रम्हा के पसीने का था , उसे श्राप मिला हुआ था , इस सरोवर में जो भी स्नान करेगा वो पुरुष होगा तो स्त्री में और स्त्री होगी तो पुरुष में परिवर्तित हो जाएगी , ऋक्षराज ने अपने बल के मद में उस सरोवर में स्नान कर लिए स्नान करते ही ,
ऋक्षराज स्त्री में परिवर्तित हो गया , जब इंद्र ने उस स्त्री को देखा तो वे उस पर मोहित हो गये, जबकि इंद्र को पता नही था ऋक्षराज एक पुरुष है , वे एक सुंदरी समझ कर उस पर मोहित हो गये , और उनके तेज से एक पुत्र का जन्म हुआ , जो एक सुन्दर बालो बाला वानर रुपी बालक था , इसका नाम बाली रखा गया , ऋक्षराज ने उस बालक को महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या को सोप दिया , इसीलिए बाली को इंद्र का पुत्र कहते है l
महावली बाली का जीवन – Bali
बाली (Bali) इंद्र का बेटा था इसलिए वह एक समुन्द्र मंथन में वह देवताओ के साथ थे, जिसमे से के कन्या उत्पन हुई , जिसका नाम तारा था , जब तारा उत्पन्न हुई तो उससे विवाह करने के लिए बाली और अन्य लोगो में युद्ध होने लगा, तभी भगवान विष्णु ने कहा तारा के दाई तरफ जो था वो पति और जो बाई तरफ है वो कन्यादान करने वाला पिता होता है, इसलिए तारा का विवाह बाली के साथ हुआ और तारा के पिता वानर वैद्यराज सुषेण बने l
महाबली बाली की शक्तिया
महावली बाली (Bali) इंद्रा का पुत्र था , उसने अपनी तपस्या से भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था, और ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे एक माला प्रदान की, जिसे पहन कर युद्ध करने से सामने वाले की आधी शक्ति बाली में समां जाएगी, जिस वजह से बाली अजय था , बाली शुरू से ही बलशाली था , वह अपने राज्य से पूरी पृथ्वी का चक्कर बहुत सरलता से लगा लेता था, बाली पर्वतो को एक गेंद की तरह एक हाथ से दुसरे हाथ में ले कर खेलता था , बाली गदा युद्ध और कुश्ती में निपूर्ण था l
महाबली बाली के जीवन के महान युद्ध
1. रावण के साथ युद्ध
महावली बाली (Bali) एक बार संध्या वंदना के लिए नदी किनाये गया हुआ था , उसी समय नारद जी वहा से गुजरे , और नारद जी के मुख से यह वाक्य सुने की रावण सबसे बलशाली है और उसके सामने सभी मस्तक झुकाते है , बाली को यह बात अच्छी नही लगी और उसने नारद जि से कहा की जाओ रावण को कह देना मैं उससे डरता नहीं हु, तुरंत नारद जी रावण के पास पहुच गये और यह बात रावण से बताई , जिसे सुन कर रावण तुरंत गुस्से में आ गया और बाली से लड़ने जा पहुचा,
लेकिन ब्रह्मा द्वारा दी गई माला के कारण रावण की आधी शक्ति बाली के पास आ गई और बाली ने अपनी पूछ से पकड़ कर रावण को 6 माह तक पूरी पृथ्वी से लेकर देवताओ तक घुमाया और सभी को बताया मेरे से अधिक बलशाली कोई नही है , तब रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ और बाली से माफ़ी मांगी और दोस्ती का हाथ आगे किया, और बाली ने भी रावण को अपना मित्र बना लिया l
2. महावली बाली का दुंदुभी के साथ युद्ध
दुंदुभी राक्षस को अपने बल पर बहुत मद था , इसीलिए दुंदुभी राक्षस ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा और बाली भी युद्ध के लिए तैयार हो गया , कई दिनों तक चले युद्ध में बाली ने दुंदुभी राक्षस को अपने बल से मार गिराया , बाली ने जब दुंदुभी राक्षस को दो हिस्सों में बाट कर फेका तो दुंदुभी राक्षस का रक्त मतंग ऋषि के आश्रम में गिर गया जिसकी बजह से ऋषि ने बाली को श्राप दे दिया , की बाली अगर तू मेरे आश्रम के एक मील के अन्दर गलती से भी आया तो वही तेरी मृत्यु हो जाएगी , तब से बाली कभी ऋष्यमूक पर्वत के आस पास भी घुमने के लिए नही जाता था l
3.मायावी राक्षस के साथ युद्ध
महावली बाली (Bali) को एक राक्षस ललकार के बुलाता था और लड़ाई लड़ता था लेकिन जब हारने लगता था तो अपनी गुफा में भाग जाता था , एक दिन जब बाली को राक्षस ने ललकारा तो बाली उसकी गुफा में चले गये और अपने भाई सुग्ग्रिव से बोल कर गये मैं राक्षस का वध करके ही लौटुगा अगर नही लौटू तो गुफा का मुख बंद करके चले जाना और राज पाट सभाल लेना , बाली का कई दिन तक युद्ध चला, और एक दिन उस राक्षस का लहू गुफा के बहार आता नजर आया , सुग्रीव को लगा बाली मारा गया ,
इसलिए सुग्रीव गुफा बंद करके वहां से चले आये, लेकिन बाली ने उस राक्षस को मारा था और रक्त उस राक्षस का था , बाली कुछ समय पश्चात बापस आया और उसने बिना कुछ जाने अपने छोटे भाई को अपने राज्य से मार मार के बहार निकल दिया और छोटे भाई की पत्नी को अपने साथ रख लिए , यहाँ से बाली ने अधर्म करना शुरू कर दिया अपने भाई की पत्नी को रखना बहुत बड़ा पाप है l
4. महावली बाली का अंतिम युद्ध
भगवान श्री राम जब अपनी पत्नी की खोज में ऋष्यमूक पर्वत पर पहुचे तो उनकी मुलकात सुग्रीव से हुई , सुग्रीव की मित्रता भगवान राम से हुई और सुग्रीव ने अपने भाई के बारे में बताया और उसके द्वारा किये गये अत्याचार के बारे में बताया , तब भगवान राम ने सुग्रीव को बाली को युद्ध के लिए बोला , सुग्रीव भी मान गए , सुग्रीव ने बाली को ललकारा और दोनों के बीच युद्ध शुरू हुआ ,बहुत देर तक युद्ध चलने का बाद सुग्रीव की हालत ख़राब हो गई तो सुग्रीव वहां से भाग आये, सुग्रीव दर्द से परेशान थे तब राम ने उनकी पीड़ा दूर करी l
राम को देख कर सुग्रीव गुहार करने लगे, प्रभु आपने क्या मित्रता निभाई है अपने मित्र को पराजित होते हुए देखते रहे , तब राम ने पूरी बात बताई की तुम दोनों भाई देखने में एक जैसे हो , जिस बजह से मैंने तीर नही चलाया , और राम ने अपने गले की माला सुग्रीव को पहना दी और फिर से बाली को युद्ध के लिए आमंत्रित किया, बाली और सुग्रीव का युद्ध चल रहा था , तभी भगवान राम ने बाली को पीछे से तीर मार दिया और बाली वही गिर गया , बाली के पूछने पर भगवान राम ने उसे बताया की बाली तुमने ने क्या अधर्म किया जिसका दण्ड तुम्हे मिला है l
बाली (Bali) को समझ आया और बाली ने अपनी गलती की माफ़ी मांगी और अपने पुत्र अंगद को भगवान राम को सौंप दिया और बाली ने अपने प्राण त्याग दिए,सुग्रीव ने भी अपने भाई से माफ़ी मांगी और सुग्रीव ने अपने राज्य को सभाला l और अपनी भाभी को माँ का दर्जा दिया साथ ही अंगद को अपने राज्य का युवराज घोषित कर दिया l
Bali
सरांस –
बाली के जीवन से हम बहुत कुछ सीख सखते है , सबसे पहले यह की कभी शक्ति और प्रतिष्ठा का न तो प्रदर्शन करना चाहिए न ही अभिमान, पराई स्त्री और धन को गलत नजर से नहीं देखना चाहिए, हमें यह भी समझना चाहिए कि गर्व और अहंकार बिगाड़ने वाले गुण होते हैं और हमें दूसरों के साथ समझदारी और विनम्रता से व्यवहार करना चाहिए। साथ ही हमें अपने भावनाओं और प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण रखने की महत्वा समझना चाहिए।
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