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Author name: Rushali Gulati

Rohtak

Avadh Ojha Sir

Avadh Ojha Sir Biography

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Avadh Ojha Sir – अवध ओझा सर का जीवन परिचय

Avadh Ojha sir

कोरोना काल के बाद ज्यादातर ऑफलाइन चीज़ों को ऑनलाइन में तब्दील किया गया। जिसके बाद हर कोई घर बैठे–बैठे अपने काम को काफी अच्छी तरह पूरा करने लगा । और हमने देखा की बच्चो की शिक्षा को भी ऑनलाइन किया गया। जिसमे बच्चे घर बैठे ही डिजिटली अपनी क्लासेज को ले सकते हैं। देखा जाए तो आज का ज़माना पूरा डिजिटल हो चुका हैं और इसी डिजिटल जमाने में एक ऐसे सर जो बच्चो को ऑफलाइन शिक्षा देने के साथ साथ ऑनलाइन क्लासेज भी देते हैं। जिन्हे हर बच्चा बच्चा यूपीएससी (UPSC) व आईएएस(IAS) परीक्षा के लिए जानता हैं। जो आज बच्चो के लिए बेहद लोकप्रिय शिक्षक बन के उभरे हैं।

आइए जानते है इनके बारे में (Avadh Ojha sir)

आज हम जिस शिक्षक की बात कर रहे है उनको आज बच्चे ओझा सर (Ojha Sir) के नाम से जानते है। लेकिन इनका असली नाम अवध प्रताप ओझा (Avadh Pratap Ojha) है जो आज काफी लोकप्रिय शिक्षक (Educator) व मोटिवेटर (Motivator) है। जिनका जन्म 13 जुलाई 1984 में उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh) के गोंडा (Gonda) में हुआ था। इनके पिता श्रीमाता प्रसाद ओझा (Shrimata Prasad Ojha), जो पेशे से पोस्टमैन हैं, आपको बता दे की हमे यह भी जानकारी मिली है की श्रीमता प्रसाद के पास 10 एकड़ जमीन थी जिसमे उन्होंने 5 एकड़ जमीन बेच कर अपनी पत्नी की पढ़ाई पर लगाया यानी ओझा सर की माता जो आज पेशे से एक वकील है। ओझा सर के दोनो माता पिता सरकारी पद पर अपनी नौकरी निभा रहे है।

वर्तमान की बात करे तो ओझा सर (Avadh Ojha sir) शादी शुदा है इनकी शादी 1 मई 2007 में हुई थी वे इनकी पत्नी का नाम मंजरी ओझा (Manjari ojha ) है। और इनकी 3 बेटियां हैं जो ओझा सर की बेहद लाडली है।

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Avadh Ojha sir चाहते थे कुछ अलग करना

ओझा सर (Avadh Ojha sir) जो पढ़ाई में एक एवरेज स्टूडेंट थे लेकिन वह अपनी क्लास में बेहद शरारती बच्चे रहे हैं जिन्होंने अपने स्कूल की पढ़ाई फातिमा स्कूल, गोंडा उत्तर प्रदेश से पूरी की। आपको बता दे, की ओझा सर ने स्नातक की डिग्री प्राप्त कर रखी है । ओझा सर अपनी आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद (Illahabad) चले गए।

लेकिन उनके माता पिता का मानना था की ओझा सर मेडिकल में अपने आगे की पढ़ाई को पूरा करे, लेकिन मेडिकल में कोई रुचि न होने के कारण वह अपने सपने की और चल दिए। उन्हे आईएएस (IAS) के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। उन्होंने अपने दोस्तो को देख सिविल सर्विस परीक्षा की पढ़ाई शुरू की। लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी में काफी उतार चढ़ाव भी देखे काफी मेहनत और लगन के बाद भी ओझा सर सिविल सर्विस की परीक्षा को क्रैक नही कर पाए।

अपना सपना पूरा नहीं हो पाया तो लोगो के सपनो को दिखाई राह (Educator Avadh Ojha Sir)

ओझा सर (Avadh Ojha sir) जो चाहते थे की वो आईएएस के पद को हासिल कर एक अच्छी नौकरी करे। लेकिन उनकी मेहनत तो पूरी थी पर उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। ऐसा समझे की यहा से शुरुवात हुई थी ओझा सर की जो आज काफी प्रसिद्धि बटोर रहे है। जब ओझा सर के लिए सारे रास्ते बंद हो गए तो,

उनके पास उनके मित्र का फोन आया की हमारे यहाँ से एक शिक्षक कोचिंग छोड़ के चला गया। तो क्या आप आकर उसे ज्वाइन करेंगे। जिसके बाद ओझा सर ने कोचिंग सेंटर को ज्वाइन किया और बच्चो को पढ़ाना शुरू किया। शुरुवाती दिनों में उन्हे सही से बच्चो को पढ़ाना नहीं आया । लेकिन धीरे–धीरे बच्चे उनके पढ़ाए तरीके को काफी पसंद करने लगे।

Avadh Ojha sir

शुरुवात की अपने कोचिंग सेंटर की

ओझा सर (Avadh Ojha sir) को बच्चो से बेहद प्यार मिलने लगा। जिसके चलते उन्होंने अपना कोचिंग सेंटर की शुरुवात करने की सोची और 2005 में उन्होंने अपने यूपीएससी कोचिंग सेंटर का निर्माण किया।
लेकिन उस समय उनकी आर्थिक स्थिति भी थोड़ी बिगड़ चुकी थी। जहाँ उन्हे मकान और कोचिंग का किराया निकाला थोड़ा मुश्किल हो रहा था जिसके लिए उन्होंने रात के समय में बारटेंडर की जॉब की और सुबह अपने कोचिंग सेंटर पर बच्चो को पढ़ाया।

IQRA कोचिंग की शुरुवात
हर इंसान की कमायाबी उसके द्वारा की गई मेहनत पर निर्भर करती हैं। क्योकि जो इंसान ने कामयाबी को हासिल किया है तो उसके पीछे उसकी स्ट्रगल की कहानी अवश्य रहीं होगी। ऐसे ही ओझा सर ने भी अपनी जिंदगी में कही उतार–चढ़ाव देखे, लेकिन अंत में उनकी मेहनत और उनकी लगन से उन्होंने भी ऐसी कामयाबी को हासिल किया, जिसकी वजह से आज वह काफी प्रसिद्ध और लोकप्रिय शिक्षक है।

सन् 2019 में ओझा सर ने पुणे, (pune) महाराष्ट्र ( Maharastra ) में IQRA कोचिंग की शुरुवात की। जिसकी शुरुवात कम बच्चो से हुई। लेकिन जैसे–जैसे वक्त बदला धीरे–धीरे बच्चो की संख्या बड़ने लगी। क्योंकि ओझा सर जिस तरीके से बच्चो को पढ़ाते हैं और बच्चो को पढ़ने और अपने लक्ष को हासिल करने के लिए बड़वा देते है उसके चलते वह काफी लोकप्रिय शिक्षक बनने लगे।

यूट्यूब चैनल की हुई शुरुवात

जैसे हमने शुरू में पढ़ा था, की कोरोना महामारी जिसने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया था। जिसके बाद सब कुछ बंद हो गया था लेकिन धीरे – धीरे बच्चो की शिक्षा को ऑनलाइन किया गया। जिससे उनकी शिक्षा पे कोई प्रभाव न पड़े। ऐसे ही ओझा सर (Avadh Ojha sir) ने भी 2020 में ऑनलाइन यूट्यूब चैनल व लाइव क्लासेज शुरू की। जिसपे उन्होंने बच्चो को पढ़ाना शुरू किया। और उन्हे सिविल सर्विस परीक्षा के लिए कई तरह की टिप्स वाली वीडियो भी बनाई। ताकि बच्चे अपनी पढ़ाई को अच्छे से कर सके।

अक्सर हर इंसान अपनी जिंदगी में कही तरह की परेशानियों का सामना करता हैं। लेकिन अंत में जीत वही हासिल करता हैं। जिसके इरादे बेहद पक्के होते हैं। आज ओझा सर जिन्होंने इतनी कामयाबी कठिन परिस्थितियों का सामना कर आज हासिल की है। जो आज बच्चो को अपने लक्ष्य के लिए मोटिवेट भी करते है और जिस तरह से उन्हीने अपने सपने को पूरा किया वो हर बच्चे के लिए प्रेरणा की बात हैं।

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Vikas Divyakirti

Vikas Divyakirti – Drishti IAS Academy

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Vikas Divyakirti Biography in Hindi

आज के समय में देशभर में बहुत से ऐसे कोचिंग सेंटर हैं जो बच्चो को अच्छी शिक्षा देने और IAS बनाने का दावा करते है, लेकिन आज एक ऐसे कोचिंग सेंटर के बारे में बात कर रहे है जिसने काफी कम समय में लोकप्रियता बटोर ली है और जिसे आज हर बच्चा–बच्चा यूपीएससी (UPSC) वे आईएएस (IAS) की परीक्षा को क्रैक करने के वहा पड़ना चाहता है । जो बच्चा अपने जीवन में आईएएस बनाना चाहता हैं उसका सपना होता है की वे सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी इसी कोचिंग सेंटर से करे और अपने जिंदगी के सफर को दिशा दे सके ।

जानते है उस कोचिंग सेंटर के बारे में। (Drishti Coaching Center)

आज हम जिस कोचिंग सेंटर की बात कर रहे हैं वह वर्तमान में काफी चर्चा में है , जिसे आज आईएएस की परीक्षा के लिए नंबर 1 कोचिंग सेंटर माना जाता है, जिसका नाम दृष्टि आईएएस कोचिंग सेंटर ( Drishti coaching center) है जो दिल्ली में स्थित है। ये कोचिंग सेंटर एक लोकप्रिय शिक्षक का है जिनका नाम डॉ विकास दिव्यकीर्ति (Dr. Vikas Divykirti) है, जिनका जन्म 26 दिसंबर 1973 में हरियाणा (Haryana) के एक छोटे गांव मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिनके दोनो माता पिता शिक्षक थे, आपको बता दे, की इनके पिता महर्षि दयानंद सरस्वती में हिंदी के प्रोफेसर थे व माता भिवानी के शहर एक स्कॉल में हिंदी की अध्यापिका थी। और दो भाई जो वर्तमान में नौकरी कर रहे हैं।

पढाई में भी थे होनहार (Vikas Divyakirti)
डॉ विकास जिन्हे बचपन से ही पढ़ाई में काफी रुचि थी, क्योंकि इनके माता पिता जो एक शिक्षक थे जिसके चलते उन्हें भी हिंदी में काफी रुचि थी व घर का माहौल भी काफी शिक्षित था। इन्होंने अपनी 12 वी तक की पढ़ाई भिवानी, हरियाणा में सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल (Sarswati, Shishu Mandir School) से की। जिसके बाद उन्होंने अपने स्नातक की डिग्री बी ए (B.A) इतिहास में पूर्ण की। हिंदी में काफी रुचि होने के कारण हिंदी साहित्य एम ए (M.A) और एमफिल की डिग्री हासिल की। डॉ विकास की पढ़ाई का सफर यह खत्म नहीं हुआ जिसके बाद उन्होंने एलएलबी (L.L.b) की डिग्री हासिल की।

भारत की सबसे कठिन परीक्षा के लिए आवेदन

डॉ विकास (Vikas Divyakirti) जिन्होंने पीएचडी (PHD) की डिग्री भी हासिल की। जिसके बाद उन्होंने परिवार के कहने पर भारत की सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी (UPSC) के लिए आवेदन किया। जिसके बाद उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा को पहले अटेम्प्ट में ही क्रैक कर दिया था। और आईएएस के पद को हासिल किया, लेकिन उनका मन अपनी नौकरी में नहीं लगता था। क्युकी उनका कहना था की ये नौकरी उनके लिए नहीं थी। जिसके चलते उनकी सोच थी की जो संतुष्टि उनको चाहिए वो इस नौकरी में नहीं है। जिसके बाद उन्होंने रिजाइन लेटर देकर अपनी नौकरी को छोड़ दिया।

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दृष्टि कोचिंग सेंटर का निर्माण
जब डॉ विकास दिव्यकीर्ति (Vikas Divyakirti ) ने अपनी नौकरी को छोड़ दिया था, तो लोगो के मन में कई तरह की आशंका होने लगी, जिस वजह से लोगो ने कई तरह के प्रश्न भी उठाए। क्योंकि आईएएस का पद एक ऐसा पद है जिसे लाखो लोग हासिल करना चाहते हैं। लेकिन डॉ विकास को यह नौकरी रास नहीं आई। आपको बता दे, की डॉ विकास कहते है की जब उन्होंने नौकरी छोड़ी तो वह कई महीनो तक बेरोजगार थे उनके पास काम करने के लिए कोई भी काम नहीं था।

जब लोगो ने प्रश्न उठाए तो उन्होंने बच्चो को आईएएस की शिक्षा देनी प्रारंभ की, जिसके बाद उन्हें बच्चो से बेहद प्यार मिलने लगा। व उनके द्वारा दी गई शिक्षा बच्चो को काफी अच्छी लगने लगी। जिसके बाद उनके वहा बच्चो की काफी भीड़ होने लगी। जिसे देख उनके मन में कोचिंग सेंटर का विचार आया । और उन्होंने दृष्टि कोचिंग सेंटर का निर्माण किया, जिसने काफी मुश्किलों का सामना कर आज एक ऐसी प्रसिद्धि को हासिल किया हैं जिसकी वजह से आज उनके कोचिंग सेंटर को हर बच्चा –बच्चा जनता हैं।



कोचिंग सेंटर के साथ साथ उन्होंने एक यूट्यूब चैनल का भी निर्माण किया, जिस पर वह अपने द्वारा बनाए नोट्स डालते है जो बच्चो को उनके प्रोब्लम का सॉल्यूशन देते हैं। साथ ही बच्चो को सिविल परीक्षा को क्रैक करने की जानकारी भी देते हैं। यूट्यूब चैनल के माध्यम से डॉ विकास बेहद लोकप्रिय शिक्षक बन गए। जिनकी क्लासेज लेना हर बच्चा पसंद करता है !

वर्तमान में डॉ विकास दिव्यकीर्ति (Vikas Divyakirti) जो शादी शुदा है और उनका एक लड़का भी है। डॉ विकास की शादी डॉ तरुणा शर्मा से 26 मई 1997 में हुई। जिसके बाद उन्होंने बताया की वो दृष्टि कोचिंग में आज एम डी (MD) के पद को निभा रही है।

अपने सपनो को किया साकार

(Vikas Divyakirti ) का अपनी नौकरी में मन न लगने के कारण, उन्होंने बच्चो को आईएएस की शिक्षा देने का सोचा। जिस सपने को उन्होंने कड़ी मेहनत कर पूरा किया। दृष्टि कोचिंग सेंटर का देखा हुआ सपनो बच्चो के प्यार से आज साकार हुआ। विकास सर ने एक सपना देखा था की वो एक अच्छी शिक्षक के रूप में बच्चो को शिक्षा दे। जिस सपने को आज उन्होंने अच्छे शिक्षक के रूप में दृष्टि को पूर्ण किया।

विकास सर जिनका पढ़ाने का तरीका आज बच्चो को बहुत अच्छा लगता हैं जिसकी वजह से आज जगह – जगह से बच्चे उनसे कोचिंग लेने आते हैं। और अपने सपनो को पूरा करते हैं। शुरुवाती दिनों में कोचिंग के दिन अच्छे नहीं थे जिसके बाद उनकी मेहनत से उनका सफर बदला और आज वह काफी प्रसिद्ध शिक्षक है।

असल जिंदगी में एक शिक्षक को जीवन में गुरु की सबसे बड़ी मानता दी गई हैं। जो बच्चे को सही राह दिखा कर उसकी जिंदगी सवारता हैं। और आज यही कार्य डॉ विकास दिव्यकीर्ति कर बच्चो को असल जिंदगी की रहा दिखा कर उन्हे जिंदगी में कुछ बनने के लिए प्रेरित कर रहे है। और आज के जीवन में हमे ऐसे गुरु की काफी अवशक्यता हैं ।

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Neem Karoli Baba

Neem Karoli Baba नीम करोली बाबा

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Neem Karoli Baba

भारत में कई ऐसे संत गुरु हैं जिन्होंने अपने चमत्कारों से बहुत सी प्रसिद्धि हासिल की हैं, एक संत गुरु का सबसे बड़ा उद्देश्य यही होता हैं की वो अपना सारा सुख संसार व घर परिवार त्याग कर एक ऐसे सत्य के रास्ते पर चले जिससे वो लोगो पर आए कष्ठो को दूर कर सके । आप लोगो ने बहुत से संत गुरु के बारे में सुना और उनके द्वारा किए गए चमत्कारों को देखा भी होगा । और आज हम आपको उन्ही सभी में से एक ऐसे संत गुरु की जीवनी बताएंगे, जिसे हर बड़े नामी व्यक्ति भी मानते हैं व उनके मार्गदर्शन पर चलते आ रहे हैं।

Neem Karoli Baba

संत गुरु के जीवन की गाथा (Neem Karoli Baba)

आज हम जिन गुरु की बात कर रहे है उन्होंने काफी सालों पहले ही प्रसिद्धि को हासिल कर लिया था। जिसके चलते आज भी लोग उन्हे सच्चे दिल से मानते हैं जी, हां हम बात कर रहे है लक्ष्मी नारायण शर्मा (Laxami Narayan Sharama), जो की आज नीम करोली बाबा ( Neem Karoli Baba) के नाम से जाने जाते है। जिनका जन्म 1900 वर्ष में फिरोजाबाद (Firozabad) के छोटे जिले अकबरपुर (Akbarpur) में हुआ। इनके पिता दुर्गा प्रसाद शर्मा (Durga parsad sharma) जो एक पंडित थे। आपको बता दे, की 11 वर्ष में ही इनके पिता ने बाबा जी की शादी कर दी थी, इनकी पत्नी राम बेटी (Ram Beti) व वर्तमान की बात की जाए तो, इनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं। नीम करोली बाबा जी ने छोटी सी उम्र में ही काफी अलौकिक ज्ञान की सिद्धि हासिल कर ली थी।

घर त्याग शुरू किया संत जीवन
छोटी उम्र में शादी हो जाने के बाद वे अपनी गृहस्थ जीवन से काफी विचलित रहने लगे। जिसके बाद उन्होंने घर गृहस्थी को त्यागना ही बेहतर समझा और घर छोड़ वहा से चल पड़े, शुरुवाती दिनों में बाबा जी ने कई जगहो पर तपस्या और साधना की, जहां उन्होंने कई तरह की सिद्धियां हासिल की । व अलग अलग जगह पर तपस्या के कारण उनका अलग अलग नाम से वर्णन होने लगा। बाबा नीम करोली को हनुमान जी की भक्ति करना बेहद प्रिय था जिसके चलते लोगो को उनमें हनुमान जी का अवतार दिखाई देता था।

कई अद्भुत चमत्कारों से प्रसिद्ध होने लगी उनकी बाते
आपको बता दे, की वर्तमान में नीम करोली बाबा ( Neem Karoli baba) तो नही है लेकिन उनके द्वारा किए गए कही ऐसे चमत्कार जिनकी चर्चा आज भी देश भर में होती हैं। एक बार की बात है जब बाबा जी मां गंगा मैया के दर्शन के लिए ट्रेन में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सवार हुए, रास्ते में जब टीटी ने आकर उनसे टिकट पूछा। तो टिकट न होने के कारण टीटी ने बाबा जी को अपमानित कर ट्रेन से नीचे उतार दिया। जिसके बाद बाबा जी वही नीम के पेड़ के नीच अपना डंडा गाड़ तपस्या करने लगे। लेकिन रोचक की बात तो यह है की जब बाबा जी को ट्रेन से नीचे उतारा और ट्रेन जब चलने के लिएं तैयार हुई तो ट्रेन वहा से नहीं चल पाई।

काफी कोशिश करने के बाद ट्रेन चलने में नाकामयाब रही। जिसके बाद टीटी को अपनी गलती का पछतावा हुआ और माफी के साथ बाबा जी को ट्रेन पर बैठ यात्रा करने के लिए कहा। जिसके बाद बाबा जी ने 2 शर्ते रख ट्रेन पे चढ़े। पहली की उस जगह पे स्टेशन का निर्माण किया जाए व दूसरी की तुम कभी भी किसी साधु संत का ऐसे अपमान नही करोगे। जिसके बाद उनके बैठते ही ट्रेन चल पड़ी, ऐसे ही कई बाबा जी के चमत्कार जो देश नही विदेश में भी चर्चित हैं। जो आज भी लोगो को नीम करोली बाबा जी को भगवान मानने के लिए मजबूर करती हैं। क्योकि ऐसी चमत्कारी चीजे एक साधारण व्यक्ति नहीं कर बल्कि कोई अलौकिक व्यक्ति ही कर सकता है।

पवित्र कैंची धाम का निर्माण

नीम करोली बाबा जिनका जीवन छोटी उम्र से ही भगवान की तपस्या में रहा है। व अपना जीवन अनेको जगह पर जा कर तपस्या करने में लगाया हैं, और इसी दौरान बाबा उतराखंड में स्थित हिमालय में भ्रमण के लिए जा पहुंचे। जहाँ उन्होंने 1961 में कैंची धाम का निर्माण किया। जहां उन्होंने भंडारा आयोजित कर एक पवित्र कैंची धाम का नाम दिया। जहा श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर अपनी इच्छा को पूरा करने आते हैं। और कहा जाता है की ये जगह नीम करोली बाबा जी को बेहद प्रिय थी जहा उन्होंने अपने मित्र पूर्णानंद के साथ आश्रम का निर्माण किया।

फेसबुक और एप्पल के मालिक भी कर चुके है दर्शन
अक्सर हर किसी की जिंदगी में एक ऐसा समय भी आता है जब उसे कोई न कोई व्यक्ति का आसरा चाहिए होता। जिसे वह अपनी जिंदगी सुधार सके। ठीक ऐसे ही एक समय था जब एप्पल के फाउंडर (Founder of apple) स्टीव जॉब्स (Steve jobs) और फेसबुक के फाउंडर मार्क ज़ुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) का कारोबार बिलकुल ख़तम होने पे था जिस वक्त वे नीम करोली बाबा के कंची धाम माथा टेकने के लिए व उनका आशीर्वाद लेने आए, उनके धाम माथा टेकने के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई और इनके अलावा भी कई ऐसे कही बड़े–बड़े सितारे हैं जिन्होंने नीम करोली बाबा के दरबार में माथा टेकते नजर आते है । ऐसी बहुत सी रोचक बाते जो नीम करोली बाबा की मान्यता लोगो में बढ़ावा देती हैं। बाबा अपने आप को एक ऐसा सन्यासी कहते थे, जो लोगो की समस्या का हल बता, जीवन में शांति देते थे, लेकिन लोग उन्हे एक साधारण इंसान नही उन्हे भगवान के रूप में पूजते थे।

10 वर्षो बाद वापिस आए अपने गांव

नीम करोली बाबा जी की चर्चा हर जगह फैलने लगी। जिसे लोगो के मन में उनसे मिलने वे उन्हे देखने की इच्छा जागरूक होने लगी। इस तरह नीम करोली बाबा जी की चमत्कारी बाते उनके गांव भी पहुंची। जिसके बाद उनके पिता चाहते थे की वह नीम करोली बाबा जी से मिल कर अपने पुत्र के बारे में पूछेंगे, लेकिन वह यह नहीं जानते थे की नीम करोली बाबा जी ही उनके बेटे है, जैसे ही जब उनके पिता नीम करोली बाबा जी के पास पहुंचे तो, वह उन्हे देख काफी अचंभित हुए, जिसके बाद उन्होंने अपने पुत्र को वापिस घर गृहस्थी में लोटने के लिए कहा। अपने पिता के काफी बार कहने पर वह 10 वर्ष बाद अपने गांव लोटे । लेकिन उन्होंने अपने पिता को घर–गृहस्थी में वापिस लोटने के लिए मना कर दिया। क्योकि उनका कहना था की वो अब सांसारिक सुख छोड़, सन्यास के रास्ते पे निकल चुके है।

त्याग दिया अपना जीवन
नीम करोली बाबा जी, जो अब अपने जीवन को त्यागना चाहते थे। जिन्होंने पूरा जीवन अपनी सच्ची लगन से धामों में तपस्या कर बिताया था। उनके कई ऐसे धाम थे लेकिन सब धामों में से उनका सबसे प्रिय धाम कैंची धाम था। जहां वह तपस्या करतें थे और अपने शिष्य को शिक्षा देते थे। लेकिन अंत में 9 सितंबर 1973 में उन्होंने अपना कैंची धाम भी त्याग दिया और वृंदावन के लिए रवाना हो गए। लेकिन उनका एक बेहद प्रिय शिष्य व मित्र पूर्णानंद, जो हर वक्त उनके साथ रहता था । लेकिन वृंदावन की यात्रा में वह उन्हे अपने साथ नही लेकर गए और रवि खन्ना को साथ ले गए और काठगोदाम से आगरा के लिए रवाना हुए। आगरा आने से पहले ही बाबा आधे रास्ते से ही ट्रेन से उतर गए। जहा उन्होंने बताया की वह अपना जीवन त्यागने जा रहे, जिसके बाद उनका दाह संस्कार पूर्णानंद के द्वारा वृंदावन में ही किया जायेगा।

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Bageshwar Dham Sarkar

Bageshwar Dham Sarkar – महाराज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

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Bageshwar Dham Sarkar

भारत एक ऐसा देश हैं। जहां अक्सर चमत्कार देखने को मिल ही जाते हैं क्युकी भारत में भगवान को लेकर लोगो की मान्यता बहुत हैं। अक्सर हमने कई ऐसे संत गुरु के बारे में सुना हैं। जिनके अंदर कोई न कोई अद्भुत बात जरूर होती हैं। आज एक ऐसे ही संत गुरु की बात करेंगे जो छोटी सी उम्र में ही काफी प्रसिद्धि को हासिल कर बैठे है। आज कल हम ऐसे संत गुरु को सोशल मीडिया पर देखते रहते है और उन्ही में से एक ऐसे संत गुरु जो लोगो की समस्या को दूर करने का हल बताते हैं।

Bageshwar Dham Sarkar

आइए जानते है – (Bageshwar Dham Sarkar)

आज हम जिनकी बात कर रहे है वो आज कल काफी चर्चा में देखने को मिल रहे है। जिनका नाम महाराज धीरेंद्र कृष्ण जी (Maharaj Dhirendar Krishan ji) है, जिनका जन्म 4 जुलाई 1996 को मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर (Chattarpur) के गड़ा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता जिनका नाम राम कृपाल गर्ग (Ram kripal garg) जो सारा दिन नशे में रहते थे। वे इनकी माता सरोज गर्ग (Saroj garg) वे इनके छोटे भाई महराज शालीमार गर्ग (Maharaj Shalimar garg) और इनकी छोटी बहन, जो शादी शुदा है। वे इनके दादा जी भगवान दास गर्ग (Bhgwan das garg), जो बागेश्वर धाम में दरबार लगाया करते थे। आपको बता दे, की उनके पिता जो ज्यादातर नशे में रहते थे जिसके चलते उनके घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। उनके घर का गुजारा बेहद मुश्किल से होता था। और घर के सबसे बड़े पुत्र होने कारण उन्हे घर की स्थिति को लेकर काफी टेंशन रहती थी।

पढ़ाई से ज्यादा थी आध्यात्मिक में रुचि
धीरेंद्र शास्त्री जिन्हे बचपन से ही आध्यात्मिक चीज़ों में रुचि थी। लेकिन, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गांव से ही पूरी की, जिसके बाद उन्होंने स्नातक (B.A) में दाखिला लिया। लेकिन उनका मन बचपन से ही कुछ ऐसा करने को था जिससे वो अपने घर के बिगड़े हालातो को सुधार सके। जिसके बाद उन्होंने आध्यात्मिक का रास्ता चुना, जिसमे उन्होंने अपने दादा जी से कही आध्यात्मिक पुस्तको का ज्ञान लिया, जैसे–श्री मत भगवद गीता, सुंदरकांड,महाभारत, रामायण और पुराण आदि। साथ ही साथ उन्होंने भी अपने दादा जी से मार्गदर्शन ले कर उनके मार्ग पर चल पड़े।

क्या है बागेश्वर धाम (Bageshwar Dham Sarkar)
जैसे की हमने आपको बताया कि, धीरेंद्र शास्त्री जी के दादा जी, जो बागेश्वर धाम में अपना दरबार लगाया करते थे। जिसे देख धीरेंद्र शास्त्री जी उसमे काफी रुचि रखने लगे । सबसे पहले हम आपको बता दे, की बागेश्वर धाम में 300 वर्ष पुराना हनुमान जी का मंदिर हैं। जहां लोग अपनी कही समस्याओं का हल ढूंढ़ने हनुमान मंदिर में अर्जी लगाने आते हैं। क्युकी बागेश्वर धाम की मानता है की यहां जो कोई भी अपनी अर्जी हनुमान जी के सामने लगाएगा व खाली हाथ लौटकर नही जायेगा।

(Bageshwar Dham Sarkar)
यहां पर अर्जी जो मंगलवार के दिन जिसे हनुमान जी का दिन माना जाता है। एक लाल रंग की पोटली में नारियल चढ़ा कर भगेश्वर धाम का नाम लेकर उसकी 21 बार परिक्रमा करने पर लगाई जाती हैं। यहां लोग कही तरह की समस्या को लेकर आते हैं। और हनुमान जी का तो नाम लेने से भी भूत प्रेत भागते हैं इसके चलते लोग भूत प्रेत की समस्या के लिए भी वहा अर्जी लगाते हैं जो काले रंग की पोटली में लगाई जाती हैं। बागेश्वर धाम में दादा जी के सन्यासी गुरु ने भी अपनी समाधि वही लगा रखी हैं। और कहा जाता है की अभी भी उनकी अलौकिक शक्तियां वहां पर मौजूद हैं।


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दादा जी ने किया मार्गदर्शन

धीरेंद्र शास्त्री जी जिन्हे बचपन से ही पढ़ाई से ज्यादा आध्यात्मिक पुस्तको में काफी रुचि थी। एक दिन उन्होंने भी बागेश्वर धाम में जाकर अपने दादा जी के सामने अर्जी लगाई। क्युकी उनके परिवार के हालात काफी खराब होने के कारण वह उन सब से बेहद परेशान थे जिसके बाद दादा जी ने उन्हे अपना शिष्य बना कर उन्हे सारी आध्यात्मिक शिक्षा दी वे हर वो कार्य सिखाया । जिसके बाद उन्होंने भी बागेश्वर धाम में पूरी लगन से खुद को समर्पण कर दिया। आज उनका कहना है की उनके दो गुरु उनके दादा जी और सन्यासी गुरु। जिस वर्ष आज उन्होंने इतनी प्रसिद्धि हासिल की।

लोगो की मान्यता (Bageshwar Dham Sarkar)
आज के समय में धीरेंद्र शास्त्री जी के कही सारे भक्त हैं जो अपनी समस्याओं की अर्जी लगाने बागेश्वर धाम जाते हैं धीरेंद्र शास्त्री जी के भक्तों का मानना है की वहा बिना बोले ही समस्या का हल धीरेंद्र शास्त्री जी के पास होता हैं। क्युकी वहा जब लोग अर्जी लगाते हैं तो उन्हे टाइम वे दिन की खबर के लिए एक टोकन दिया जाता। जिसके बाद उनका रजिस्ट्रेशन किया जाता है जिसमे भक्तों का नाम और मोबाइल नंबर लिख डिब्बे में डाला जाता हैं। और वे उस दिन आकर अपनी अर्जी लगाते हैं। साथ ही साथ धीरेंद्र शास्त्री जी से से अपनी समस्या का हल भी जानते हैं। लेकिन एक रोचक बात यह है की भक्तो द्वारा बिना बोले उनकी समस्या धीरेंद्र शास्त्री जी उनका नाम पढ़ कर उनकी समस्या बता देते हैं। और इसी के चलते लोगो में उनकी काफी मानता होने लगी हैं। वे उनकी सोशल मीडिया पर काफी चर्चा भी होने लगी है। और कहीं ऐसे श्रद्धालु जिनका मानना है की वहा कही ऐसी चमत्कारी शक्तियां है जो वहा आए सच्चे भक्तो की मनोकामना पूरी करती हैं।

आज के समय में लोगो के जीवन में कही अलग अलग तरह की समस्या हैं जिसके समाधान के लिए लोग कही ऐसी ऐसी जगह पर जा कर भगवान के आगे अर्जी लगाते हैं। और ऐसे में लोगो की मानता बागेश्वर धाम को लेकर काफी सच्ची हैं जिसके चलते लोगो का मानना है की वहा पर वास्तव में हनुमान जी वास करते। जिनकी कृपा आए उनके भक्तो पर अवश्य होती हैं ।


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Gaur Gopal Das

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आज के दौर में हर कोई सुख शांति की जिंदगी जीना पसंद करता हैं। हर कोई चाहता है की हमारे पास ढेरो पैसा हो व अच्छी जिंदगी हो। क्युकी कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो ऐसे सुख और ऐशो आराम की जिंदगी को छोड़ कर सन्यास की जिंदगी जीना पसंद करे।
लेकिन आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताएंगे । जिसने जिंदगी की मोह माया को छोड़ एक ऐसा जीवन चुना, जो एक आम इंसान के लिए बेहद मुश्किल हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति आज के समय में किसी के बारे में ना सोच कर सिर्फ अपना ही भला करना चाहता हैं। लेकिन इस व्यक्ति ने समाज की सेवा वे लोगो की भलाई में खुद के जीवन को समर्पण कर दिया।

कौन है वो व्यक्ति ?

जी, हां आज हम जिस व्यक्ति की बात कर रहे हैं उनको आज हम प्रभु गौर गोपाल दास ( Prabhu Gaur Gopal das) जी के नाम से जानते है। इनका जन्म 24 दिसंबर 1973 में, महाराष्ट्र (Maharastra, Pune ) के पुणे शहर में हुआ। इनके पिता जो की एक सरकारी कर्मचारी थी वे इनकी माता हाउसवाइफ थी। घर में एक पुत्र होने के कारण गोपाल दास जी सदैव अपने माता पिता के बेहद लाडले रहे है। बचपन से ही गोपाल दास जी को लोगो के जीवन में सकारात्मक कार्य करना बेहद पसंद था। क्युकी वो बचपन से ही सकारात्मक रहना बेहद पसंद करते थे।

पढ़ाई में थी काफी रुचि
गोपाल दास जी बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। उनको पढ़ने लिखने का बेहद शौक था। जिसके चलते आज उन्होंने कही सारी मोटिवेशनल किताबे व पंक्तियां लिखी हुई है। जिसे आज की युवा पीढ़ी बेहद पसंद करती हैं। गोपाल दास जी ने अपनी स्कूली शिक्षा सेट जूड, हाई स्कूल पुणे से की। जिसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा कुसरो वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, पुणे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर का डिप्लोमा हासिल कर पूर्ण की। गोपाल दास जी (Gaur Gopal Das) जो अपनी कक्षा के काफी शरारती बालक रहे है।

हर कोई चाहता हैं। की वह अच्छा पढ़ लिख कर एक अच्छी खासी नौकरी हासिल करे। गुरु गोपाल दास जी (Gaur Gopal Das) ने भी अपनी स्नातक डिप्लोमा के फाइनल ईयर में एक अच्छी खासी नौकरी को Hewlett-Packard (HP) हासिल किया। जहा उन्हे इंजीनियर के पद पे कार्य करना था।

नही लगा नौकरी में मन (Gaur Gopal Das)

जैसे की हमने आपको बताया। की गोपाल दास जी (Gaur Gopal Das) बचपन से समाज को जागरूक करना चाहते थे व चाहते थे की वे ऐसा कोई कार्य करे जो समाज में सकारात्मक ला सके। ठीक इसी सोच के चलते गोपाल दास जी ने एक वर्ष अपनी नौकरी में रहते हुए वैसा जीवन जीना पसंद नहीं किया। क्युकी उनका कहना था की नौकरी में उन्हे वह संतुष्टि नहीं मिल रही जो वो चाहते थे। जिसके बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ वो ज्ञान प्राप्त किया जो वह करना चाहते थे जैसे की कृष्ण भक्ति, श्री मत भागवत गीता, व जीवन के अद्भुत रहस्यों को जाना |

माता–पिता हुए थे नाराज

हर माता–पिता चाहते हैं। की उनका बच्चा एक ऐसी जिंदगी जीए जो बेहद ही आराम भरी हो। तो ऐसे में गोपाल दास जी (Gaur Gopal Das) का एक सन्यासी जीवन चुनना। उनके माता –पिता को थोड़ा निराशापूर्ण था , क्योकि गोपाल दास जी एक साधारण और सकारात्मक जिंदगी जीने में यकीन करते थे। जिसके चलते उन्होंने वो रास्ता चुना जो समाज में सकारात्मकता ला सके , लेकिन समय के साथ साथ उनके माता–पिता ने उन्हें समझा और उनसे खुश भी हुए।


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Gaur Gopal Das

क्या है गोपाल दास जी (Gaur Gopal Das) का उद्देश्य?

गोपाल दास जी, जो आज हर सोशल मीडिया में चर्चा में हैं जिनकी वीडियो देखना हर किसी को अच्छा लगता हैं। क्युकी वह अपने विचारो को बेहद अच्छे तरीके से प्रकट करते है जिसे लोग बेहद पसंद भी करते हैं। जैसे की हमने आपको बताया कि गोपाल दास जी एक ऐसी जिंदगी जीने में यकीन रखते है जो बहुत साधारण और सकारात्मक हो। क्युकी गोपाल दास जी का कहना है, की हर व्यक्ति को ऐसी आराम की जिंदगी छोड़ सन्यासी जिंदगी को अपने जीवन का सत्य बनाना चाहिए। इसी के चलते गोपाल दास जी आज की पीढ़ी को मोटीवेट करते हैं। व स्कूल कॉलेज में उन्हे बुलाया जाता है। जहा वह बच्चो के मन के विचार जानकर उन्हे सही राह दिखाते हैं।

आध्यात्मिक जीवन को देते है बढ़ावा
गोपाल दास जी की स्पीच को लोग बेहद प्यार देते हैं। गोपाल दास जी ने अपना सांसारिक मोह छोड़ कर एक आध्यात्मिक जीवन को बेहतर समझा। क्युकी उनका कहना है की जब वह नौकरी कर रहें थे तो उन्हे वहा इतनी संतुष्टि नहीं मिली। जिसके बाद उन्होंने कही ऐसी सकारात्मक काम किया जहा उन्हे संतुष्टि मिली। जिसके चलते उन्हें आध्यात्मिक क्षेत्र में अपना योगदान देने के लिए 2016 में उन्हे इंटरनेशनल सुपर नेचुरल अवार्ड (International super natural award) से नवाजा गया।

आज के समय में गोपाल दास जी ने एक ऐसी पहचान बना ली। जहां लोग उनके द्वारा बोली गई स्पीच और पंक्तियों को काफी पसंद करते हैं। आपको बता दे, की आज गोपाल दास जी के यूट्यूब पे चैनल है जिसे 3 लाख से भी ज्यादा लोग फॉलो करते हैं। जिसमे वह अपने मोटिवेशनल वीडियो डाल कर लोगो को प्रेरित करते है। क्युकी आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में इंसान को कोई न कोई ऐसा व्यक्ति जरूर चाहिए, जो उन्हे सही राह दिखाए।

प्रेरणा
आज के समय में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो, एक अच्छी जिंदगी छोड़ समाज में जागरूकता के कार्य का काम करेगा। लेकिन गोपाल दास जी आज ऐसा काम कर के हर युवा पीढ़ी को समाज में जागरूकता लाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जिसके चलते वह कही ऐसी स्पीच देते है। जो लोगो को मोटिवेट कर उनके जीवन का उधेश्य बताती हैं।


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ACHARYA PRASHANT – (आचार्य प्रशांत )

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Acharya Prashant Biography

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एक ऐसे शिक्षक जो जीवन के हर पहलू के बारे में बात करते हैं, चाहे वह शिक्षा हो, नौकरी हो, व्यवसाय हो, रिश्ते हों, पारिवारिक मुद्दे हों, प्यार हो, या फिर सेक्स हो ! शाकाहार, शास्त्रों, व युवाओं के विकास को बढ़ावा देना उनका मुख्य उद्देश्य है। उनका काम लोगों को उपभोक्तावाद, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या के बारे में जागरूक करना है। उनके वीडियो तर्क और सत्यता पर आधारित होते हैं ! और लोगों को उस समय उनके बयानों पर बहस करने की पूरी आज़ादी होती है। वह न केवल प्रश्नों को बढ़ावा देते है बल्कि यह भी सुनिश्चित करते है कि प्रश्नकर्ता का हर संदेह दूर हो जाए। वह वेदांत (वेदों का अमृत) के प्रबल प्रवर्तक भी हैं।
वे एक आध्यात्मिक गुरु हैं जो समाज में अध्यात्म के संबंध में फैली भ्रांतियों को दूर करते हैं और संतों के शास्त्रों और वचनों के वास्तविक अर्थ की व्याख्या करते हैं। वह युवाओं को स्वतंत्र रूप से जीने और समाज के पारंपरिक रास्तों से बंधे रहने के लिए कहते हैं। युवा ही नहीं हर उम्र के लोग उनसे सवाल पूछते हैं। वह अपने उत्तरों की सरलता और तर्क श्रोताओं के संस्कारित मन को पूरी तरह से धो डालते हैं। वह चाहते हैं कि लोग स्वतंत्र रूप से जिए और उन बंधनों से दूर रहें जो केवल शास्त्रों को समझकर ही किया जा सकता है।

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कौन है आचार्य प्रशांत (Acharya Prashant)

आज हम जिस व्यक्ति की बात कर रहे है। उन्होंने इस करोड़ों लोगो की भीड़ में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई हैं। जी, हां हम बात कर रहे है। प्रशांत त्रिपाठी ( Prashant Tripathi ) , जो आज आचार्य प्रशांत (Acharaya Prashant) के नाम से जाने जाते है। जो आध्यात्मिक गुरु के साथ–साथ लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर भी है। जिनका जन्म 7 मार्च 1978 में आगरा, उत्तर प्रदेश (Agra, Uttar Pradesh) में हुआ। प्रशांत के पिता प्रशासनिक सेवा अधिकारी( नौकरशाह) थे, व उनकी माता हाउसवाइफ थी। और तीन भाई बहन जिनमे से सबसे बड़े प्रशांत थे ।

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पढाई में रहते थे अव्वल
आचार्य प्रशांत जिन्हे बचपन से ही पढ़ाई में काफी दिलचस्पी थी जिन्होंने अपनी पढ़ाई बेहद लगन और मेहनत के साथ पूरी की। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा लखनऊ में पूरी की, वे आगे की उच्च शिक्षा दिल्ली से पूर्ण की। आचार्य प्रशांत जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही आईएएस (IAS) अधिकारी की नौकरी के लिए सपना देखा था। उन्होंने अपने पिता की लाइब्रेरी में ही छोटी उम्र में ही सारी किताबो को पढ़ लिया था। क्युकी प्रशांत जो अपने स्कूल में अपनी कक्षा में प्रथम आने वाले छात्र थे। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि 15 वर्ष की उम्र में ही प्रशांत ने आईएएस (IAS) की तैयारी शुरू कर दी थी।

नौकरी छोड़ युवाओ को किया जागरूक

छोटी उम्र में देखा हुआ सपना आचार्य प्रशांत (Acharya Prashant) ने पूरा किया और अधिकारी पद को हासिल कर अपने सपने को साकार किया। लेकिन उनका मानना था की अपनी जिंदगी अपने तरीके से ही जीनी चाहिए। जब उन्हे नौकरी मिली तो उन्होंने समझा की अगर वो इसी नौकरी में रह गए तो पूरा जीवन इस नौकरी में उलझा रह जायेगा। जिसके चलते उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी और एक ऐसे रहा पर चल पड़े। जहां वे अपने मन के विचारो से आज की युवाओ को जागरूक कर रहे हैं। और साथ ही साथ आज के युवा उनके विचारो को सुनकर उस पर अमल भी कर रहे है !

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स्थापित किया फाउंडेशन
आचार्य प्रशांत जिनका नौकरी छोड़ने के बाद केवल एक ही उद्देश्य था। सही राह पे चलने के लिए लोगो को जागरूक करना। आचार्य जी के फाउंडेशन खोलने का उद्देश्य यह था की लोगो को ग्रंथ के बारे में शिक्षा देना वे उन लोगो को का सही मार्गदर्शन करना जो लोग अपनी जिंदगी में रास्ता भटक कर गलत रास्ते को चुन कर अपनी जिंदगी को नष्ट कर रहे हैं। इनके द्वारा लिखी गई कही ऐसी किताबे है जिसमे आचार्य जी ने अपने विचारो को प्रकट किया है जिसे लोग पढकर अपनी सोच को बदलने लगे हैं।

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पशु प्रेमी बनने के लिए लोगो को करते है प्रेरित

साल 2022 में आचार्य प्रशांत (Acharya Prashant) को पेटा इंडिया सबसे प्रभावशाली वेगन पुरस्कार (PETA’s India most influencing vegan award) से नवाजा गया है। जिसमे उन्हे जानवरो के खिलाफ हो रही क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें पुरुस्कृत किया है , उनकी टीम जानवरो को प्यार करने के लिए लोगो को जागरूक कर रही हैं।

करोड़ों लोग करते है आचार्य प्रशांत को फॉलो
आचार्य प्रशांत जिन्होंने आज अपनी एक ऐसी पहचान बना ली हैं। जहां करोड़ों युवा उनके सेशन व उनका द्वारा लिखी गई किताब, वेउनके द्वारा बोली गई मोटिवेशनल स्पीच को काफी पसंद करते हैं। आज आचार्य प्रशांत हर युवा के लिए एक ऐसा फरिश्ता बन के आय हैं। जो युवा को सही रास्ता दिखाने का काम करते हैं। वे अपनी बातो से उनकी मुश्किलों को खत्म करते है। इसी तरह करोड़ों लोग आज आचार्य प्रशांत को सोशल साइट पे फॉलो करते हैं। व साथ ही साथ लोग उन्हे बेहद प्यार दे रहे हैं।

प्रेरणा
आचार्य प्रशांत जिन्होंने एक अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर एक ऐसा रास्ता चुना जहां उनका मानना था की वो लोगो को अपने विचारो से सही तरीके से जीवन जीना सिखाएंगे। ठीक आज की युवा को भी ऐसी सोच रखा अपने जीवन को किसी के दबाव में ना डाल कर आजादी से जीवन को जीना चाहिए।
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Jaya sharma

JAYA KISHORI ( जया किशोरी )

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Jaya Kishori Biography

कलयुग की मीरा के नाम से प्रसिद्ध है , राजस्थान की रहने वाली कथा वाचक जया किशोरी

Jaya Kishori Biography

आज के दौर में जहां लोगो के पास भगवान को देने के लिए एक मिनट का समय नहीं हैं। वही लोग सिर्फ और सिर्फ अपना सांसारिक सुख के लिए पैसे के पीछे भाग रहे हैं। लेकिन,आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे। जिसने दिन रात सिर्फ भगवान की भक्ति में खुद को समर्पण कर रखा हैं। जिसके चर्चे आज कल हर सोशल मीडिया पर देखने को मिलते हैं।

आज हम जिनकी बात कर रहे है उनका नाम जया शर्मा (Jaya sharma) हैं जिन्हे आज के समय में लोग जया किशोरी ( Jaya kishori) के नाम से जानते हैं जो आज मोटिवेशनल स्पीकर के साथ कथावाचक भी हैं। जिनकी पहचान आज के समय में किसी की भी मोहताज नहीं हैं। जया किशोरी जिनका जन्म 13 अप्रैल 1995 में राजस्थान (Rajasthan) के छोटे से गांव सुजानगढ़ में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

इनके परिवार में इनके पिता शिव शंकर शर्मा (Shiv shankar sharma)। व इनकी माता गीता देवी (Geeta devi) और इनकी छोटी बहन चेतना ( chetna) जया किशोरी जिन्होंने छोटी उम्र में ही काफी धार्मिक चीजों को सीखना शुरू कर दिया। क्युकी जया किशोरी का कहना है की उनका पूरा परिवार काफी धार्मिक रहा है और उनके नाना–नानी व दादा–दादी सब को धार्मिक ग्रंथों को पढ़ना व भजन गाना काफी अच्छा लगता था।

Jaya Kishori Biography

बचपन से ही था भक्ति भाव में ध्यान

जया किशोरी ( Jaya kishori) जो आज एक मोटिवेशनल स्पीकर भी है और कथावाचक भी हैं। जो आज के समय में लोग को अपने स्पीच द्वारा उन्हे मोटिवेशन देती है वे उनकी स्पीच को सुनने के लिए ढेरों संख्या में लोग आते है। जिस उम्र में बच्चे सिर्फ खेलना–कूदना जानते है उस उम्र में जया किशोरी ने भजन को गाना वे भागवत कथा को सुनना शुरू कर दिया था। जिन्हे पढ़ाई करना पसंद तो था परंतु, पढ़ाई से ज्यादा ध्यान उनका हमेशा भजन गीत वे धार्मिक चीजों में रहता था। जया किशोरी जिन्होंने 12 की पढ़ाई के साथ श्री मत भागवत कथा को याद कर लिया था। वे अपनी प्राथमिक शिक्षा को ग्रहण कर उच्च शिक्षा (B.com) के साथ वेदों श्री मत भागवत गीता (Shri mat Bhagwat gita) , शास्त्रों की शिक्षा भी ली।

लुधियाना की रहने वाली 42 वर्षीया रूह चौधरी,पिछले कई सालों से अपनी कमाई से कर रही है जानवरों की सेवा !
Pravin Tambe (प्रवीन ताम्बे) – Kaun Pravin Tambe

घर का माहौल रहता था धार्मिक
अक्सर हम लोग ने देखा वे सुना हैं। की बच्चे अपने माता–पिता को देख कर ही उस कार्य में दिलचस्पी दिखाने लगते हैं। ठीक इसी तरह किशोरी जी का कहना है। की उन्होंने बचपन से ही अपने माता–पिता वे दादा– दादी को धार्मिक चीजों को सुनते वे बोलते हुए देखा। किशोरी जी कहती है। की उनके पिता का काम में ज्यादा दिलचस्पी ना होने के कारण उन्हें भजन गाना वे कीर्तन करना बेहद पसंद था। इसी तरह किशोरी जी को भी अपने माता–पिता को देख भजन, कीर्तन, जागरण वे श्री मत भागवत कथा को सुनना वे बोलना बेहद पसंद था।

Jaya Kishori Biography

करोड़ों लोगों के बीच बनाई अपनी पहचान

एक छोटी सी उम्र से भक्ति में इतना जुनून, जो आज कल किसी भी लड़की के अंदर देखने को नहीं मिलता। लेकिन, जया किशोरी जिन्होंने अपनी मोटिवेशन स्पीच वे अपनी कथाओं से लोगो के दिल को इतना आकर्षित किया। की आज हर सोशल मीडिया पे उनकी स्पीच का जिक्र होता हैं। आपको बता, दे की उनके सोशल मीडिया पे मिलियन्स में फॉलोअर्स है, जो उन्हे बेहद पसंद भी करते है वे उनके द्वारा गाए हुए भजन यूट्यूब जैसे कही सोशल मीडिया पर सुने जा सकते हैं।

कई पुरस्कारों से नवाजा गया
आज के युग में प्रसिद्ध मीरा कहलाने वाली। जया किशोरी ( Jaya kishori), जिन्होंने कई पुरस्कार को अपने नाम किया। जैसे– साल 2016 में आदर्श युवा आध्यात्मिक गुरु पुरस्कार , संस्कार चैनल द्वारा दिया गया पुरस्कार, साल 2019 में यूथ आइकन का पुरस्कार दिया गया, वे हाल ही में 2021 में मोटिवेशनल ऑफ द ईयर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

किशोरी जी जो आज हर उस बच्चे के लिए प्रेरणा है, जिनकी लगन छोटी उम्र से ही भगवान में थी, क्युकी भगवान में लगन लगाने के लिए कोई भी इंसान को साधु या साध्वी बनने की आवश्यकता नहीं हैं। अगर दिल साफ हो तो लगन कही भी लगाई जा सकती है !

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Pravin Tambe

Pravin Tambe Biography in Hindi

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Pravin Tambe (प्रवीन ताम्बे) – Kaun Pravin Tambe

41 साल की उम्र में IPL के RR के लिए उनके योगदान के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है !
“ सपने तभी पूरे होते है ”
जब उन्हें पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत की जाए। वरना सपने तो बंद आंखों से भी देखे जाते हैं आज हम आपको ऐसी ही संघर्ष भरी कहानी बताएंगे। जिसने अपने सपनो को पूरा करने के लिए हर वो नामुमकिन कोशिश को मुमकिन किया। अक्सर जिंदगी में सपने तो हर कोई देखता हैं। लेकिन उन सपनो को पूरा करने का मौका बेहद ही कम लोगो को मिलता हैं। आज एक ऐसे ही व्यक्ति की कहानी। जिसमे उनके पास हर जगह से असफलता होने के बावजूद भी उसको अवसर में बदलकर सफलता हासिल की।

आइए जानते है कौन है वे व्यक्ति (Pravin Tambe)

आज हम जिनकी बात कर रहे है उनका नाम प्रवीण तांबे ( Pravin Tambe) है जो एक सामान्य मराठी परिवार से तालुक रखते हैं। जिनका जन्म 8 अक्टूबर 1971, में मुंबई (Mumbai) में हुआ था। इनके परिवार में इनके पिता विजय तांबे (Vijay Tambe) वे उनकी माता ज्योति तांबे (jyoti Tambe) जो की हाउस वाइफ और उनके बड़े भाई प्रशांत (Prashant) जो पेशे से एक इंजीनियर है और जॉब करते है। प्रवीण तांबे जिन्होंने अपने स्कूल समय से ही रणजी ट्रॉफी के खेलने के लिए सपना देखा था। क्युकी प्रवीण पढ़ाई तो किया करते थे लेकिन उनकी क्रिकेट में ज्यादा रुचि होने के कारण वे हर वक्त क्रिकेट के बारे में ही सोचा करते थे। लेकिन क्रिकेट के साथ साथ वे टेनिस टूर्नामेंट भी खेला करते थे।

अभी भी था इंतजार अपने सपने को पूरा करने का ।
प्रवीण तांबे (Pravin Tambe) जो वक्त के साथ–साथ बड़े हो रहे थे। जिसके चलते उनका सपना को साकार होने में अभी भी वक्त था। लेकिन परिवार वाले उनकी उम्र को बढ़ता देख। उनकी शादी की चिंता कर उनकी ओर उनके बड़े भाई की शादी कर दी। जिसके बाद भी प्रवीण ने अपने सपने को छोड़ा नहीं । उनकी लगन और मेहनत अपने सपने को लेकर और भी मजबूत होने लगी। जिसके बाद रणजी ट्रॉफी के लिए लगातार ट्रायल देने लगे, पर एक वक्त ऐसा आया जब उन्हें मजबूरन नौकरी का दबाव आने लगा।
जब उन्हें नौकरी के दबाव में नौकरी ढूंढी तो उन्हे उस वक्त एक टूर्नामेंट खेलने का मौका मिला। लेकिन, वह टूर्नामेंट सिर्फ वही लोग खेल सकते थे। जो उस कंपनी के साथ काम करते थे। उस वक्त प्रवीण काफी निराश हो गए थे। लेकिन, कहते है न जब इंसान के पास कुछ न हो तो उसका टैलेंट काम आता हैं। ठीक इसी तरह प्रवीण के प्रदर्शन से एक कंपनी के टीम हेड को प्रवीण का टैलेंट देख उसे खेलने का मौका दिया और वह जीत गए। अच्छे प्रदर्शन से सामने वाली टीम को प्रवीण पर उंगली उठाई । जिस वजह से टीम हेड ने प्रवीण का पुरानी डेट पर ज्वाइनिंग लेटर दिखाया और वही प्रवीण को अपने साथ अपनी कंपनी में काम करने का मौका दिया।

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Pravin Tambe ने रणजी ट्राफी के लिए बनाया खुद को काबिल….

जब Pravin Tambe को कंपनी के साथ काम करने का मौका मिला तो उन्होंने इनकार न करते हुए उसे ज्वाइन कर लिया। जिसके बाद भी उनका सपना रणजी ट्रॉफी को खेलने का था। धीरे–धीरे समय बीतता जा रहा था एक दिन कंपनी में रणजी ट्रॉफी के लिए कोच को बुलाया गया। जो प्रवीण का प्रदर्शन देख उनसे खुश हो गए। लेकिन कोच का मानना था की प्रवीण राइट आर्म लेग ब्रेक बॉलर बने। जो प्रवीण को पसंद नही था जिसके बाद प्रवीण ने कोच से बहस की और उनकी बात को अनसुना किया और टूर्नामेंट खेलने के लिए चले गए। जिसमे उनके हाथ असफलता मिली।

असफलता को बदला सफलता में
….
प्रवीण जिन्होंने अपने सपने के लिए काफी संघर्षों का सामना किया और उनसे लड़कर आगे की और बढ़ते गए। लेकिन अपने कोच की बात न सुनने पर उन्हें टूर्नामेंट में असफलता का सामना करना पड़ा। जिसके बाद उन्हें कही परिस्थितियों का सामना कर । फिर से क्रिकेट के टूर्नामेंट खेलने की शुरुवात की और इस बार कोच की बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने लास्ट ओवर में राइट आर्म लेग का इस्तेमाल करते हुए सफलता को हासिल किया।

संघर्ष का सफर हुआ खत्म…..
टूर्नामेंट में सफलता हासिल करने के बाद । प्रवीण दिन रात क्रिकेट की प्रैक्टिस करते थे। क्युकी उन्हे अभी भी रणजी ट्रॉफी के लिए खेलने की उम्मीद थी। ऐसे में एक दिन राजस्थान रॉयल्स के कोच राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid) जो की एक प्रसिद्ध क्रिकेटर है इन्होंने जब प्रवीण का प्रदर्शन देखा तो उन्होंने प्रवीण को अपने टीम के लिए खेलने का अवसर दिया। आपको बता दे, की इस वक्त प्रवीण तांबे (Pravin Tambe) की उम्र 41 साल हो गई थी। 41 साल की उम्र में प्रवीण की करियर की शुरुवात शुरू हुई। जब उन्होंने महाराष्ट्र की तरफ से पहली बार रणजी ट्रॉफी के लिए खुद को मैदान में उतारा।
आज प्रवीण तांबे को हर बच्चा बच्चा क्रिकेटर के रूप में जानता है। वर्तमान में प्रवीण की उम्र 50 वर्ष हो चुकी। जिस उम्र में लोग खेलना– कूदना छोड़ देते है उस उम्र में भी प्रवीण के अंदर अभी भी वही जुनून और वही मेहनत दिखाई देती हैं।

प्रेरणा :- किसी ने सच ही कहा हैं। की अगर सपने को हासिल करने की मेहनत और लगन हो तो कोई भी उम्र में सपने को पूरा किया जा सकता है। ठीक इसी तरह प्रवीण तांबे की कहानी हर उम्र के लोगो को जागरूक करती हैं।

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